पत्रकारिता (मीडिया) का प्रभाव समाज पर लगातार बढ़ रहा है। इसके बावजूद यह पेशा अब संकटों से घिरकर लगातार असुरक्षित हो गया है। मीडिया की चमक दमक से मुग्ध होकर लड़के लड़कियों की फौज इसमें आने के लिए आतुर है। बिना किसी तैयारी के ज्यादातर नवांकुर पत्रकार अपने आर्थिक भविष्य का मूल्याकंन नहीं कर पाते। पत्रकार दोस्तों को मेरा ब्लॉग एक मार्गदर्शक या गाईड की तरह सही रास्ता बता और दिखा सके। ब्लॉग को लेकर मेरी यही धारणा और कोशिश है कि तमाम पत्रकार मित्रों और नवांकुरों को यह ब्लॉग काम का अपना सा उपयोगी लगे।
मंगलवार, 26 मार्च 2013
पत्रकारिता की दुविधाएं / शालू यादव
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| मंगलवार, 29 जनवरी 2013, 17:20 IST
जब मेरे संपादक ने मुझसे पूछा कि क्या मैं बदायूँ जाकर दिल्ली
गैंगरेप के नाबालिग अभियुक्त के परिवार से मिलना चाहूंगी, तो मेरे मन में
कई सवाल उठे.
मेरे अंदर के पत्रकार ने मुझसे कहा कि ये दौरा काफ़ी रोमाँचक होगा, लेकिन
मेरे अंदर की महिला ने कहा कि मैं कतई उस इंसान के घर नहीं जाना चाहती,
जिसने एक लड़की के साथ बर्बर दरिंदे की तरह बलात्कार किया और फिर उसके शरीर
पर कई आघात किए.
मैं दिल्ली में पली-बढ़ी हूं और चाहे कोई कुछ भी कहे, मुझे इस बात पर फख़्र है कि दिल्ली वो शहर है जिसने देश के हर तबके को पनाह दी है.
मुझे कभी अपने शहर में असुरक्षित महसूस नहीं हुआ और अगर हुआ भी है तो मैंने उसका हमेशा डटकर उसका सामना भी किया.
ऐसा नहीं है कि ये घटनाएं दिल्ली में ही होती हैं. मुझे लंदन जैसे शहर में भी छेड़-छाड़ का सामना करना पड़ा.
फिर भी लंदन में मुझे उन टिप्पणियों से शर्मिंदा होना पड़ा जिनमें दिल्ली को 'बलात्कार की राजधानी' कहा जा रहा था.
जो 16 दिसंबर की रात उस लड़की के साथ हुआ, उसने हर देशवासी की तरह मेरी भी अंतरात्मा को झिंझोड़ कर रख दिया था.
उन छह लोगों के प्रति मेरे मन में बहुत गुस्सा था और मैंने भी सभी देशवासियों की तरह यही दुआ की कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा हो.
ये तो रही उस आम लड़की की भावनाओं की बात, जो हर बलात्कारी को बेहद गुस्से से देखती है.
लेकिन जहां तक पत्रकारिता की बात है, तो मैं इस बात से दुविधा में पड़ गई थी कि जिस लड़के के प्रति मेरे अंदर इतनी कड़ुवी भावना है, उसके परिवार से जुड़ी ऐसी कहानी मैं कैसे कर पाउंगी जो संपादकीय तौर पर संतुलित हो.
मुझे लगा कि भले ही पुलिस ने इस नाबालिग को सबसे ज़्यादा बर्बर बताया हो, लेकिन मुझे अपने भीतर का पक्षपात निकाल कर उसके परिवार से बातचीत करनी चाहिए.
लेकिन जब उस नाबालिग अभियुक्त के गांव पहुंची और उसके परिवार से मिली, तो मन की दुविधा और बढ़ गई.
उनकी दयनीय हालत देख कर मेरे अंदर का गुस्सा खुद-ब-खुद काफूर हो गया.
नाबालिग अभियुक्त की मां बेसुध हालत में बिस्तर पर पड़ी थी. जब मैंने उनसे पूछा कि अपने बेटे के बारे में सुन कर कैसा लगता है, तो बोली कि 'मैं तो मां हूं...क्या एक मां अपने बच्चे को ये सिखा कर बाहर भेजती है कि तू गलत काम कर? हमारी इन सब में क्या गलती है? हमें मिली तो बस बदनामी.'
