पत्रकारिता (मीडिया) का प्रभाव समाज पर लगातार बढ़ रहा है। इसके बावजूद यह पेशा अब संकटों से घिरकर लगातार असुरक्षित हो गया है। मीडिया की चमक दमक से मुग्ध होकर लड़के लड़कियों की फौज इसमें आने के लिए आतुर है। बिना किसी तैयारी के ज्यादातर नवांकुर पत्रकार अपने आर्थिक भविष्य का मूल्याकंन नहीं कर पाते। पत्रकार दोस्तों को मेरा ब्लॉग एक मार्गदर्शक या गाईड की तरह सही रास्ता बता और दिखा सके। ब्लॉग को लेकर मेरी यही धारणा और कोशिश है कि तमाम पत्रकार मित्रों और नवांकुरों को यह ब्लॉग काम का अपना सा उपयोगी लगे।
शुक्रवार, 17 मार्च 2017
सोशल मीडिया बनाम न्यू मीडिया के मायने
नया मीडिया (इंटरनेट, सोशल मीडिया, ब्लॉगिंग, गूगल और फेसबुक आदि) : इतिहास और वर्तमान
न्यू मीडिया-New Media
प्रस्तुति- स्वामी शरण
आज का दौर ‘न्यू मीडिया’ का है। वह दौर गया जब समाचारों को जल्दी में लिखा गया इतिहास कहने के साथ ही ‘News Today-History Tomorrow’ कहा जाता था, अब तो ‘News This Moment-History Next Moment’
का दौर है। बिलों को जमा करने, नौकरी-परीक्षा के फॉर्म भरने-जमा करने, फोन
करने, पढ़ने व खरीददारी आदि के लिए लम्बी लाइनों का दौर बीते दौर की बात
होने जा रहा है, और जमाना ‘लाइन’ में लगने का नहीं रहा, ऑनलाइन’ होने का आ गया है।
ऐसी स्थितियां न्यू मीडिया की वजह से आई हैं। न्यू मीडिया के साथ स्वयं भी
यही हो रहा है। वह स्वयं भी लगातार स्वरूप बदल रहा है। देश को
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘डिजिटल इंडिया’ बनाने की बात कर रहे हैं। अपने
ताजा अमेरिका दौरे के दौरान डिजिटल इंडिया को रफ्तार देने सिलिकॉन वैली के
दौरे पर पहुंचे प्रधानमंत्री के कुछ वक्तव्य न्यू मीडिया की बानगी पेश करते
हैं:
दुनिया बदलने वाले आइडियाज सिलिकॉन वैली से ही निकलते हैं।
मैं आप में से अनेक से दिल्ली, न्यूयार्क, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर मिल चुका हूं। यह हमारे नए पड़ोसी हैं।
अगर फेसबुक एक देश होता, तो जनसंख्या के मामले में दुनिया में तीसरे नंबर का देश होता।
मोदी ने कहा-जुकरबर्ग दुनियां को जोड़ने का कार्य कर रहे हैं।
सूचना प्रोद्योगिकी ने आज के दौर को ‘Real Time Information’
यानी ‘वास्तविक समय की सूचनाओं’ का बना दिया है। पहले जनता के सरकारों को
उनकी गलतियां बताने के लिए पांच साल में समय मिलता था, पर आज वह हर पांच
मिनट में ऐसा कर सकते हैं ।
उन्होंने 27 सितंबर को गूगल के मुख्यालय पहुंचकर गूगल के भारतीय मूल के सीईओ सुंदर पिचई के साथ गूगल का 17वां जन्म दिन भी मनाया।
दुनिया ने कम्प्यूटिंग से संचार तक, मनोरंजन से शिक्षा तक, डॉक्यूमेंट
प्रिंट करने से प्रॉडक्ट प्रिंट करने तक और इंटरनेट ऑफ थिंग्स तक, काफी कम
समय में काफी लंबा रास्ता तय कर लिया है।
आजकल गूगल के टीचरों को कम प्रेरणादायक और बड़े-बुजुर्गों को ज्यादा
बेकार बना दिया है, जबकि ट्विटर ने हर किसी को रिपोर्टर बना दिया है।
अब आप जग रहे हैं या सोए हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है कि आप ऑनलाइन हैं या ऑफलाइन। युवाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण बहस बन गई है कि एंड्राइड, आईओएस या विंडोज में से किसे चुनना चाहिए।
यहां तय हुआ कि भारत गूगल के साथ मिलकर 500 से ज्यादा रेलवे स्टेशनों
पर वाई-फाई लगाएगा। माइक्रोसॉफ्ट के साथ देश के पांच लाख गांवों में कम
लागत में बॉडबैंड की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
जब आप सोशल मीडिया या एक सर्विस के विस्तार के पैमाने और गति के बारे
में सोचते हैं तो आपको यह मानना ही पड़ता है कि उम्मीद के मुहाने पर लंबे
वक्त से खड़े लोगों की जिंदगी भी इसके साथ-साथ बदली जा सकती है। मित्रो, इसी
धारणा से पैदा हुआ है-डिजिटल इंडिया।
हम चाहते हैं कि हमारे नागरिक हर ऑफिस में अत्यधिक कागजान के बोझ से
मुक्त हो जाएं। हम बिना कागजों के लेन-देन करना चाहते हैं। हम हर नागरिक के
लिए डिजिटल लॉकर सेट-अप करेंगे, जिसमें वह अपने निजी दस्तावेज रख सकें, जो
कई विभागों में काम आ सकते हैं।
इंटरनेट क्या है ?
इंटरनेट कम्प्यूटरों को आपस में बिना तार के जोड़ने वाले नेटवर्कों का नेटवर्क यानी न्यू मीडिया का मूलभूत कारक है। Internet
& Mobile Association of India की ताजा रिपोर्ट (अक्टूबर 2015) के
अनुसार भारत में 35 करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट का प्रयोग कर रहे हैं। विश्व
के 160 से अधिक देश इसके सदस्य हैं, और दुनिया में सवा चार अरब से अधिक
लोग इसके प्रयोगकर्ता हैं। यही कारण है कि इसे विश्व का नेटवर्क माना जाता
है। यह विश्व भर के शैक्षणिक, औद्योगिक, सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं और
व्यक्तियों को आपस में जोड़ता है। यह विश्व भर के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर काम
करने वाली नेटवर्क प्रणालियों को एक मानक प्रोटोकोल के माध्यम से जोड़ने
में सक्षम हैं। इसका कोई केंद्रीय प्राधिकरण नहीं है। मात्र विभिन्न
नेटवर्कों के बीच परस्पर सहमति के आधार पर इसकी परिकल्पना की गई है। यह
सहमति इस बात पर है कि सभी प्रयोक्ता संस्थाएँ इस पर संदेश के आदान-प्रदान
के लिए एक ही पारेषण (Transmission) भाषा या प्रोटोकोल का प्रयोग करेंगी।
सन 1969 में विंटर सर्फ ने इंटरनेट सोसायटी का गठन किया था और कुछ मेनफ्रेम
कंप्यूटरों को परस्पर जोड़ दिया था। इंटरनेट सोसायटी मात्र स्वैच्छिक
संस्थाओं का संगठन है, जो इंटरनेट के मानकों का निर्धारण करती है और उसके
माध्यम से तकनीकी विकास पर नजर रखती है।
कंप्यूटर नेटवर्क क्या है ?:
कंप्यूटर नेटवर्क स्वतंत्र और स्वायत्त
कंप्यूटरों का संकलन है। इन्हें कई तरीकों से आपस में जोड़ा जा सकता है। एक
कार्यालय या स्कूल, अस्पताल आदि के बहुत छोटे सीमित क्षेत्र के कम्प्यूटरों
को आपस में जोड़ने के नेटवर्क को लोकल एरिया नेटवर्क (Local Area Network) या LAN कहा जाता है। वहीं 1 से 2 किमी की परिधि में विभिन्न कंप्यूटरों को परस्पर जोड़ने के नेटवर्क को Metropolitan Area Network- ‘MAN’ कहा जाता है। लगभग 40 से 50 किमी से अधिक की परिधि में फैले कंप्यूटर नेटवर्क को Wide Area Network- ‘WAN’ कहा जाता है। इंटरनेट के प्रयोग कंप्यूटर को ‘होस्ट’ (Host) कहा जाता है और उसे एक विशिष्ट नाम दिया जाता है। इस विशिष्ट नाम में होस्ट का नाम और प्रयोग क्षेत्र (Domain Name)
का उल्लेख होता है। प्रयोग क्षेत्र के भी कई भाग होते हैं, जिनसे होस्ट के
संगठन की जानकारी मिलती है। अमेरिका की एक संस्था ‘एनआईसी’ द्वारा होस्ट
का नामकरण किया जाता है। प्रत्येक कंप्यूटर वस्तुतः दूसरे कंप्यूटर को
विशिष्ट अंकों से पहचानता है, किंतु मनुष्य के लिए शाब्दिक नाम की पहचान
ज्यादा सहज है, इसलिए प्रत्येक कंप्यूटर या होस्ट को प्रयोक्ताओं की सुविधा
के लिए शाब्दिक नाम से ही पुकारा जाता है। वस्तुतः आंतरिक प्रोटोकोल एक
ऐसी विशिष्ट संख्या है, जिससे इंटरनेट पर होस्ट को पहचाना जा सकता है।
