राजदीप सरदेसाई

भारत में अक्सर ‘प्रेस की स्वतंत्रता’ को लेकर चर्चाएं होती रहती है। 3 मई को मनाए जाने वाले विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भारत में भी
प्रेस की स्वतंत्रता पर बातचीत होना लाजिमी है, क्योंकि
तमाम देशों के अलावा भारत में भी प्रेस की आजादी
पर खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है और यह बात दुनियाभर की मीडिया पर नजर रखने वाली
संस्था ‘रिपोर्टर्स
विदाउट बॉर्डर्स’ द्वारा जारी की
गई सालाना रिपोर्ट में सामने आई है। दरअसल, रिपोर्ट यह बताती है कि भारत में प्रेस
की आजादी पहले के मुकाबले कम हुई है। प्रेस की आजादी को लेकर 180 देशों में किए गए
सर्वेक्षण में भारत को 136वां स्थान मिला है, जबकि पहले भारत का स्थान 133वां था
यानी भारत तीन स्थान नीचे गिरा है। इसी संदर्भ में हिंदी दैनिक प्रभात खबर के
डिजिटल विंग में वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई का एक आलेख प्रकाशित किया है, जिसे
आप यहां पढ़ सकते हैं-
प्रेस के लिए
यह आत्मचिंतन का समय
भारत में प्रेस की आजादी को लेकर
जो भी रैंकिंग आयी है, उसके बारे में मैं कुछ नहीं कहूंगा।
लेकिन, इतना जरूर है कि यह बहुत शर्मनाक बात है कि हमारे
जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की आजादी की स्थिति पर कोई खतरा मंडराये। इस
स्थिति के लिए किसी एक व्यक्ति या एक संस्था को जिम्मेवार मानना बहुत गलत होगा।
लेकिन, इसके साथ ही यह भी सत्य है कि यह हमारे लिए आत्मचिंतन
का समय है। यह आत्मचिंतन सरकारों को करनी है, नेताओं को करनी
है, पत्रकार बंधुओं को करनी है, रिपोर्टरों
को करनी है और खास तौर पर पत्रकारिता संस्थानों के मालिकों को करनी है, कि हम किस तरह की पत्रकारिता चाहते हैं।
आज यह आत्मचिंतन का विषय है कि हम
क्यों पत्रकार बने या आनेवाली पीढ़ियों में कोई क्यों पत्रकार बने। आज ये सवाल
हमें अपने आप से पूछने हैं। साथ ही, किसी रैंकिंग आदि
को देख कर यह समझना भी गलत है कि हम (प्रेस) बिल्कुल भी आजाद नहीं है। लेकिन,
इतना सच जरूर है कि मीडिया में खास तौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में
आजकल खबरें कम, एजेंडा ज्यादा चलाया जा रहा है। यहीं आकर
सबसे ज्यादा गलतियां होती हैं, क्योंकि खबरों को इकट्ठा
करनेवालों पर संस्थान मालिकों का दबाव होता है। ज्यादातर तो मालिक ही संपादक होते
हैं, जो एजेंडा चलाये जाने के जाल में फंस जाते हैं। दरअसल,
एजेंडा चलाना आज के दौर में मीडिया का बिजनेस मॉडल है और यह मॉडल जब
तक रहेगा, तब तक तो प्रेस पर सवाल उठते रहेंगे कि आखिर वह
कितना आजाद है और उस पूंजी कितनी हावी है।
यहां पर एक बात बड़ी महत्वपूर्ण हो
जाती है। वह यह कि मौजूदा दौर की वेब पत्रकारिता यानी डिजिटल मीडया इस बिजनेस मॉडल
से थोड़ी अप्रभावित है, क्योंकि इसे चलाने में कम खर्च होने के
चलते इस पर दबाव कम रहता है। फिर भी, मैं इस बात को नहीं
मानता कि आज का मीडिया (इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट) पूरी तरह से पूंजी के दबाव में है
या सारे पत्रकार बिक गये हैं। बल्कि, मैं समझता हूं कि आज भी
ज्यादातर पत्रकार बहुत ही ईमानदारी से काम करते हैं। हालांकि, कुछ लोग हैं, जो सारे पत्रकारों को एक ही श्रेणी में
रखने की गलती कर रहे हैं।
लेकिन, इस स्थिति के लिए मीडिया संस्थान मालिक और उसके संपादक ज्यादा जिम्मेवार
हैं, बजाय इसके कि कोई रिपोर्टर। प्रेस की आजादी को लेकर जो
भी सवाल उठाये जा रहे हैं, इसका जवाब हमें खुद तलाशना होगा
और हमें अपने आप को ही आईने में देखना होगा कि हम कहां गलत हैं। हम इस बात के लिए
किसी दूसरे पर निर्भर नहीं कर सकते कि वह हमें हमारी गलतियां बताये। यहीं आकर ही
हमें एक बार फिर यह सोचना पड़ेगा कि हम पत्रकार क्यों बने। हम पर अकसर आरोप लगाये
जाते हैं कि मीडिया बिक गया है या फिर सरकार के दबाव में काम कर रहा है, तो मैं समझता हूं कि इसका हल भी हमारे ही पास है और वह यह है कि हम इस बात को गहराई से समझें कि सरकारें आती-जाती रहती हैं,
उन्हें पांच-दस साल ही रहना है, लेकिन मीडिया को
तो हमेशा रहना है, चाहे जिस किसी की भी सरकार हो। इसलिए हमें
ही यह तय करना है कि हमें अपना काम किस तरीके से करना है। किस दबाव को नकारना है
और किस सरोकार को लोगों के सामने ले आना है। किसके आगे चलना है और किस चीज की तह
में जाना है।
हमारा देश एक बड़ा और लोकतांत्रिक
देश है, इसलिए यहां प्रेस की आजादी, उसके वजूद और इसकी अहमियत का हमेशा सम्मान होना चाहिए, क्योंकि प्रेस ही लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने का काम करता है। इसलिए
यह लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है, जब मीडिया सरकारों के
सामने झुकने लग जाये। मीडिया का दायित्व है कि वह सरोकारों को जिंदा रखे और लोगों
को सच ही दिखाये-पढ़ाये। तभी मुमकिन है कि हम किसी रैंकिंग से परे जाकर प्रेस को
एक सार्थक और सच्चा आयाम दे सकते हैं।
(साभार: प्रभात खबर)
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