उनकी ये बात सुन कर मेरे मन में गुस्से के साथ-साथ पक्षपात की भावना भी खत्म हो गई.
मैं ये नहीं कहूंगी कि उस परिवार की गरीबी देख कर ही मेरा मन बदला. मेरा मन तो बदला उस सच्चाई के बारे में सोच कर जो लाखों भारतीय गरीब बच्चों की कहानी है.
रोज़गार की तलाश में अकेले ही वे शहर चले जाते हैं और अपनी ज़िंदगी के सबसे महत्त्वपूर्ण साल अकेले रहकर ज़िंदगी की कठिनाइयों का सामना करने में गुज़ारते हैं.
इस नाबालिग लड़के की भी यही कहानी थी. मां-बाप से दूर, बिना किसी भावनात्मक सहारे के उसने दिल्ली शहर में अपने तरीके से संघर्ष किया.
मैं उस अभियुक्त के घर में बैठ कर ये सब सोच ही रही थी कि मां दूसरे कोने से बोली कि मेरे बेटे ने ज़रूर बुरी संगत में आकर ऐसा काम किया होगा...
खैर उसकी हैवानियत के पीछे वजह जो भी हो, मेरे अंदर की महिला उसे कभी माफ नहीं कर सकती.
मैं दिल्ली में पली-बढ़ी हूं और चाहे कोई कुछ भी कहे, मुझे इस बात पर फख़्र है कि दिल्ली वो शहर है जिसने देश के हर तबके को पनाह दी है.
मुझे कभी अपने शहर में असुरक्षित महसूस नहीं हुआ और अगर हुआ भी है तो मैंने उसका हमेशा डटकर उसका सामना भी किया.
ऐसा नहीं है कि ये घटनाएं दिल्ली में ही होती हैं. मुझे लंदन जैसे शहर में भी छेड़-छाड़ का सामना करना पड़ा.
फिर भी लंदन में मुझे उन टिप्पणियों से शर्मिंदा होना पड़ा जिनमें दिल्ली को 'बलात्कार की राजधानी' कहा जा रहा था.
जो 16 दिसंबर की रात उस लड़की के साथ हुआ, उसने हर देशवासी की तरह मेरी भी अंतरात्मा को झिंझोड़ कर रख दिया था.
उन छह लोगों के प्रति मेरे मन में बहुत गुस्सा था और मैंने भी सभी देशवासियों की तरह यही दुआ की कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा हो.
ये तो रही उस आम लड़की की भावनाओं की बात, जो हर बलात्कारी को बेहद गुस्से से देखती है.
लेकिन जहां तक पत्रकारिता की बात है, तो मैं इस बात से दुविधा में पड़ गई थी कि जिस लड़के के प्रति मेरे अंदर इतनी कड़ुवी भावना है, उसके परिवार से जुड़ी ऐसी कहानी मैं कैसे कर पाउंगी जो संपादकीय तौर पर संतुलित हो.
मुझे लगा कि भले ही पुलिस ने इस नाबालिग को सबसे ज़्यादा बर्बर बताया हो, लेकिन मुझे अपने भीतर का पक्षपात निकाल कर उसके परिवार से बातचीत करनी चाहिए.
लेकिन जब उस नाबालिग अभियुक्त के गांव पहुंची और उसके परिवार से मिली, तो मन की दुविधा और बढ़ गई.
उनकी दयनीय हालत देख कर मेरे अंदर का गुस्सा खुद-ब-खुद काफूर हो गया.
नाबालिग अभियुक्त की मां बेसुध हालत में बिस्तर पर पड़ी थी. जब मैंने उनसे पूछा कि अपने बेटे के बारे में सुन कर कैसा लगता है, तो बोली कि 'मैं तो मां हूं...क्या एक मां अपने बच्चे को ये सिखा कर बाहर भेजती है कि तू गलत काम कर? हमारी इन सब में क्या गलती है? हमें मिली तो बस बदनामी.'
उनकी ये बात सुन कर मेरे मन में गुस्से के साथ-साथ पक्षपात की भावना भी खत्म हो गई.