अन्तरजाल-Internet की विकास यात्रा और इतिहास:
सर्वप्रथम 1958 में ग्राहम बेल ने टेलीफोन
की खोज की, जिससे बाइनरी डाटा संचारित करने वाले मॉडम की शुरुआत भी हुई।
आगे 1962 में जेसीआर लिकलिडर ने कम्प्यूटरों के जाल यानी इंटरनेट का
प्रारंभिक रूप तैयार किया था। 1966 में डारपा (मोर्चाबंदी प्रगति अनुसंधान
परियोजना अभिकरण) (DARPA) ने आरपानेट के रूप में कम्प्यूटर जाल बनाया, जो
कि चार स्थानों से जुडा था। 1969 में अमेरिकी रक्षा विभाग के द्वारा
स्टैनफोर्ड अनुसंधान संस्थान के कंप्यूटरों की नेटवर्किंग करके इंटरनेट की
संरचना की गई। 1971 में संचिका अन्तरण नियमावली (FTP) विकसित हुआ, जिससे
संचिका अन्तरण करना आसान हो गया। बाद में इसमें भी कई परिवर्तन हुए और 1972
में बॉब कॉहन ने अन्तर्राष्ट्रीय कम्प्यूटर संचार सम्मेलन में इसका पहला
सजीव प्रदर्शन किया। इंटरनेट नाम: शुरुआत में अमरीकी सेना ने इंटरनेट का
निर्माण किया। अमेरिकी सेना की सूचना और अनुसंधान संबंधी आवश्यकताओं को
ध्यान में रखते हुए 1973 में ‘यूएस एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी’ ने
कम्प्यूटरों के द्वारा विभिन्न प्रकार की तकनीकी और प्रौद्योगिकी को
एक-दूसरे से जोड़कर एक ‘नेटवर्क’ बनाने तथा संचार संबंधी मूल बातों
(कम्यूनिकेशन प्रोटोकॉल) को एक साथ एक ही समय में अनेक कम्प्यूटरों पर
नेटवर्क के माध्यम से देखे और पढ़े जाने के उद्देश्य से एक कार्यक्रम की
शुरुआत की। इसे ‘इन्टरनेटिंग प्रोजेक्ट’ नाम दिया गया जो आगे चलकर
‘इंटरनेट’के नाम से जाना जाने लगा। 1980 के दशक के अंत तक अंतर्राष्ट्रीय
स्तर पर नेटवर्क सेवाओं व इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में अभूतपूर्व
वृद्धि हुई और इसका इस्तेमाल व्यापारिक गतिविधियों के लिये भी किया जाने
लगा। इसी वर्ष बिल गेट्स का आईबीएम के साथ कंप्यूटरों पर एक माइक्रोसॉफ्ट
ऑपरेटिंग सिस्टम लगाने के लिए सौदा हुआ। आगे आगे 1 जनवरी 1983 को आरपानेट
(ARPANET) एक बार पुनः पुर्नस्थापित हुआ, और इसी वर्ष इंटरनेट समुदाय के
सही मार्गदर्शन और टीसीपी/आईपी के समुचित विकास के लिये अमरीका में इंटरनेट
एक्टीविटी बोर्ड (IAB) का गठन किया गया। इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स
तथा इंटरनेट रिसर्च टास्क फोर्स इसके दो महत्त्वपूर्ण अंग है। इंजीनियरिंग
टास्क फोर्स का काम टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के विकास के साथ-साथ अन्य
प्रोटोकोल आदि का इंटरनेट में समावेश करना है। जबकि विभिन्न सरकारी
एजन्सियों के सहयोग के द्वारा इंटरनेट एक्टीविटीज बोर्ड के मार्गदर्शन में
नेटवर्किंग की नई उन्नतिशील परिकल्पनाओं के विकास की जिम्मेदारी रिसर्च
टास्क फोर्स की है जिसमें वह लगातार प्रयत्नशील रहता है। इस बोर्ड व टास्क
फोर्स के दो और महत्त्वपूर्ण कार्य हैं-इंटरनेट संबंधी दस्तावेजों का
प्रकाशन और प्रोटोकोल संचालन के लिये आवश्यक विभिन्न आइडेन्टिफायर्स की
रिकार्डिग। आईडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग ‘इंटरनेट एसाइन्ड नम्बर्स अथॉरिटी’
उपलब्ध कराती है जिसने यह जिम्मेदारी एक संस्था ‘इंटरनेट रजिस्ट्री’ (आई.
आर.) को दे रखी है, जो ‘डोमेन नेम सिस्टम’ यानी ‘डीएनएस रूट डाटाबेस’ का भी
केन्द्रीय स्तर पर रखरखाव करती है, जिसके द्वारा डाटा अन्य सहायक ‘डीएनएस
सर्वर्स’ को वितरित किया जाता है। इस प्रकार वितरित डाटाबेस का इस्तेमाल
‘होस्ट’ तथा ‘नेटवर्क’ नामों को उनके यूआरएल पतों से कनेक्ट करने में किया
जाता है। उच्चस्तरीय टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के संचालन में यह एक
महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जिसमें ई-मेल भी शामिल है। उपभोक्ताओं को दस्तावेजों,
मार्गदर्शन व सलाह-सहायता उपलब्ध कराने के लिये समूचे इंटरनेट पर ‘नेटवर्क
इन्फोरमेशन सेन्टर्स’ (सूचना केन्द्र) स्थित हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर
जैसे-जैसे इंटरनेट का विकास हो रहा है ऐसे सूचना केन्द्रों की उच्चस्तरीय
कार्यविधि की आवश्यकता भी बढ़ती जाती है। इसी वर्ष नवंबर 1983 में पहली
क्षेत्रीय नाम सेवा पॉल मोकपेट्रीज द्वारा सुझाई गई। तथा इंटरनेट सैनिक और
असैनिक भागों में बाँटा गया। 1984 में एप्पल ने पहली बार फाइलों और
फोल्डरों, ड्रॉप डाउन मेनू, माउस, ग्राफिक्स आदि युक्त ‘आधुनिक सफल
कम्प्यूटर’ लांच किया। 1986 में अमरीका की ‘नेशनल सांइस फांउडेशन’ ने एक
सेकेंड में 45 मेगाबाइट संचार सुविधा वाली ‘एनएसएफनेट’ सेवा का विकास किया
जो आज इंटरनेट पर संचार सेवाओं की रीढ़ है। इस प्रौद्योगिकी के कारण
‘एनएसएफनेट’ बारह अरब सूचना पैकेट्स को एक महीने में अपने नेटवर्क पर
आदान-प्रदान करने में सक्षम हो गया। इस प्रौद्योगिकी को और अधिक तेज गति
देने के लिए अमेरिका के ‘नासा’ और ऊर्जा विभाग ने अनुसंधान किया और
‘एनएसआईनेट’ और ‘ईएसनेट’ जैसी सुविधाओं को इसका आधार बनाया। आखिर 1989-90
मे टिम बर्नर्स ली ने इंटरनेट पर संचार को सरल बनाने के लिए ब्राउजरों,
पन्नों और लिंक का उपयोग कर के विश्व व्यापी वेब-WWW (वर्ल्ड वाइड
वेब-डब्लूडब्लूडब्लू) से परिचित कराया। 1991 के अन्त तक इंटरनेट इस कदर
विकसित हुआ कि इसमें तीन दर्जन देशों के पांच हजार नेटवर्क शामिल हो गए,
जिनकी पहुंच सात लाख कम्प्यूटरों तक हो गई। इस प्रकार चार करोड़ उपभोक्ताओं
ने इससे लाभ उठाना शुरू किया। इंटरनेट समुदाय को अमरीकी फेडरल सरकार की
सहायता लगातार उपलब्ध होती रही क्योंकि मूल रूप से इंटरनेट अमरीका के
अनुसंधान कार्य का ही एक हिस्सा था, और आज भी यह न केवल अमरीकी अनुसंधान
कार्यशाला का महत्त्वपूर्ण अंग है, वरन आज की इंटरनेट प्रणाली का बहुत बड़ा
हिस्सा भी शिक्षा व अनुसंधान संस्थानों एवं विश्व-स्तरीय निजी व सरकारी
व्यापार संगठनों की निजी नेटवर्क सेवाओं से ही बना है। 1996 में गूगल ने
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में एक अनुसंधान परियोजना शुरू की जो कि दो साल
बाद औपचारिक रूप से काम करने लगी। 2009 में डॉ स्टीफन वोल्फरैम ने
‘वोल्फरैम अल्फा’ की शुरुआत की।
इंटरनेट यानी अन्तरजाल की विकास यात्रा
1958 ग्राहम बेल ने टेलीफोन की खोज की, जिससे बाइनरी डाटा संचारित करने वाले मॉडम की शुरुआत भी हुई।
1962 में जेसीआर लिकलिडर ने कम्प्यूटरों के जाल यानी इंटरनेट का
प्रारंभिक रूप तैयार किया। वे चाहते थे कि कम्प्यूटर का एक एसा जाल हो,
जिससे आंकड़े, आदेश और सूचनायें भेजी जा सकें।
1966 में डारपा (मोर्चाबंदी प्रगति अनुसंधान परियोजना अभिकरण) (DARPA) ने आरपानेट के रूप में कम्प्यूटर जाल बनाया।
1969 में इंटरनेट अमेरिकी रक्षा विभाग के द्वारा स्टैनफोर्ड अनुसंधान
संस्थान के कंप्यूटरों की नेटवर्किंग करके इंटरनेट की संरचना की गई।
1972 में बॉब कॉहन ने अन्तर्राष्ट्रीय कम्प्यूटर संचार सम्मेलन में
इसका पहला सजीव प्रदर्शन किया। 1979 में ब्रिटिश डाकघरों का पहला
अंतरराष्ट्रीय कंप्यूटर नेटवर्क बना कर इस नयी प्रौद्योगिकी का उपयोग करना
आरम्भ किया गया।
