अब हर मी़डिया प्रतिष्ठान की अपनी एक वेबसाइट है
इंटरनेट से आया परिवर्तन एक बड़ा परिवर्तन है. लेकिन इंटरनेट ने पत्रकारिता में इस समय तक इतना बड़ा परिवर्तन नहीं किया है जिसे आमूलचूल परिवर्तन कहा जा सके.
लेकिन इतना ज़रुर है कि इंटरनेट ने पत्रकारिता के दृष्टिकोण में बड़ा परिवर्तन किया है, उसकी रफ़्तार को बदला है.अब कोई मीडियम यह कहकर संतुष्ट नहीं हो सकता है कि हम तो प्रिंट हैं या हम सिर्फ़ ब्रॉडकास्ट करते हैं, चाहे वे पत्रकारिता की किसी भी विधा में हों वे उनके लिए अपनी वेबसाइट बनाना एक आवश्यकता बन गई है.
अब कोई भी मीडिया हाउस बिना अपनी वेबसाइट बनाए यह नहीं कह सकता कि वह एक मीडिया हाउस है. बल्कि कई मीडिया हाउस तो कई वेबसाइट चला रहे हैं.
वे एक विशिष्ट बाज़ार के लिए या विशिष्ट पत्रकारिता को ध्यान में रखकर वेबसाइटें बना रहे हैं.
हस्तक्षेप
इंटरनेट के हस्तक्षेप ने पत्रकारिता की पहुँच को बढ़ाया है या इस पर बोझ बढ़ाया है, इस सवाल को एक बच्चे की तरह देखना चाहिए.यह मंथन का समय है. इस मंथन से विष निकलेगा या अमृत यह कहना इस समय कठिन है लेकिन मंथन ज़ोरों से चल रहा है, यह तय है
इस समय देखें तो लगता है कि यह वेबसाइट तो किसी अख़बार का विस्तार है या फलाँ वेबसाइट टेलीविज़न चैनल का विस्तार है लेकिन जल्दी ही इंटरनेट की पत्रकारिता सब पर सवारी करने लगेगी.
और यह विस्तार इतना तेज़ होगा कि कल्पनातीत ही होगा.
अगर आप इतिहास में जाकर देखें तो रेल और टेलीग्राफ़ का विस्तार इतनी तेज़ी से हुआ जिसकी किसी ने कल्पना ही नहीं की थी.
इंटरनेट में गूगल की तरक़्की को ही देखिए. वह मुश्किल से दस साल पुरानी कंपनी है लेकिन आज उसका व्यवसाय 22 अरब डॉलर से अधिक है.
तो इंटरनेट में रातों-रात समाज के सभी स्थापित मानकों को ध्वस्त करने की क्षमता है.
बदलाव
इंटरनेट की पत्रकारिता से पाठकों को लाभ हुआ या नुक़सान हुआ यह सवाल ठीक नहीं है क्योंकि हर चीज़ को लाभ और नुक़सान की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता.समाज लाभ और नुक़सान से नहीं चलता लेकिन अगर आप इंटरनेट को ज़िंदगी से जोड़कर देखेंगे को पाएँगे कि इंटरनेट ने निश्चित तौर पर ज़िंदगी को प्रभावित किया है.
मुझे लगता है कि इंटरनेट जल्दी ही पत्रकारिता और मीडिया को प्रभावित करेगा.
लेकिन इसकी वजह से पत्रकारिता फिर से परिभाषित हो रही है.
पहले वस्तुनिष्ठता, निष्पक्षता और तथ्यों को जाँचने परखने की प्रथा ख़त्म होती जा रही है.
अब चूँकि इंटरनेट पर इंटरेक्टिविटी है, प्रतिसंवाद है.
इसलिए जब एक पक्ष कुछ कहेगा तो दूसरा पक्ष उसी मंच पर कुछ और कहेगा. एक पक्ष अपने मंच पर कुछ कहेगा तो हो सकता है कि दूसरा पक्ष अपने मंच पर कोई दूसरी बात कहे.
कुल मिलाकर यह मंथन का समय है. इस मंथन से विष निकलेगा या अमृत यह कहना इस समय कठिन है लेकिन मंथन ज़ोरों से चल रहा है, यह तय है.
न्यूज़ ब्रेक
इंटरनेट ने ख़बरों की रफ़्तार को भी बदल दिया है.अब कोई पत्रकार चाहे किसी भी माध्यम के लिए काम करता हो, उसका संस्थान उससे उम्मीद करता है कि वह ख़बर पाते ही उसे इंटरनेट एडीशन के लिए फ़ाइल करेगा.
यह देखना होगा कि हम कहीं अंधे कुएँ की ओर तो नहीं जा रहे हैं
अब किसी ख़बर से प्रभावित होने वाले लोग इस पर प्रतिक्रिया भी तेज़ी से व्यक्त करते हैं.
उदाहरण के तौर पर हाल ही में किसी ने लिखा कि ऐश्वर्या राय अस्वस्थ हैं तो अमिताभ बच्चन ने तुरंत अपने ब्लॉग पर लिखा कि उनकी बहू के बारे में इस तरह की टिप्पणियाँ ठीक नहीं हैं.
इंटरनेट के आने से यह संभव नहीं रह गया है कि आप कुछ भी लिखें और बचकर निकल लें.
चुनौती
इंटरनेट ने पत्रकारिता के क्षेत्र में एक नई चुनौती पैदा की है, वह है नियामकता की.अब पत्रकार कुछ लिखता है और वह तुरंत जनता के लिए उपलब्ध हो जाता है, ऐसे में संपादक की भूमिका समाप्त होने की ओर है.
तो ख़बरों के प्रकाशित होने के पहले जाँच परख की जो परंपरा थी वह ख़त्म हो रही है.
चुनौती यह है कि हम किस तरह से ज़िम्मेदार बने रहें.
हम सबको मिलजुलकर विचार करना होगा कि इंटरनेट की तेज़ी को बरकरार रखते हुए किस तरह से पत्रकारिता को ग़ैर ज़िम्मेदार होने से बचाया जा सके.
अराजकता की स्थिति से बचना एक चुनौती तो है ही.
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