मैं ये नहीं कहूंगी कि उस परिवार की गरीबी देख कर ही मेरा मन बदला. मेरा मन तो बदला उस सच्चाई के बारे में सोच कर जो लाखों भारतीय गरीब बच्चों की कहानी है.
रोज़गार की तलाश में अकेले ही वे शहर चले जाते हैं और अपनी ज़िंदगी के सबसे महत्त्वपूर्ण साल अकेले रहकर ज़िंदगी की कठिनाइयों का सामना करने में गुज़ारते हैं.
इस नाबालिग लड़के की भी यही कहानी थी. मां-बाप से दूर, बिना किसी भावनात्मक सहारे के उसने दिल्ली शहर में अपने तरीके से संघर्ष किया.
मैं उस अभियुक्त के घर में बैठ कर ये सब सोच ही रही थी कि मां दूसरे कोने से बोली कि मेरे बेटे ने ज़रूर बुरी संगत में आकर ऐसा काम किया होगा...
खैर उसकी हैवानियत के पीछे वजह जो भी हो, मेरे अंदर की महिला उसे कभी माफ नहीं कर सकती.
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टिप्पणियाँटिप्पणी लिखें
- 1. 19:02 IST, 31 जनवरी 2013 himmat singh bhati: शालू जी. आपने इस वारदात के मार्मिक पहलू की ओर इशारा किया है. लेकिन ये भी ध्यान देने वाली बात है कि भारत के न्यायालयों में ऐसे जितने भी मामले हैं उसमें कोई न कोई किसी न किसी रूप में पीड़ित है और इसका असर उसके परिवार पर भी पड़ रहा है. जबकि जिसने अपराध किया है ज्यादातर मामलों में वो आज़ाद घूम रहा है. हमारी न्याय व्यवस्था को इन मामलों के बारे में गंभीर होना होगा.
- 2. 02:49 IST, 01 फरवरी 2013 SHABBIR KHANNA,RIYADH,SAUDIA ARABIA: शालू जी, न जाने कितनी अबला बहनें इस बीमारी से पीड़ित होती हैं लेकिन जितनी चर्चा दामिनी को मिली उतनी किसी को नहीं मिलती है. क्या ये कड़वा सच नहीं है कि दामिनी रात के समय अपने ब्वॉय फ्रेंड के साथ घूम रही थी - इसके बारे में कोई भी आवाज़ नहीं उठाता है.
- 3. 13:18 IST, 01 फरवरी 2013 उमेश कुमार यादव, लखनऊ: शालू जी, आपने जो प्रश्न उठाया वो बिल्कुल सही है. गरीबी की मार झेलते हुए जब मैंने अपना घर रोजगार के लिए छोड़ा था तब मेरी उम्र भी 16 साल के आसपास थी पर मेरे दिमाग में कोई अपराध करने की भावना नहीं आई. ये भी सच है कि कोई मां-बाप अपने बच्चे को अपराध के लिए नहीं उकसाता. इस नाबालिग ने जो किया वह दरिंदगी की इंतेहा थी. सिर्फ नाबालिग होने के नाते उससे कोई सहानुभूति रखना सिर्फ तथाकथित मानवतावादियों के लिए सही होगा मेरे जैसे आम इंसान के लिए नहीं. भारत में महिलाओं के प्रति नजरिया बहुत नहीं बदला है. मुझे वो दिन भी याद हैं जब गांव में उसी पुरुष को सबसे बड़ा मर्द माना जाता था जो अपनी पत्नी को नियमित रूप से पीटता हो. स्थिति में बदलाव आज भी ज्यादा नहीं आया है. इसी मानसिकता का परिणाम है कि स्त्री हर जगह प्रताड़ित होती है. मुझे हैरत तब ज्यादा हुई जब आपने यह लिखा कि लंदन में भी छेड़छाड़ होती है. क्या कहूं इस पर.........समझ नहीं आता है. आपके अंदर की स्त्री और पत्रकार दोनों ही अपनी संवेदना को जीवित रखे, यही कामना है.