1973 में ‘यूएस एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी’ ने कम्प्यूटरों के
द्वारा विभिन्न प्रकार की तकनीकी और प्रौद्योगिकी को एक-दूसरे से जोड़कर एक
‘नेटवर्क’ बनाने तथा संचार संबंधी मूल बातों (कम्यूनिकेशन प्रोटोकॉल) को एक
साथ एक ही समय में अनेक कम्प्यूटरों पर नेटवर्क के माध्यम से देखे और पढ़े
जाने के उद्देश्य से ‘इन्टरनेटिंग प्रोजेक्ट’ नाम के एक कार्यक्रम की
शुरुआत की, जो आगे चलकर ‘इंटरनेट’के नाम से जाना गया।
1980 में बिल गेट्स का आईबीएम के साथ कंप्यूटरों पर एक माइक्रोसॉफ्ट ऑपरेटिंग सिस्टम लगाने के लिए सौदा हुआ।
1980 के दशक के अंत तक नेटवर्क सेवाओं व इंटरनेट उपभोक्ताओं में
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अभूतपूर्व वृद्धि हुई और इसका इस्तेमाल व्यापारिक
गतिविधियों के लिये भी किया जाने लगा।
1983 में इंटरनेट समुदाय के सही मार्गदर्शन और टीसीपी/आईपी के समुचित
विकास के लिये अमरीका में ‘इंटरनेट एक्टिविटीज बोर्ड’ का गठन किया गया।
इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स तथा इंटरनेट रिसर्च टास्क फोर्स इसके दो
महत्त्वपूर्ण अंग है। इंजीनियरिंग टास्क फोर्स का काम टीसीपी/आईपी
प्रोटोकोल के विकास के साथ-साथ अन्य प्रोटोकोल आदि का इंटरनेट में समावेश
करना है। जबकि विभिन्न सरकारी एजन्सियों के सहयोग के द्वारा इंटरनेट
एक्टीविटीज बोर्ड के मार्गदर्शन में नेटवर्किंग की नई उन्नतिशील
परिकल्पनाओं के विकास की जिम्मेदारी रिसर्च टास्क फोर्स की है जिसमें वह
लगातार प्रयत्नशील रहता है। इस बोर्ड व टास्क फोर्स के दो और महत्त्वपूर्ण
कार्य हैं-इंटरनेट संबंधी दस्तावेजों का प्रकाशन और प्रोटोकोल संचालन के
लिये आवश्यक विभिन्न आइडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग। आईडेन्टिफायर्स की
रिकार्डिग ‘इंटरनेट एसाइन्ड नम्बर्स अथॉरिटी’ उपलब्ध कराती है जिसने यह
जिम्मेदारी एक संस्था ‘इंटरनेट रजिस्ट्री’ (आई आर) को दे रखी है, जो ही
‘डोमेन नेम सिस्टम’ यानी ‘डीएनएस रूट डाटाबेस’ का केन्द्रीय रखरखाव करती
है, जिसके द्वारा डाटा अन्य सहायक ‘डीएनएस सर्वर्स’ को वितरित किया जाता
है। इस प्रकार वितरित डाटाबेस का इस्तेमाल ‘होस्ट’ तथा ‘नेटवर्क’ नामों को
उनके यूआरएल पतों से कनेक्ट करने में किया जाता है। उच्चस्तरीय टीसीपी/आईपी
प्रोटोकोल के संचालन में यह एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जिसमें ई-मेल भी
शामिल है। उपभोक्ताओं को दस्तावेजों, मार्गदर्शन व सलाह-सहायता उपलब्ध
कराने के लिये समूचे इंटरनेट पर ‘नेटवर्क इन्फोरमेशन सेन्टर्स’ (सूचना
केन्द्र) स्थित हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जैसे-जैसे इंटरनेट का विकास
हो रहा है ऐसे सूचना केन्द्रों की उच्चस्तरीय कार्यविधि की आवश्यकता भी
बढ़ती जाती है।
1983 की एक जनवरी को आरपानेट (ARPANET) पुर्नस्थापित हुआ। इसी वर्ष
एक्टीविटी बोर्ड (IAB) का गठन हुआ। नवंबर में पहली प्रक्षेत्र नाम सेवा
(DNS) पॉल मोकपेट्रीज द्वारा सुझाई गई।
1984 में एप्पल ने पहली बार फाइलों और फोल्डरों, ड्रॉप डाउन मेनू, माउस, ग्राफिक्स आदि युक्त ‘आधुनिक सफल कम्प्यूटर’ लांच किया।
1986 में अमरीका की ‘नेशनल सांइस फांउडेशन’ ने एक सेकेंड में 45
मेगाबाइट संचार सुविधा वाली ‘एनएसएफनेट’ सेवा का विकास किया जो आज भी
इंटरनेट पर संचार सेवाओं की रीढ़ है।
1989-90 में टिम बेर्नर ली ने इंटरनेट पर संचार को सरल बनाने के लिए
ब्राउजरों, पन्नों और लिंक का उपयोग कर के विश्व व्यापी वेब (WWW) वर्ल्ड
वाइड वेब-डब्लूडब्लूडब्लू से परिचित कराया।
1991 के अन्त तक इंटरनेट इतना विकसित हो गया कि इसमें तीन दर्जन देशों
के पांच हजार नेटवर्क शामिल हो गए, और इंटरनेट की पहुंच सात लाख
कम्प्यूटरों तक हो गई तथा चार करोड़ उपभोक्ताओं ने इससे लाभ उठाना शुरू कर
दिया।
1996 में गूगल ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में एक अनुसंधान परियोजना शुरू की जो कि दो साल बाद औपचारिक रूप से काम करने लगी।
2009 में डॉ स्टीफन वोल्फरैम ने ‘वोल्फरैम अल्फा’ की शुरुआत की।
भारत में इंटरनेट
भारत में इंटरनेट 1980 के दशक मे आया, जब
एर्नेट (Educational & Research Network) को भारत सरकार के
इलेक्ट्रानिक्स विभाग और संयुक्त राष्ट्र उन्नति कार्यक्रम (UNDP) की ओर से
प्रोत्साहन मिला। सामान्य उपयोग के लिये इंटरनेट 15 अगस्त 1995 से उपलब्ध
हुआ, जब विदेश सचांर निगम लिमिटेड (VSNL) ने गेटवे सर्विस शुरू की। भारत मे
इंटरनेट प्रयोग करने वालों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है, और
वर्तमान 400 मिलियन यानी 40 करोड़ से अधिक लोगों तक इंटरनेट की पहुंच हो
चुकी है, जो कि देश की कुल जनसंख्या का करीब 33 फीसदी और दुनिया के सभी
इंटरनेट प्रयोक्ता देशों के हिसाब से महज 10 फीसदी है। मौजूदा समय में
इंटरनेट का प्रयोग जीवन के सभी क्षेत्रों-सोशल मीडिया, ईमेल, बैंकिंग,
शिक्षा, ट्रेन इंफॉर्मेशन-रिजर्वेशन, ऑनलाइन शॉपिंग, अंतरिक्ष
प्रोद्योगिकी, बीमा, विभिन्न बिल घर बैठे जमा करने और अन्य सेवाओं के लिए
भी किया जा रहा है।
भारत में एक साल में बढ़े दस करोड़ नए इंटरनेट यूजर !
भारत ने टेलीफोन
उपभोक्ताओं की संख्या के मामले में कब अमेरिका को पीछे छोड़ा, यह बात शायद
ज्यादातर लोग भूल चुके हैं। अलबत्ता ताजा खबर यह है कि इंटरनेट प्रयोक्ताओं
की संख्या के मामले में भी भारत दिसंबर 2015 में अमेरिका से आगे निकल
जाएगा। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया और आईएमआरबी की ताजा रिपोर्ट
कहती है कि दिसंबर तक भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 40 करोड़ का
आंकड़ा पार कर जाएगी। आज चीन इस मामले में पहले और अमेरिका दूसरे नंबर पर
है। भारत ने यह करिश्मा यूं कर दिखाया कि पिछले एक साल में उसने इंटरनेट
प्रयोक्ताओं की संख्या में 49 फीसदी का भारी-भरकम इजाफा किया है। रिपोर्ट
कहती है कि भारत को एक करोड़ के आंकड़े से दस करोड़ तक पहुंचने में एक दशक
लगा था और दस करोड़ से बीस करोड़ तक पहुंचने में तीन साल लगे। लेकिन तीस
करोड़ से चालीस करोड़ तक पहुंचने में सिर्फ एक साल लगा है। इस रफ्तार को
देखते हुए आने वाले वर्षो में भारत में इंटरनेट के प्रयोग की स्थिति क्या
होगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। (बालेन्दु शर्मा दाधीच द्वारा राष्ट्रीय सहारा (उमंग) में 22 नवम्बर 2015 के अंक में लिखे गए एक लेख के अनुसार)
इस्टोनिया में इंटरनेट
इस्टोनिया में इंटरनेट पूर्णतया मुफ्त है।
यहां पूरे देश में वायरलेस इंटरनेट (वाई फाई) की फ्री एक्सेस है। यहां देश
की आबादी के 78 फीसद यानी 9,99,785 इंटरनेट प्रयोक्ता हैं। इस प्रकार यह
छोटा सा देश तकनीकी तौर पर पॉवर हाउस बन गया है। यहां एयरपोर्ट से लेकर
समुद्रतट या जंगल में, हर जगह इंटरनेट की पहुंच है। यहां 25 फीसदी वोटिंग
भी ऑनलाइन होती है, तथा इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड भी उपलब्ध रहते हैं।
यहां अभिभावक अपने बच्चों की स्कूल की डेली एक्टीविटी, टेस्ट के नंबर और
