सर्वप्रथम समकालीन तापमान से जुड़े युवा पत्रकार अमित कुमार ने वेब पोर्टल बिहार खोज खबर डाट काम के बारे में बताया कि कैसे यह पोर्टल विश्लेषणपरक रिपोर्टों के साथ-साथ साहित्य व संस्कृति से जुड़ी खबरों को सामने लाने की केाशिश कर रहा है। अमित कुमार ने बताया मौर्या कांपलेक्स में युवा पत्रकारों, संस्कृतिकर्मियों आदि ने मिलकर इस पोर्टल केा शुरू किया। तय हुआ कि सिर्फ बातचीत ही न की जाए बल्कि सार्थक भी हस्तक्षेप किया जाए। जिसके माडरेटर का जिम्मा सामाजिक सराकारों वाले पत्रकार अरूण सिंह ने संभाला। मुख्य धारा की मीडिया अपने स्वभावगत चरित्र की वजह से जिन खबरों, खासकर साहित्य-संस्कृति से जुड़ी खबरों को, तरजीह नहीं देता उसे बिहार खोज खबर डाट काम में सामने लाने की केाशिश की जा रही है। अमित कुमार ने वहां उपस्थित श्रोताओं से यह आग्रह भी किया कि आप एक बार इस पोर्टल के देखें। मीडिया के बारे में बोलते हुए अमित कुमार ने बताया ‘‘एक दशक पहले तक अखबारों के पुलआउट संजोकर रखने लायक होते थे। अखबार भले बिक जाए पर वो पन्ना रहता था पर अब तो हम उसे देखते तक नहीं हैं। उसे निकालकर किनारे कर देते हैं। ऐसा माना जाता है कि बाजार के प्रभाववश साहित्य-संस्कृति को जगह नहीं मिलती। लोकसंस्कृति के
विमर्श की शुरूआत करते हुए युवा पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता निखिल आनंद ने उदाहरण देते हुए कहा कि ‘‘अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त इतिहासकार एवं बिहार के महान विभूति रामशरण शर्मा की मृत्यु की खबर सीतामढ़ी में रहने वाले एक जागरूक व्यक्ति को नहीं लग पाती। इससे अंदाजा होता है कि मीडिया की नजर में ऐसे लोग जिन्होंने इस राज्य के साथ-साथ देश भर में महत्वपूर्ण योगदान दिया उसके लिए कोई मतलब नहीं है।’’ निखिल आनंद ने आगे बताया कि ‘‘70 का दशक संक्रमण का काल था। 90 का दशक मंडल-मंदिर का
कई उदाहरण देकर निखिल ने बताया कि कैसे हमारे मीडिया में एक क्लास बायस-वर्गीय पूर्वाग्रह- काम करता है। जहां गरीब लोगों की आवाज नहीं पहुंच पाती। निखिल ने साथ ही ये भी बताया कि कैसे छोटी जगहों की खबरों को हमसे दबाया जा रहा है। ‘‘नाॅलेज सोसायटी के दौर में खबरों को सेंसर किया जा रहा है। खबरों को रोका जा रहा है, बाधित किया जा रहा है। मनेर, मुजफ्फरपुर की खबरों को हमसे छुपाया जा रहा है।’’ निखिल ने मीडिया में आ रही नयी पीढ़ी पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा ‘‘विभिन्न मीडिया कालेज से पढ़े छात्र ऐसे आ रहे हैं जो सोमनाथ चटर्जी जैसे लोगों से इंटरव्यू लेने के बाद उनसे उनका नाम पूछता है।’’ अंत में निखिल आनंद ने मशहूर पत्रकार सुरेंद्र प्रताप सिंह को उद्धृत करते हुए कहा‘‘ वे कहा करते थे कि जिन खबरों का अंत ‘गा’ ‘गे’ ‘गी’ से होता है वो खबर ही नहीं है। आज सब अखबारों में देखिए सब ओर दिखाई देगा कि पुल बनेगा, सड़क बनेगा आदि आदि। सब ओर लग रहा है कि प्रचार चल रहा है, केाई एजेंडा है इसके पीछे।’’
‘आबादी’, ‘अग्नि पाथर’ एवं ‘गहरे पानी पैठ’ जैसे उपन्यासों की रचना करने वाले वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी व्यास जी ने पुराने समय
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3 Comments
- Abhishek Keshav wrote on 26 November, 2011Kafi acha aur bewak tasweer hai media ki aur ascharya ye ki wo bhi media ke logon ke dwara .
- मुसाफिर बैठा wrote on 26 November, 2011बिहार खोज खबर भी ‘ निर्लज्ज और नपुंसक’ का गोतिया भाई ही अनेक मौकों पर साबित हुआ है…………….यह काना मामा मात्र की भूमिका में है, कोई उल्लेखनीय अवदान इसका नहीं है अबतक…..
- Ashish Anchinhar wrote on 9 December, 2011भाइ मुसाफिर आपके कथन से सहमति है मेरी।
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