- 4. 17:30 IST, 01 फरवरी 2013 Sandeep Mahato: शालू जी आपने बिलकुल सहज तरीके से एक सच्चाई बयान की है. हम सब बुराई की जड़ को मारने के बजाय बुरे को खत्म करने पर ज्यादा ज़ोर देते हैं. एक बुरे व्यक्ति के ख़त्म होने पर बुराई ख़तम नहीं हो जाती. दोष अवश्य उस नाबालिग का भी है, परन्तु उससे भी ज्यादा दोषी है वह वातावरण जिसने उसे ऐसा घिनौना कर्म करवाया. माँ बाप का कर्तव्य होता है कि वह अपने बच्चों की सही परवरिश करें पर पापी पेट के सवाल के आगे बाकी सारे सवाल छोटे पड़ जाते हैं.
-
5.
20:12 IST, 01 फरवरी 2013 Akhilesh Chandra:
शालू जी, पत्रकार का काम घटनाओं का हिस्सा बनना
नहीं है. यह सबसे मुख्य बात है इसे पेशे की. हालांकि इसका पालन नहीं हो
रहा. देश का पूरा मीडिया एक मुद्दे के साथ झंडा लेकर खड़ा हो जाता है, तो
दूसरे का विरोध करने लगता है. आज के पत्रकारों से निष्पक्षता की उम्मीद
बेमानी है. बीबीसी के बारे में सुनता आया था कि यहां चीजें अलग होती हैं,
लेकिन ऐसा लगता नहीं है. आप लोग भी किसी घटना का हिस्सा बनते जा रहे हैं.
अब क्या उम्मीद की जाए!
शनिवार, 23 मार्च 2013
नीम हकीम खतरे जान
Ajitsinh Jagirdar shared Sanju Verma's photo.
भगवान न करे कि आपको कभी जिंदगी मे heart attack आए !लेकिन अगर आ गया तो आप जाएँगे डाक्टर के पास !और आपको मालूम ही है एक angioplasty आपरेशन आपका होता है ! angioplasty आपरेशन मे डाक्टर दिल की नली मे एक spring डालते हैं ! उसको stent कहते हैं ! और ये stent अमेरिका से आता है और इसका cost of production सिर्फ 3 डालर का है ! और यहाँ लाकर लाखो रुपए मे बेचते है आपको !
आप इसका आयुर्वेदिक इलाज करे बहुत बहुत ही सरल है ! पहले आप एक बात जान ली जिये ! angioplasty आपरेशन कभी किसी का सफल नहीं होता !! क्यूंकि डाक्टर जो spring दिल की नली मे डालता है !! वो spring बिलकुल pen के spring की तरह होता है ! और कुछ दिन बाद उस spring की दोनों side आगे और पीछे फिर blockage जमा होनी शुरू हो जाएगी ! और फिर दूसरा attack आता है ! और डाक्टर आपको फिर कहता है ! angioplasty आपरेशन करवाओ ! और इस तरह आपके लाखो रूपये लुट जाते है और आपकी ज़िंदगी इसी मे निकाल जाती है ! ! !
अब पढ़िये इसका आयुर्वेदिक इलाज !!
______________________
हमारे देश भारत मे 3000 साल एक बहुत बड़े ऋषि हुये थे उनका नाम था महाऋषि वागवट जी !!
उन्होने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है अष्टांग हृदयम!! और इस पुस्तक मे उन्होने ने बीमारियो को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखे थे ! ये उनमे से ही एक सूत्र है !!
वागवट जी लिखते है कि कभी भी हरद्य को घात हो रहा है ! मतलब दिल की नलियो मे blockage होना शुरू हो रहा है ! तो इसका मतलब है कि रकत (blood) मे acidity(अमलता ) बढ़ी हुई है !
अमलता आप समझते है ! जिसको अँग्रेजी मे कहते है acidity !!
अमलता दो तरह की होती है !
एक होती है पेट कि अमलता ! और एक होती है रक्त (blood) की अमलता !!
आपके पेट मे अमलता जब बढ़ती है ! तो आप कहेंगे पेट मे जलन सी हो रही है !! खट्टी खट्टी डकार आ रही है ! मुंह से पानी निकाल रहा है ! और अगर ये अमलता (acidity)और बढ़ जाये ! तो hyperacidity होगी ! और यही पेट की अमलता बढ़ते-बढ़ते जब रक्त मे आती है तो रक्त अमलता(blood acidity) होती !!