होमवर्क को ऑनलाइन देख सकते हैं। यहां एक बिजनेस ऑनलाइन सेटअप तैयार करने
में महज 18 मिनट का समय लगता है। यहां इंटरनेट का अधिकतर उपयोग ई-कॅामर्स
और ई-गवर्नमेंट सेवाओं के लिए होता है। यहां प्रेस और ब्लागर ऑनलाइन कुछ भी
कहने के लिए फ्री हैं। इस मामले में इस्टोनिया ने अमेरिका को पीछे कर
दूसरे स्थान पर छोड़ दिया है। ब्रांडबैंड से अधिकतर सुसज्जित यह देश डिजिटल
वर्ल्ड का एक मिथक बन कर उभरा है।
अमेरिका में इंटरनेट
अमेरिका की जनसंख्या 313 मिलियन हैं, जहां
245 मिलियन लोग इंटरनेट के प्रयोग कर्ता हैं। यहां पर इंटरनेट की पहुंच 78
फीसदी है और इस देश के लोग विश्व की 11 फीसदी आबादी इंटरनेट के प्रयोग
कर्ता के तौर पर शामिल हैं। इस्टोनिया के बाद इंटरनेट पर सबसे अधिक
स्वतंत्रता अमेरिका, जर्मन, ऑस्ट्रेलिया, हंगरी, इटली और फिलीपींस है। यह
देश दुनिया के अन्य देशों की तुलना में इंटरनेट पर अधिक स्वतंत्रता देता
है। यहां पर कांग्रेसनल बिल का विरोध कर रही हैं, जिसका इरादा प्राइवेसी और
नॉन अमेरिकी वेबसाइट होस्टिंग को लेकर है। आधे से अधिक अमेरिकी इंटरनेट पर
टीवी देखते हैं। यहां पर मोबाइल पर इंटरनेट का उपयोग हेल्थ, ऑन लाइन
बैंकिंग, बिलों का पेमेंट और सेवाओं के लिए करते हैं। इस प्रकार अमेरिका
विश्व का सबसे अधिक इंटरनेट से जुड़ा हुआ देश है।
जर्मनी में इंटरनेट
जर्मनी में इंटरनेट का उपयोग सबसे अधिक
सोशल मीडिया के उपयोग के लिए किया जा रहा है। वहीं अब अपनी अन्य जरूरतों,
बैंकिग, पर्सनल वर्क आदि के लिए भी किया जा रहा है। पिछले पांच वर्षो में
जर्मनी में ब्राडबैंड सेवाएं काफी सस्ती उपलब्ध हो रही हैं। इसकी कीमत इसकी
स्पीड आदि पर निर्भर करती है। यहां पर इंटरनेट से टीवी और टेलीफोन सेवाएं
भी एक साथ मिलती हैं। यहां की 73 फीसदी आबादी के घरों तक इंटनेट की पहुंच
उपलब्ध है। जर्मनी के स्कूलों में छात्रों को फ्री में कंप्यूटर और इंटरनेट
की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। जर्मनी में 93 फीसदी प्रयोग कर्ता के पास
डीएलएस कनेक्शन है। जर्मनी की आबादी 81 मिलियन डॉलर है और 67 मिलियन इंटनेट
प्रयोग कर्ता हैं। यहां 83 फीसदी इंटरनेट की एक्सेस है और विश्व के
इंटरनेट प्रयोग कर्ता की संख्या में यहां के लोगों की तीन फीसदी हिस्सेदारी
है।
इटली में इंटरनेट
इटली में इंटरनेट तक 58.7 फीसदी लोगों की
पहुंच है। यहां 35,800,000 लोग इंटरनेट के प्रयोग कर्ता हैं। यहां 78 फीसदी
लोग ईमेल भेजने और पाने के लिए इंटरनेट का प्रयोग किया जाता है। इसके
दूसरे नंबर पर 67.7 फीसदी प्रयोग कर्ता ने नॉलेज के लिए और 62 फीसदी प्रयोग
कर्ता ने गुड्स एंड सर्विसेज के लिए किया है। एक सर्वे के अनुसार 34.1
मिलियर मोबाइल प्रयोग कर्ता ने इंटरनेट को एक्सेस किया। इटली में इंटरनेट
(6 एमबीपीज, अनलिमिटेड डाटा केबिल्स एडीएसएल) 25 यूरो डॉलर में प्रतिमाह के
रेट से उपलब्ध है।
फिलीपींस में इंटरनेट
फिलीपींस में 10 लोगों में से केवल तीन
लोगों तक ही इंटरनेट की पहुंच है। हालांकि इस देश का दावा है कि यह सोशल
मीडिया के लिए विश्व का एक बड़ा सेंटर है। फिलीपींस में प्रयोग कर्ता को
इंटरनेट पर सबसे अधिक स्वतंत्रता मिली हुई है। यहां के लोग बिना किसी बाधा
के इंटरनेट का उपयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं। फिलीपींस की कुल जनसंख्या
(2011 के अनुसार) 1,660,992 है, जिनमें से 32.4 फीसदी लोगों तक इंटनेट की
पहुंच है। फिलीपींस के इंटरनेट प्रयोग कर्ता की संख्या 33,600,000 हैं।
यहां पर लोग सबसे अधिक इंटरनेट का उपयोग सोशल मीडिया के लिए करते हैं।
ब्रिटेन में इंटरनेट
ब्रिटेन की आबादी लगभग 63 मिलियन है और
यहां पर लगभग 53 मिलियन इंटरनेट प्रयोग कर्ता है। इंटरनेट की एक्सेस 84
फीसदी लोगों तक है, जो विश्व के कुल प्रयोग कर्ता की संख्या का दो फीसदी
हैं। यहां पर उच्च स्तर पर इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वातंत्रता मिली हुई
है। लेकिन हाल के वर्षो में सोशल मीडिया ट्विटर और फेसबुक पर लगाए आंशिक
प्रतिबंध ने इंटरनेट पर पूर्ण स्वतंत्रता वाले देश की श्रेणी से बाहर कर
दिया है। यहां पर इन सोशल मीडिया के सेवाओं पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
यूके में 86 फीसदी इंटरनेट प्रयोग कर्ता वीडियो साइट्स पर विजिट करते हैं।
यहां प्रयोग कर्ता प्रति माह 240 मिलियन घंटे ऑन लाइन वीडियो कंटेंट देखते
हैं।
हंगरी में इंटरनेट
हंगरी में 59 फीसदी लोग इंटरनेट के प्रयोग
कर्ता हैं। पिछले 1990 से डायल अप कनेक्शनों की संख्या बढ़ी है। यहां वर्ष
2000 से ब्राडबैंड कनेक्शनों की संख्या में काफी तेजी आई। यहां 6,516,627
इंटरनेट प्रयोग कर्ता हैं। यहां के प्रयोग कर्ता अधिकतर कॉमर्शियल और
मार्केटिंग मैसेज के लिए इंटरनेट का उपयोग करते हैं।
ऑस्ट्रेलिया में इंटरनेट
ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या 22,015,576 है,
जिसमें से 19,554,832 इंटरनेट प्रयोग कर्ता हैं। ऑस्ट्रेलिया में इंटरनेट
पर ऑनलाइन कंटेट में प्रयोग कर्ता को काफी हद तक स्वतंत्रता मिली हुई है।
वह सभी राजनीतिक, सोसाइटल डिस्कोर्स, ह्यूमन राइट के उल्लंघर आदि की
जानकारी हासिल कर लेता है। ऑस्ट्रेलिया में इंटरनेट की उपलब्धता दर 79
फीसदी है। ऑस्ट्रेलिया के लोग अपने घरों से कई काम अपने मोबाइल पर कर लेते
हैं।
अर्जेंटीना में इंटरनेट
अर्जेंटीना में पहली बार 1990 में इंटरनेट
का उपयोग वाणिज्यक उपयोग के लिए शुरू किया गया था, हालाकि पहले इस पर
एकेडमिक दृष्टिकोण से फोकस किया जा रहा था। दक्षिणी अमेरिका का यह अब सबसे
बड़ा इंटनेट का उपयोग करने वाला देश है। यहां की अनुमानित जनसंख्या
42,192,492 है, जिसमें 28,000,000 लोग इंटरनेट प्रयोग कर्ता हैं। यह कुल
संख्या के लगभग 66.4 फीसदी है। यहां 20,048,100 लोग फेसबुक पर हैं।
दक्षिण-अफ्रीका में इंटरनेट
दक्षिण-अफ्रीका में पहली इंटनेट कनेक्शन
1998 में शुरू किया गया था। इसके बाद इंटरनेट का कार्मिशियल उपयोग 1993 से
शुरू हुआ। अफ्रीका महाद्वीप में विकास की तुलना में दक्षिण अफ्रीका 13 वां
सबसे अधिक इंटनेट की एक्सेस वाला देश है। इंटरनेट के उपयोग के मामले में यह
देश अफ्रीका के अन्य देशों से कही आगे है। एक अनुमान के अनुसार यहां की
जनसंख्या 48,810,427 है, जिनमें से 8,500,000 इंटरनेट प्रयोग कर्ता हैं।
जापान में इंटरनेट
जापान में इंटरनेट का उपयोग अधिकतर
ब्लॉगिंग के लिए करते हैं। जापान की संस्कृति में ब्लॉग बड़ा रोल अदा करते
हैं। औसतन जापन का एक प्रयोग कर्ता 62.6 मिनट अपने समय का उपयोग ब्लॉग पर
करता है। इसके बाद दक्षिण कोरिया के प्रयोग कर्ता हैं, जो 49.6 मिनट और
तीसरे स्थान पर पोलैंड के प्रयोग कर्ता हैं, जो 47.7 मिनट अपना वक्त ब्लांग
पर देते हैं।
ब्राजील में इंटरनेट
यहां 42 फीसदी लोग हर दिन सोशल मीडिया के
लिए इंटरनेट का उपयोग करते हैं। 18 से 24 साल आयु वर्ग के युवा सबसे अधिक
इंटनेट का उपयोग कर रहे हैं। मैट्रोपोलिटन शहरों में इंटरनेट का उपयोग टीवी
