मैं हैरान हूं
महादेवी वर्मा
( इतिहास में छिपाई गई एक कविता).
" मैं हैरान हूँ यह सोचकर
किसी औरत ने क्यों नहीं उठाई उंगली?
तुलसीदास पर जिसने कहा
ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी.
ये सब ताड़न के अधिकारी."
मैं हैरान हूँ
क्यों नहीं जलाई मनु स्मृति
जिसने पहनाई उन्हें
गुलामी की बेड़ियाँ?
मैं हैरान हूँ
किसी औरत ने क्यों नहीं धिक्कारा?
उस राम को
जिसने गर्भवती पत्नी सीता को,
परीक्षा के बाद भी
निकाल दिया घर के बाहर.
मैं हैरान हूँ
किसी औरत ने लानत क्यों नहीं भेजी
उन सबको, जिन्होने
"औरत को समझ कर वस्तु"
लगा दिया था दाव पर
होता रहा नपुंसक योद्धाओं के बीच
समूची औरत जाति का चीरहरण?
महाभारत में?
मैं हैरान हूँ
यह सोचकर
कि किसी औरत ने क्यों नहीं किया
संयोगिता, अंबा- अंबालिका के दिन दहाड़े
अपहरण का विरोध?
आज तक
और मै हैरान हूँ
इतना कुछ होने के बाद भी
क्यों अपना श्रद्धेय मानकर
पूजती हैं मेरी माँ बहनें
उन्हें देवता- भगवान मानकर?
मैं हैरान हूँ
उनकी चुप्पी देखकर
इसे अपनी सहनशीलता कहूं या
अंध श्रद्धा या फिर
मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा
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