और जब blood मे acidity बढ़ती है तो ये अमलीय रकत (blood) दिल की नलियो मे से निकल नहीं पाता ! और नलिया मे blockage कर देता है ! तभी heart attack होता है !! इसके बिना heart attack नहीं होता !! और ये आयुर्वेद का सबसे बढ़ा सच है जिसको कोई डाक्टर आपको बताता नहीं ! क्यूंकि इसका इलाज सबसे सरल है !!
इलाज क्या है ??
वागबट जी लिखते है कि जब रकत (blood) मे अमलता (acidty) बढ़ गई है ! तो आप ऐसी चीजों का उपयोग करो जो छारीय है !
आप जानते है दो तरह की चीजे होती है !
अमलीय और छारीय !!
(acid and alkaline )
अब अमल और छार को मिला दो तो क्या होता है ! ?????
((acid and alkaline को मिला दो तो क्या होता है )?????
neutral होता है सब जानते है !!
_____________________
तो वागबट जी लिखते है ! कि रक्त कि अमलता बढ़ी हुई है तो छारीय(alkaline) चीजे खाओ ! तो रकत की अमलता (acidity) neutral हो जाएगी !!! और फिर heart attack की जिंदगी मे कभी संभावना ही नहीं !! ये है सारी कहानी !!
अब आप पूछोगे जी ऐसे कौन सी चीजे है जो छारीय है और हम खाये ?????
_________________
आपके रसोई घर मे सुबह से शाम तक ऐसी बहुत सी चीजे है जो छारीय है ! जिनहे आप खाये तो कभी heart attack न आए !
सबसे ज्यादा आपके घर मे छारीय चीज है वह है लोकी !! english मे इसे कहते है bottle gourd !!! जिसे आप सब्जी के रूप मे खाते है ! इससे ज्यादा कोई छारीय चीज ही नहीं है ! तो आप रोज लोकी का रस निकाल-निकाल कर पियो !! या कच्ची लोकी खायो !!
स्वामी रामदेव जी को आपने कई बार कहते सुना होगा लोकी का जूस पीयों- लोकी का जूस पीयों !
3 लाख से ज्यादा लोगो को उन्होने ठीक कर दिया लोकी का जूस पिला पिला कर !! और उसमे हजारो डाक्टर है ! जिनको खुद heart attack होने वाला था !! वो वहाँ जाते है लोकी का रस पी पी कर आते है !! 3 महीने 4 महीने लोकी का रस पीकर वापिस आते है आकर फिर clinic पर बैठ जाते है !
वो बताते नहीं हम कहाँ गए थे ! वो कहते है हम न्योर्क गए थे हम जर्मनी गए थे आपरेशन करवाने ! वो राम देव जी के यहाँ गए थे ! और 3 महीने लोकी का रस पीकर आए है ! आकर फिर clinic मे आपरेशन करने लग गए है ! और वो आपको नहीं बताते कि आप भी लोकी का रस पियो !!
तो मित्रो जो ये रामदेव जी बताते है वे भी वागवट जी के आधार पर ही बताते है !! वागवतट जी कहते है रकत की अमलता कम करने की सबे ज्यादा ताकत लोकी मे ही है ! तो आप लोकी के रस का सेवन करे !!
कितना करे ?????????
रोज 200 से 300 मिलीग्राम पियो !!
कब पिये ??
सुबह खाली पेट (toilet जाने के बाद ) पी सकते है !!
या नाश्ते के आधे घंटे के बाद पी सकते है !!
_______________
इस लोकी के रस को आप और ज्यादा छारीय बना सकते है ! इसमे 7 से 10 पत्ते के तुलसी के डाल लो
तुलसी बहुत छारीय है !! इसके साथ आप पुदीने से 7 से 10 पत्ते मिला सकते है ! पुदीना बहुत छारीय है ! इसके साथ आप काला नमक या सेंधा नमक जरूर डाले ! ये भी बहुत छारीय है !!
लेकिन याद रखे नमक काला या सेंधा ही डाले ! वो दूसरा आयोडीन युक्त नमक कभी न डाले !! ये आओडीन युक्त नमक अम्लीय है !!!!