देखने के लिए बहुत अधिक हो रहा है।
तुर्केमेनिस्तान में इंटरनेट की सबसे अधिक महंगी सेवा
दुनिया में इंटरनेट की सबसे अधिक महंगी
सेवा तुर्केमेनिस्तान में है। यहां अनलिमिटेड इंटनेट एक्सेस के लिए इंटरनेट
प्रयोग की कीमत डॉलर की दर से 2048 है, जो एक माह में 6,821.01 डॉलर तक
पहुंच जाती है। यहां सबसे सस्ती इंटरनेट सेवा 43.12 डॉलर प्रति माह में
प्रयोग कर्ता को 2 जीबी 64 केबीपीएस की दर ही मिल पाती है। जबकि रूस में
हाई स्पीड अनलिमिटेड इंटरनेट लगभग 20 डॉलर प्रति माह है।
सबसे तेज इंटरनेट स्पीड दक्षिण कोरिया में
एक रिपोर्ट के मुताबिक, इंटरनेट की तेज
स्पीड होने पर एक परिवार साल भर में इंटरनेट पर होने वाले खर्च में से करीब
5 लाख रुपये बचा सकता है। इसमें सबसे ज्यादा पैसा एंटरटेनमेंट, ऑन लाइन
डील, डेली सर्च और ट्रैवल में इस्तेमाल होने वाले इंटरनेट के रूप में बचा
सकता है। औसत वर्ल्ड वाइड डाउनलोड स्पीड 58 किलोबाइट प्रति सेकंड है।
दक्षिण कोरिया में इंटरनेट की औसत स्पीड दुनिया में सबसे अधिक है। यहां की
स्पीड 2202 केबीपीएस है। पूर्वी यूरोपीय देश रोमानिया दूसरे स्थान पर 1909
और बुल्गारिया तीसरे स्थान पर 1611 केबीपीएस के साथ है। स्पीड के मामले में
हांगकांग में इंटरनेट की औसत पीक (अधिकतम) स्पीड 49 एमबीपीएस है। जबकि
अमेरिका में 28 एमबीपीएस है।
इंटरनेट शब्दावली
अटैचमेन्ट या अनुलग्नकः यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके
द्वारा किसी भी प्रकार की फाइल मेल संदेश के साथ जोडकर इंटरनेट के माध्यम
से किसी को भी भेजी या प्राप्त की जा सकती है।
आस्की (ASCII): इसका अर्थ ‘अमेरिकन स्टैण्डर्ड कोड
फोर इंफर्मेशन इंटरचेंज’ है। यह नोट पैड मे सुरक्षित किये जाने वाले
टेक्स्ट का बॉयडिफाल्ट फार्मेट है। यदि आप नोट पैड मे किसी टेक्स्ट को
प्राप्त कर रहे है तो वह फार्मेट ASCII है।
ऑटो कम्प्लीटः यह सुविधा ब्राउसर के एड्रेस बार मे
होती है। इसके शुरू मे कुछ डाटा टाइप करते ही URL पूर्ण हो जाता है। इसके
लिये जरूरी है कि वह URL पहले प्रयोग किया गया हो।
एंटी वाइरस प्रोग्रामः इस प्रोग्राम मे कम्प्यूटर की मेमोरी मे छुपे हुए वाइरस को ढूंढ निकालने या सम्भव हो तो, नष्ट करने की क्षमता होती है।
बैंडविड्थः इसके द्वारा इंटरनेट की स्पीड नापी जाती है। बैंडविड्थ जितनी अधिक होगी, इंटरनेट की स्पीड उतनी ही ज्यादा होगी।
ब्राउसरः वर्ल्ड वाइड वेब पर सूचना प्राप्त करने मे
मददगार सॉफ्टवेयर को ब्राउसर कहते है। गूगल क्रोम, मोजिला फायर फॉक्स और
इंटरनेट एक्सप्लोरर सर्वाधिक प्रचलित ब्राउसर है। पूर्व में नेटस्केप
नेवीगेटर आदि भी लोकप्रिय थे। यह ऐसे सॉफ्टवेयर होते हैं, जो HTML और उससे
संबंधित प्रोग्राम को पढ़ सकते हैं।
बुकमार्कः ब्राउसर मे एक सुविधा, जिसकी मदद से प्रयोग
किए जा रहे लिंक पर बाद में सीधे पहुंचा जा सकता है। इंटरनेट एक्सप्लोरर
मे यह फेवरेट कहलाता है।
केशे या टेम्परेरी इंटरनेट एक्सप्लोररः सर्फिंग के
दौरान वेब पेज और उससे संबंधिंत चित्र एक अस्थायी भन्डार मे ट्रांसफर हो
जाते है। यह तब तक नही हटते है, जब तक इन्हे हटाया न जाये या ये रिपलेस न
हो जायें।
कुकीः यह वेब सर्वर द्वारा भेजा गया डेटा होता है, जिसे ब्राउसर द्वारा सर्फर के कम्प्यूटर मे एक संचिका मे स्टोर कर लिया जाता है।
डिमोड्यूलेशनः मोडेम से प्राप्त एनालॉग डेटा को डिजिटल डेटा मे बदलने की प्रक्रिया डिमोड्यूलेशन कहलाती है।
डाउनलोडः किसी फोटो, वीडियो आदि को इंटरनेट के माध्यम से वर्ल्ड वाइड वेब से अपने कम्प्यूटर पर कॉपी करने की प्रक्रिया डॉउनलोड कहलाती है।
क्षेत्रीय नाम पंजीकरणः किसी भी कम्पनी को अपनी
विशिष्ट पहचान कायम रखने के लिये अपनी कम्पनी का नाम पंजीकरण करवाना होता
है। यह प्रक्रिया इंटरनेट सर्विस प्रोवाडर की देख-रेख मे चलती है।
ई-कॉमर्सः इंटरनेट पर व्यापारिक लेखा-जोखा रखने की प्रक्रिया और नेट पर ही ख्ररीद-बिक्री की प्रक्रिया ई-कॉमर्स कहलाती है।
होम-पेजः वेब ब्राउसर से किसी साइट को खोलते ही जो पृष्ठ सामने खुलता है, वह उसका होम पेज कहलाता है।
FAQ (frequently asked question) : वेबसाइट पर किसी खास विषय से जुडे प्रश्नों के उत्तर प्राप्त किए जा सकते हैं।
डायल-अप कनेक्शनः एक कम्प्यूटर से मोडेम द्वारा
इंटरनेट से जुडे किसी अन्य कम्प्यूटर से स्टेंडर्ड फोन लाइन पर जुड़े
कनेक्शन को डायल अप कनेक्शन कहते है।
डायल-अप नेटवर्किंगः किसी पर्सनल कम्प्यूटर को किसी अन्य पर्सनल कम्प्यूटर पर, LAN और इंटरनेट से जोडने वाले प्रोग्राम को ‘डायल अप नेटवर्किंग’ कहते है।
डायरेक्ट कनेक्शनः किसी कम्प्यूटर या LAN और इंटरनेट
के बीच स्थायी सम्पर्क को डायरेक्ट कनेक्शन कहा जाता है। यदि फोन कनेक्शन
कम्पनी से टेलीफोन कनेक्शन लीज पर लिया जाता है, तो उसे लीज्ड लाइन कनेक्शन
कहते है।
HTML (हाइपर टेक्स्ट मार्कअप लेंग्वेज) : वर्ल्ड वाइड वेब पर डाक्यूमेंट के लिये प्रयोग होने वाली मानक मार्कअप भाषा HTML भाषा कहलाती है।
HTTP(हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकाल): वर्ल्ड वाइड वेब पर सर्वर से किसी प्रयोग कर्ता तक दस्तावेजों को ट्रांसफर करने वाला कम्यूनिकेशन प्रोटोकाल HTTP कहलाता है।
सामाजिक या सोशल मीडिया
आज
के दौर को सोशल मीडिया का दौर भी कहा जाता है। सोशल मीडिया में स्वयं की
सक्रिय भागेदारी होती है, जिससे प्रयोक्ता अधिक अपनापन महसूस करता है, वह
खुलकर अपनी बात रख सकता है, और अपनी कृतियों पर दूसरों की प्रतिक्रियाएं
चाहता है, और उनकी उम्मीद में अधिक सक्रिय रहता है। सोशल मीडिया की ही ताकत
है कि 2004 में आया फेसबुक अगर एक देश होता, तो जनसंख्या के मामले में
दुनिया में तीसरे नंबर का देश होता। जनवरी 2009 (कहीं फ़रवरी 2010 का भी
उल्लेख) में उक्रेन के 37 साल जन कूम द्वारा मेरिका के 44 साल के ब्रायन
एक्टन के साथ मिलकर शुरू किये गए व्हाट्सएप्प
के दुनियां में 90 करोड़ उपयोगकर्ता हो गए हैं। हमारे कई नेता आजकल दिनभर
में ट्विटर पर के ‘ट्वीट’ करके समाचार चैनलों और समाचार पत्रों की
सुर्ख़ियों में छाये रहते हैं। पिछले दिनों ललित मोदी लन्दन में बैठकर भारत
की पूरी राजनीति को अपने ‘ट्वीटस’ से मनमाफिक तरीके से घुमाये रहे।
सोशियल नेटवर्किंग साइट्सः
सोशियल नेटवर्किंग साइट्स इंटरनेट माध्यम
पर उपलब्ध ऐसी साइट्स हैं, जिन पर हम अपने संपर्कों का दायरा बढ़ाते हुऐ
अधिकाधिक लोगों तक अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। सोशियल
नेटवर्किंग साइट्स एक तरह की वेबसाइट्स हैं, जिनसे जुड़कर इस साइट पर जुड़े
अन्य लोगों से भी जुड़ा जा सकता हैं। चूंकि इन साइट्स पर देश-दुनिया के
अरबों लोग जुड़े रहते हैं, इसलिये इनसे जुड़ने पर हम परोक्ष-अपरोक्ष रूप से
इन लोगों से जुड़ जाते हैं, या जुड़ सकते हैं। इन लोगों में हमारे वर्तमान और
कई बार बरसों पूर्व बिछड़ चुके दोस्त तथा सैकड़ों-हजारों किमी दूर रह रहे
परिजन, मित्र हो सकते हैं, जिनसे हम इन साइटों पर जुड़ने के बाद बिना किसी
शुल्क के जितनी देर चाहें, चैटिंग या संदेशों के माध्यम से बात,
विचार-विमर्श कर सकते हैं। अपने विचारों को ब्लॉग लिखकर पूरी दुनिया के
सामने रख सकते हैं, यही नहीं एक-दूसरे से फोटो और वीडियो भी देख सकते हैं।
और अब तो वीडियो कॉल के जरिये आमने-सामने बैठे जैसे बातें भी कर सकते हैं,
जबकि अन्य किसी माध्यम से ऐसे वार्तालाप बेहद महंगे होते हैं। लिहाजा
सोशियल साइट्स काफी लोकप्रिय होती जा रही हैं।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। खुद को अधिक
पापुलर दिखाने का उसे शौक रहता है। अधिक पापुलर दिखना यानी अधिक दोस्त
होना। सोशियल नेटवर्किंग साइट्स मनुष्य के इसी मनोविज्ञान को खूब भुना रही
हैं। दूसरे, व्यक्ति अपने किसी विचार पर तत्काल बहुत से लोगों की
प्रतिक्रियायें जानना चाहता है। मीडिया में भी ऐसे “टू-वे कम्युनिकेशन”
की ही अपेक्षा की जाती है। सोशियल साइटें तत्काल प्रतिक्रिया और तारीफें
दिलाकर मनुष्य के इस मनोविज्ञान की पूर्ति करती रहती हैं। आस्ट्रेलिया की
कंपनी यू-सोशल तथा कई अन्य कंपनियां तो सोशियल साइटों पर पैंसे देकर दोस्त
उपलब्ध कराने का गोरखधंधा भी करने लगी हैं। इनका दावा है कि 125 पाउंड देने
पर एक हजार दोस्त उपलब्ध कराऐंगे। पर अक्सर ऐसे दोस्त व कंपनियां फर्जी ही
होती हैं। आज के दौर में दुनिया में दो तरह की सिविलाइजेशन यानी
संस्कृतिकरण की बात भी कही जाने लगी है, वर्चुअल और फिजीकल सिविलाइजेशन। सोशियल मीडिया इसी वर्चुअल सिविलाइजेशन का एक स्टेशन
है। कहा जा रहा है कि आने वाले समय में जल्द ही दुनिया की आबादी से दो-तीन
गुना अधिक आबादी इंटरनेट पर होगी। दरअसल, इंटरनेट एक ऐसी टेक्नोलाजी के
रूप में हमारे सामने आया है, जो उपयोग के लिए सबको उपलब्ध है और सर्वहिताय
है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स संचार व सूचना का सशक्त जरिया हैं, जिनके
माध्यम से लोग अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं। यही से सामाजिक
मीडिया का स्वरूप विकसित हुआ है। सामाजिक या सोशल मीडिया के कई रूप हैं
जिनमें कि इंटरनेट फोरम, वेबलॉग, सामाजिक ब्लॉग, माइक्रो ब्लागिंग, विकीज, सोशल नेटवर्क, पॉडकास्ट, फोटोग्राफ, चित्र, चलचित्र आदि
सभी आते हैं। अपनी सेवाओं के अनुसार सोशल मीडिया के लिए कई संचार
प्रौद्योगिकी उपलब्ध हैं। सामाजिक मीडिया अन्य पारंपरिक तथा सामाजिक तरीकों
से कई प्रकार से एकदम अलग है। इसमें पहुंच, आवृत्ति, प्रयोज्य, ताजगी और
स्थायित्व आदि तत्व शामिल हैं। इंटरनेट के प्रयोग से कई प्रकार के प्रभाव
होते हैं। निएलसन के अनुसार ‘इंटरनेट प्रयोक्ता अन्य साइट्स की अपेक्षा
सामाजिक मीडिया साइट्स पर ज्यादा समय व्यतीत करते हैं’। माइक्रो ब्लॉगिंग की
यह बिधा विख्यात हस्तियों को भी लुभा रही है। इसीलिये ब्लॉग अड्डा ने
अमिताभ बच्चन के ब्लॉग के बाद विशेषकर उनके लिये माइक्रो ब्लॉगिंग की
सुविधा भी आरंभ की है।
सोशियल मीडिया का इतिहासः
1994 में सबसे पहला सोशल मीडिया जीओ साइट
के रूप में सामने आया। इसका उद्देश्य एक ऐसी वेबसाइट बनाना था, जिससे लोग
अपने विचार और बातचीत आपस में साझा कर सकें। वर्तमान में विश्व में जो करीब
2.2 अरब लोग इंटरनेट का प्रयोग करते हैं, उनमें से फेसबुक पर एक अरब,
ट्विटरर पर 20 करोड़, गूगल प्लस पर 17.5 करोड़, लिंक्ड इन पर 15 करोड़ से अधिक
सदस्य हैं। सोशल साइट के प्रति लोगों की दीवानगी इससे समझी जा सकती है कि
एक अध्ययन के अनुसार लोग फेसबुक पर औसतन 405 मिनट, ट्विटर पर 21 मिनट,
लिंक्डइन पर 17 मिनट व गूगल प्लस पर तीन मिनट व्यतीत करते हैं।
सोशल मीडिया के लाभ/सकारात्मक प्रभाव:
संपर्कों का दायरा बढ़ाते हुऐ अधिकाधिक लोगों तक अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
अपने विचार, फोटो और वीडियो चाहें तो पूरी दुनिया या अपने दोस्तों के बीच शेयर कर सकते हैं। इन पर त्वरित प्रतिक्रिया- ‘टू-वे कम्युनिकेशन’ भी प्राप्त कर पाते हैं।
अपने विचारों को ब्लॉग लिखकर पूरी दुनिया के सामने रख सकते हैं, और अब
तो वीडियो कॉल के जरिये आमने-सामने बैठे जैसे बातें भी कर सकते हैं, जबकि
यह सुविधा अन्य माध्यमों से बेहद महंगी है।
अपनी लिखी सामग्री को ‘लाइब्रेरी’ के रूप में हमेशा के लिए
सहेज कर भी रख सकते हैं, तथा इसे जब चाहे तब स्वयं भी, और चाहे तो पूरी
दुनियां के लोग भी उपयोगी होने पर ‘सर्च’ कर प्राप्त कर सकते हैं।
सोशल साइट पूर्व में छूटे दोस्तों को मिलाने और नए वर्चुअल दोस्त बनाने
और दुनिया को विश्व ग्राम यानी ‘ग्लोबल विलेज’ बनाने का माध्यम भी बना है।
अपनी बात, विचार बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं।
सदुपयोग करें तो सोशल मीडिया ज्ञान प्राप्ति का उत्कृष्ट माध्यम बन
सकता है। इसके माध्यम से मित्रों से उपयोगी पाठ्य सामग्री आसानी से प्राप्त
की जा सकती है, और सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा सकता है।
अन्ना एवं रामदेव के आंदोलन में दिखी सोशियल साइट्स की ताकत: वर्ष 2013
में समाजसेवी अन्ना हजारे के आंदोलन को दिल्ली से पूरे देशव्यापी बनाने
में सोशियल साइट्स की बड़ी भूमिका देखी गई। सही अर्थों में इस दौरान सोशियल
साइट्स ने समाज को मानों हाथों से हाथ बांध एक सूत्र में पिरो दिया। स्वामी
रामदेव के आंदोलन में भी सोशियल साइट्स की बड़ी भूमिका रही। देश में
राजनीतिक परिवर्तन, आर्थिक नीतियों, धार्मिक व सांस्कृतिक मुद्दों पर भी
सोशियल साइट्स पर खूब चर्चा रही। इस से संबंधित विषयों पर कई अलग ग्रुप,
पेज और कॉज यानी बड़े मुद्दे तैयार कर उन पर भी लोग अलग से चर्चा होने लगी।
सोशियल नेटवर्किंग साइट्स के नकारात्मक प्रभाव:
सामाजिक मीडिया के व्यापक विस्तार के साथ-साथ इसके कई नकारात्मक पक्ष
भी उभरकर सामने आ रहे हैं। पिछले वर्ष मेरठ में हुयी एक घटना ने सामाजिक
मीडिया के खतरनाक पक्ष को उजागर किया था। वाकया यह हुआ था कि एक किशोर ने
फेसबुक पर एक ऐसी तस्वीर अपलोड कर दी जो बेहद आपत्तिजनक थी। इस तस्वीर के
अपलोड होते ही कुछ घंटे के भीतर एक समुदाय के सैकडों गुस्साये लोग सडकों पर
उतार आए। जब तक प्रशासन समझ पाता कि माजरा क्या है, मेरठ में दंगे के
हालात बन गए। प्रशासन ने हालात को बिगडने नहीं दिया और जल्द ही वह फोटो
अपलोड करने वाले तक भी पहुुंच गया। लोगों का मानना है कि परंपरिक मीडिया के
आपत्तिजनक व्यवहार की तुलना में नए सामाजिक मीडिया के इस युग का आपत्तिजनक
व्यवहार कई मायने में अलग है। नए सामाजिक मीडिया के माध्यम से जहां गडबडी
आसानी से फैलाई जा सकती है, वहीं लगभग गुमनाम रहकर भी इस कार्य को अंजाम
दिया जा सकता है। हालांकि यह सच नहीं है, अगर कोशिश की जाये तो सोशल मीडिया
पर ऐसे लोगों को आसानी से पकड़ा जा सकता है, और इन घटनाओं की पुनरावृति को
रोका भी जा सकता है। इससे पूर्व लंदन व बैंकुवर में भी सोशल मीडिया से दंगे
भड़के और दंगों में शामिल कई लोगों को वहां की पुलिस ने पकडा और उनके खिलाफ
मुकदमे भी दर्ज किए। मिस्र के तहरीर चौक और ट्यूनीशिया के जैस्मिन
रिवोल्यूशन में इस सामाजिक मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को कैसे नकारा जा