तो मित्रो आप इस लोकी के जूस का सेवन जरूर करे !! 2 से 3 महीने आपकी सारी heart की blockage ठीक कर देगा !! 21 वे दिन ही आपको बहुत ज्यादा असर दिखना शुरू हो जाएगा !!!
_____
कोई आपरेशन की आपको जरूरत नहीं पड़ेगी !! घर मे ही हमारे भारत के आयुर्वेद से इसका इलाज हो जाएगा !! और आपका अनमोल शरीर और लाखो रुपए आपरेशन के बच जाएँगे !!
और पैसे बच जाये ! तो किसी गौशाला मे दान कर दे ! डाक्टर को देने से अच्छा है !किसी गौशाला दान दे !! __________________
आपने पूरी post पढ़ी आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!
शनिवार, 16 मार्च 2013
हस्तक्षेप A TO Z
दीपक चौरसिया को सबक सिखाया काटजू ने
रणधीर सिंह सुमन
उसी तरह से आज प्रेस काउन्सिल ऑफ़ इण्डिया के चेयरमैन जस्टिस मार्कण्डेय काटजू का साक्षात्कार इंडिया न्यूज़ के एंकर दीपक चौरसिया ने टेलीकास्ट करना शुरू किया। साक्षात्कार पहले दौर में तो अच्छे तरीके से चला किन्तु दीपक चौरसिया की टिप्पणी पर जस्टिस मार्कण्डेय काटजू भारी पड़े। जस्टिस मार्कण्डेय काटजू से जैसे ही दीपक चौरसिया ने कहा कि आप अधूरा सच कहते हैं। जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने कहा कि आरोप मत लगाइये। इंटरव्यू समाप्त। मिसबिहेव मत करिये। आप आधा सच और आधा झूठ, इस तरह की बेवकूफी की बातें कर रहे हैं। बिहेव करना सीखिये। आप मुझसे बहुत छोटे हैं। आपने आधा सच कहकर मेरे ऊपर आरोप लगाया है। मुझे माफ़ कर दीजिये और जाइये गेट आउट। तब से इंडिया न्यूज़ ने पद की गरिमा और भाषा की मर्यादा को लेकर हल्ला मचाना शुरू कर दिया है।
एंकर होने का मतलब यह नहीं है कि आप जिस तरीके से चाहें आरोप-प्रत्यारोप करते रहें और सम्बंधित आदमी चुप रहे। जस्टिस
वास्तव में देखा जाये तो जब ये मल्टीनेशनल कम्पनियों के सीईओ, उद्योगपतियों आदि से एंकर इंटरव्यू लेते हैं तो इनकी भाषा शैली बड़ी शालीन होती है क्योंकि सम्बंधित चैनल को उनसे कुछ न कुछ उम्मीद जरूर होती है लेकिन राजनेताओं, अधिकारियों से चाहे जिस तरीके से बात करो। उनसे हर तरीके की सुविधायें भी लो और गुर्राओ भी। इलेक्ट्रॉनिक चैनल्स समाज के प्रति जिम्मेदारी कम महसूस करते हैं और टीआरपी को बढ़ाने के प्रति ज्यादा उत्साहित रहते हैं। इलेक्ट्रॉनिक चैनल्स के छोटे-छोटे कर्मचारी गाँव-देहात से लेकर राजधानी तक गुर्राने के अतिरिक्त काम कम करते हैं। शालीनता, शिष्टाचार इन्हें छू नहीं गया है। इस घटना से सभी इलेक्ट्रॉनिक चैनल्स को सबक लेना चाहिये। जिसका वह साक्षात्कार ले रहे हैं। उस पर आरोप नहीं लगाना चाहिये बल्कि उसकी बात को का प्रेषण करना चाहिये।
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दीपक चौरसिया को सबक सिखाया काटजू ने
जब
ये एंकर मल्टीनेशनल कम्पनियों के सीईओ, उद्योगपतियों आदि से एंकर इंटरव्यू
लेते हैं तो इनकी भाषा शैली बड़ी शालीन होती है क्योंकि सम्बंधित चैनल को
उनसे कुछ न कुछ उम्मीद जरूर होती है लेकिन राजनेताओं, अधिकारियों से चाहे
जिस तरीके से बात करो। उनसे हर तरीके की सुविधायें भी लो और गुर्राओ भी।
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