सकता है।
विश्वसनीयता का अभाव : विश्वसनीयता का अभाव सोशल
मीडिया की सबसे बड़ी कमजोरी है। यही कमजोरी सोशल मीडिया को ‘मीडिया माध्यम’
कहे जाने पर भी सवाल उठा देती है। क्योंकि ‘विश्वसनीयता’ ‘मीडिया माध्यम’
की पहली और सबसे आवश्यक शर्त और विशेषता है।
अवांछित सूचनाओं की भरमार : सोशल मीडिया की वजह से आज हमारे जीवन में सूचनाओं की भरमार हो गयी है। इसीलिए इस दौर में ‘सूचना विस्फोट’ होने
की बात भी कही जाती है। लेकिन यह भी सच है कि उपलब्ध सूचनाओं में
अधिकाँश अवांछित होती हैं। इसीलिए कई बार हम सैकड़ों-हजारों की संख्या में
आने वाली अनेक सूचनाओं को बिना पढ़े भी आगे बढ़ जाते हैं, और कई बार ऐसा करने
पर वांछित और जरूरी सूचनाएँ भी बिना पढ़े निकल जाती हैं। यहां तक कहा जाने लगा है कि आज का युग ‘सूचनाओं का युग’ जरूर है पर ज्ञान का नहीं। यानी सूचनाओं में ज्ञान की कमी है।
धन-समय की बर्बादी: यदि अधिकाँश सूचनाएँ अवांछित हों
तो निश्चित ही नया मीडिया धन और समय की बर्बादी ही है। इसका उपभोग करने के
लिए ‘स्मार्ट फोन’ खरीदने से लेकर ‘नेट पैक’ भरवाने में धन तो पल-पल
संदेशों के आने पर मूल कार्यों को छोड़कर उनकी और ध्यान आकृष्ट करना पड़ता
है। व्हाट्सएप्प पर तो अवांछित होने के बावजूद हर फोटो को ‘डाउनलोड’ करना
पड़ता है, जिससे ‘डाटा’ और ‘फोन या कार्ड की मेमोरी’ की बर्बादी होती है।
राष्ट्रीय सहारा 08.10.2015लत, तलब और मानसिक बीमारी का कारण : शहरी युवाओं को
इंटरनेट व सोशल मीडिया की लत सी लग गई है। इसे प्रयोग करते-करते इसकी किसी
नशे जैसी ‘तलब’ लग जाती है। इंटरनेट के लती लोग मोबाइल को आराम देने के लिए
ही सो पा रहे हैं। इस तरह यह अपने प्रयोगकर्ताओं को मानसिक रूप से बीमार
भी कर रहा है। एसोसिएट चैंबर ऑफ कॉमर्श (एसोचेम) की वर्ष 2014 की देश के कई
मेट्रो शहरों में कराए गए एस सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार 8 से 13 वर्ष
की उम्र के 73 फीसदी बच्चे फेसबुक जैसी सोशल साइटों से जुड़े हुए हैं, जबकि
उन्हें इसकी इजाजत नहीं है। शोधकर्ताओं के अनुसार इन बच्चों के 82 फीसदी
माता-पिताओं ने बच्चों को खुद का समय देने के बजाय उन्हें व्यस्त रखने के
लिए खुद ही बच्चों के नाम से फेसबुक अकाउंट्स बनाए थे। वहीं अमेरिका की
यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया में मनोविज्ञान के प्रोफेसर टिमोथी विल्सन नकी
‘साइंस मैगजीन’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार 67 फीसद पुरुष और 25 फीसद
महिलाएं मोबाइल, टैब, कम्प्यूटर, टीवी, म्यूजिक व बुक आदि इलेक्ट्रानिक गजट
के बिना 15 मिनट भी सुकून से नहीं रह पाए और विचलित हो गए, तथा उन्होंने
इसकी जगह इलेक्ट्रिक शॉक लेना मंजूर कर लिया। टिमोथी के अनुसार हमारा दिमाग
‘मल्टी टास्किंग’ का अभ्यस्त हो गया है, तथा हम ‘हाइपर कनेक्टेड’ दुनिया
में रह रहे हैं, तथा इसके बिना जीना हमें बेहद मुश्किल और कष्टदायी लगता
है। आज लोग आमने-सामने की मुलाकात की जगह ‘वर्चुअल संवाद’ करना अधिक पसंद
कर रहे हैं। सलाह दी जा रही है कि अधिकतम दिन में दो-तीन बार 15-20 मिनट का
समय ही इनके निश्चित करना चाहिए।
भेड़चालः पिछले दिनों जबकि मशहूर गायक जगजीत सिंह
जीवित थे, उन्हें ट्विटर पर श्रद्धांजलि दे दी गई। माइक्रो ब्लगिंग साइट
ट्विटर पर 25 सितंबर 2011 को मशहूर गजल गायक जगजीत सिंह की मौत की अफवाह ने
उनके चाहने वालों के होश उड़ा दिए। हर कोई उन्हें श्रद्धांजलि देने लगा।
देखते ही देखते (RIP Jagjit Singh) यानी रेस्ट इन पीस जगजीत सिंह ट्वीट
ट्विटर ट्रेंड्स में सबसे ऊपर आ गया। गौरतलब है कि इस दौरान जगजीत सिंह
ब्रेन हेमरेज के बाद मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती थे। डाक्टरों ने
बताया कि ब्रेन सर्जरी के बाद उनकी हालत स्थिर बनी हुई है। ट्विटर ट्रेंड्स
में जिसने भी रेस्ट इन पीस जगजीत सिंह ट्वीट देखा, वह भेड़चाल में जगजीत
सिंह को श्रद्धांजलि देने लगा। बाद में, जैसे-जैसे लोगों को अपनी गलती का
एहसास हुआ, तो फिर माफी मांगने और ट्वीट डिलीट करने का सिलसिला शुरू हुआ।
लेकिन, फिर भी श्रद्धांजलि देने वालों की संख्या माफी मांगने वालों के
मुकाबले कहीं ज्यादा रही।
मूल कार्य पर पड़ता नकारात्मक प्रभाव: सोशल नेटवर्किंग
साइटें नई पीढ़ी के लोगों को जोड़ने का अच्छा जरिया भले ही हों, मगर इसके कई
नुकसान भी झेलने पड़ रहे हैं। इंडस्ट्री चैंबर एसोचौम ने दिल्ली, बेंगलुरु,
चेन्नई, इंदौर, मुंबई, पुणे, चंडीगढ़ और कानपुर में करीब 4,000 कार्पोरेट
कर्मचारियों द्वारा दिए गए जवाब पर आधारित अपनी एक नई स्टडी के आधार पर
बताया है कि कार्पोरेट सेक्टर के कर्मचारी दफ्तरों में हर रोज औसतन एक घंटा
वक्त ट्विटर और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों पर बरबाद कर रहे हैं,
जिससे उनकी करीब साढ़े 12 फीसदी प्रोडक्टिविटी यानी उत्पादकता पर खासा असर
पड़ रहा है। इसी कारण कई आईटी कंपनियों ने इन साइटों का इस्तेमाल बंद करने
के लिए अपने सिस्टम्स में साफ्टवेयर लगा दिए हैं।
रिश्तों में विश्वास का अभाव: अक्सर सोशियल
नेटवर्किंग साइट्स पर दोस्ती के साथ ही खासकर लड़के-लड़कियों में मित्रता के
खूब रिश्ते बनते हैं। ऐसे अनेक वाकये चर्चा में भी रहते हैं कि अमुख ने
फेसबुक जैसी सोशियल साइट्स के जरिये बने रिश्तों को विवाह के बंधन में
तब्दील कर दिया, अथवा शादी के नाम पर धोखाधड़ी हुई। वर्चुअल मोड में बातचीत
होने की वजह से कई बार बेमेल संपर्क बनने की बात भी प्रकाश में आई। लेकिन
दूसरी ओर भाई-बहन जैसे रिश्तों को यहां कमोबेश नितांत अभाव ही दिखता है। एक
फेसबुक मित्र के अनुसार अनेक लड़कियां उनकी वॉल पर भाई का संबोधन करती हैं,
पर रक्षाबंधन के दिन मात्र एक ने उन्हें ऑनलाइन राखी का फोटो टैग किया।
फ्लर्ट का माध्यमः सच्चाई यह है कि सोशियल साइट्स पर
अधिकांश युवा खासकर आपस में फ्लर्ट ही कर रहे हैं। यहां तक कि इंटरनेट पर
कई ऐसी साइट्स भी तैयार हो गई हैं जो युवाओं को सोशियल साइट्स पर फ्लर्ट
करना सिखा रही हैं।
अश्लीलता को मिल रहा बढ़ावा: सोशियल नेटवर्किंग साइट्स
पर काफी हद तक अश्लीलता को बढ़ावा मिल रहा है। आप यहां अपनी बहन की सुंदर
फोटो भी लगा दें तो उस पर थोड़ी देर में ही ऐसी-ऐसी अश्लील टिप्पणियां आ
जाऐंगी, कि आपके समक्ष शर्म से उस फोटो को हटा लेने के अलावा कोई विकल्प
नहीं रहेगा।
प्राइवेसी को खतरा: सोशल नेटवर्किंग साइट्स अक्सर
उपयोगकर्ता की निजी जिंदगी का आइना होती हैं। यही वजह है कि कंपनियां भी
आजकल अपने कर्मचारियों की व्यक्तिगत जिंदगी के बारे में जानने के लिए ऐसी
सोशियल वेबसाइट्स में घुसपैठ कर रही हैं। इस तरह कर्मचारियों की प्राइवेसी
खतरे में है। कई कंपनियां अपने यहां कर्मचारियों को तैनात करने से पूर्व
उनके सोशियल साइट्स के खातों को भी खंगाल रही हैं, जहां से उन्हें अपने
भावी कर्मचारियों के बारे में अपेक्षाकृत सही जानकारियां हासिल हो जाती
हैं। इसी तरह शादी-विवाह के रिश्तों से पूर्व भी लोग सोशियल साइट को देखने
लगे हैं।
सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभावों पर सोशल मीडिया पर कुछ रोचक चुटकुले भी बेहद चर्चित हो रहे हैं :
पहले दो लोग झगडते थे, तो तीसरा छूडवाने जाता था. आजकल तीसरा वीडियो बनाने लगता है ।
2. ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सएप अपने प्रचंण्ड क्रांतिकारी दौर से गुजर रहा है कि हर नौसिखीया क्रांति करना चाहता है…
कोई बेडरूम में लेटे लेटे गौहत्या करने वालों को सबक सिखाने की बातें कर रहा है तो……
किसी के इरादे सोफे पर बैठे-बैठे महंगाई-बेरोजगारी या बांग्लादेशियों को उखाड फेंकने के हो रहे हैं…
हफ्ते में एक दिन नहाने वाले लोग स्वच्छता अभियान की खिलाफत और समर्थन कर रहे हैं ।
अपने बिस्तर से उठकर एक गिलास पानी लेने पर नोबेल पुरस्कार की उम्मीद
रखने वाले लोग बता रहे हैं कि मां बाप की सेवा कैसे करनी चाहिये ।
जिन्होंने आज तक बचपन में कंचे तक नहीं जीते वह बता रहे हैं कि ‘भारत रत्न’ किसे मिलना चाहिए ।
जिन्हें ‘गली क्रिकेट’ में इस शर्त पर खिलाया जाता था कि बॉल कोई भी
मारे पर अगर नाली में गयी तो निकालना उसे ही पड़ेगा वो आज कोहली को समझाते
पाये जायेंगे कि उसे कैसे खेलना है ।
देश में महिलाओं की कम जनसंख्या को देखते हुये उन्होंने नकली ID बना कर जनसंख्या को बराबर कर दिया है ।
जिन्हें यह तक नहीं पता कि हुमायूं बाबर का कौन था वह आज बता रहे हैं कि किसने कितनों को काटा था ।
कुछ दिन भर शायरियाँ ऐसे पेलेंगे जैसे ‘गालिब’ के असली उस्ताद तो वे ही हैं।
जो नौजवान एक बालतोड़ हो जाने पर रो-रो कर पूरे मोहल्ले में हल्ला मचा देते हैं वह देश के लिये सर कटा लेने की बात करते दिखेंगे ।
इनके साथ किसी भी पार्टी का समर्थक होने में समस्या यह है कि बिना एक
पल गंवाए ‘भाजपा’ समर्थक को अंधभक्त, ‘आप’ समर्थक को ‘उल्लू’ और ‘काँग्रेस’
समर्थक को ‘बेरोजगार’ करार दे देते हैं।
जिन्हें एक कप दूध पीने पर दस्त लग जाते हैं, वे हेल्थ की टिप दिए जा रहे हैं
वहीँ समाज के असली जिम्मेदार नागरिक नजर आते हैं ‘टैगिये’, इन्हें ऐसा
लगता है कि जब तक ये गुड मॉर्निंग वाले पोस्ट पर टैग नहीं करेंगे तब तक
लोगों को पता ही नही चलेगा कि सुबह हो चुकी है ।
जिनकी वजह से शादियों में गुलाब-जामुन वाले स्टॉल पर एक आदमी खड़ा रखना जरूरी होता है,वो आम बजट पर टिप्पणी करते पाये जाते हैं…
कॉकरोच देखकर चिल्लाते हुये दस किलोमीटर तक भागने वाले पाकिस्तान को धमका रहे होते हैं कि-“अब भी वक्त है सुधर जाओ”।
3. पहले लोग घर पर आते थे तो
उन्हें ‘पानी’ के लिए पूछने वाले बच्चे अच्छे माने जाते थे। अब आते ही
मोबाईल चार्ज करने के लिए पूछने वाले बच्चे अच्छे माने जाते हैं। आगंतुक भी
कहीं पहुंचते ही मोबाइल चार्जर ही पहले मांगता है।
कुछ प्रमुख सोशियल नेटवर्किंग साइट्स:
फेसबुक, ट्विटर, लिंक्ड-इन, फ्लिकर, गूगल प्लस, टू, माईस्पेस,वे एन, इन्स्टाग्राम (जून 2012 में शुरू)विण्डोज़ लाइव मॅसेञ्जर, ऑर्कुट, गूगल+, व्हाट्सएप्प व नेट लॉग के साथ ही यूट्यूब भी सोशियल नेटवर्किंग साइट्स में गिने जाते हैं। इनके अलावा भी बाडू,
बिग अड्डा, ब्लेक प्लेनेट, ब्लांक, बजनेट, क्लासमेट्स डॉट काम, कोजी कॉट,
फोटो लॉग, फ्रेंडिका, हॉटलिस्ट, आईबीबो, इंडिया टाइम्स, निंग, चीन के टॅन्सॅण्ट क्यूक्यू, टॅन्सॅण्ट वेइबो, क्यूजो़न व नॅटईज़, फ़्रांस के हाब्बो, स्काइप, बीबो, वीकोण्टैक्ट, सहित
100 से अधिक सोशियल नेटवर्किंग साइट भी देश-दुनिया में प्रचलित हैं।
बहरहाल, अपने अच्छे-बुरे प्रभावों के बावजूद आज सोशियल साइट्स आमतौर पर
इंटरनेट व कंप्यूटर का प्रयोग करने वाले बड़ी संख्या में लोगों के जीवन का
अभिन्न हिस्सा बन गये हैं। एक बार लोग इन्हें प्रयोग करने के बाद थोड़ी-थोड़ी
देर में यहां अपनी पोस्ट पर आने वाली टिप्पणियों को देखने से स्वयं को रोक
नहीं पाते। यह अलग बात है कि बहुत लोग इनका प्रयोग अपने अच्छे-बुरे
विचारों के प्रसार के लिये कर रहे हैं तो अन्य इनके जरिये अपने समय और धन
का दुरुपयोग भी कर रहे हैं।
फेसबुकः
फेसबुक एक सोशल नेटवर्किंग साइट है, जिसका आरंभ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक डोरमेट्री में चार फरवरी 2004 को एक छात्र मार्क जुकेरबर्ग ने किया था। तब इसका प्रारंभिक नाम ‘द फेसबुक’
था। कॉलेज नेटवर्किग जालस्थल के रूप में आरंभ के बाद शीघ्र ही यह कॉलेज
परिसर में लोकप्रिय होती चली गई। कुछ ही महीनों में यह नेटवर्क पूरे यूरोप
में पहचाना जाने लगा। अगस्त 2005 में इसका नाम फेसबुक कर
दिया गया। धीरे-धीरे उत्तर अमरीका की अन्य सबसे नामचीन स्टेनफर्ड तथा
बोस्टन विश्व विद्यालयों के छात्रों के लिए भी इसकी सदस्यता को खोल दिया
गया। बाद में 13 वर्ष की आयु से ऊपर के व्यक्ति के लिए फेसबुक की सदस्यता
स्वीकृत हुई।
मई 2011 की एक उपभोक्ता रिपोर्ट सर्वे के अनुसार, 7.5 मिलियन
13 साल से नीचे की उम्र के एवं 5 मिलीयन 10 साल के नीचे की उम्र के बच्चे
भी आज फेसबुक के सदस्य हैं।
सन 2009 तक आते आते, फेसबुक सर्वाधिक उपयोग में ली जानेवाली , व्यक्ति
से व्यक्ति के सम्पर्क की वेब साईट बन चुकी थी। इधर फेसबुक ने भारत सहित 40
देशों के मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों से समझौता किया है। इस करार के तहत
फेसबुक की एक नई साइट का उपयोग मोबाइल पर निःशुल्क किया जा सकेगा।
ट्विटर पर
140 कैरेक्टर के ‘स्टेट्स मैसेज अपडेट’ को अनगिनत सदस्यों के मोबाइल और
कंप्यूटरों तक भेजने की सुविधा थी, जबकि फेसबुक पर सदस्य 500 लोगो को ही
अपने प्रोफाइल के साथ जोड़ सकते हैं या मित्र बना सकते हैं।
फेसबुक से जुड़े कुछ तथ्य
फेसबुक पर बराक ओबामा की जीत संबंधी पोस्ट 4 लाख से अधिक लाइक के साथ फेसबुक पर सबसे ज्यादा पसंद किया गया फोटो बन गया।
फेसबुक के 25 फीसदी से ज्यादा यूजर्स किसी भी तरह के प्राइवेसी कंट्रोल को नहीं मानते।
इस सोशल नेटवर्किंग साइट के जुड़े हर व्यक्ति से औसत रूप से 130 लोग जुड़े हैं।
फेसबुक के साथ 850 मिलियन सक्रीय मासिक यूजर्स जुड़े हुए हैं।
इस नेटवर्किंग वेबसाइट के कुल यूजर्स में से 21 प्रतिशत एशिया से हैं, जो इस की महाद्वीप की कुल आबादी के चार प्रतिशत से कम है।
488 मिलियन यूजर्स रोज मोबाइल पर फेसबुक चलाते हैं।
फेसबुक पर सबसे ज्यादा पोस्ट ब्राजील से किए जाते हैं। वहां से हर माह लगभग 86 हजार पोस्ट किए जाते हैं।
23 प्रतिशत यूजर्स रोज पांच या उससे अधिक बार अपना फेसबुक अकाउंट चेक करते हैं।
फेसबुक पर 10 या उससे अधिक लाइक्स वाले 42 मिलियन पेज है।
1 मिलियन से अधिक वेबसाइट्स अलग अलग तरह से फेसबुक से जुड़ी हुई है।
85 प्रतिशत महिलाएं फेसबुक पर अपने दोस्तों से परेशान हैं।
फेसबुक ने 2012 में रूस, दक्षिण कोरिया, जापान, भारत और ब्राजील में अपने सक्रीय यूजर्स की संख्या में 41 फीसदी का इजाफा किया है।
इस सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर रोज 250 मिलियन फोटो रोज डाले जाते हैं।
2012 तक फेसबुक पर 210,000 साल का संगीत बज चुका था।
यहां पर सेक्स से जुड़ी लिंक्स की संख्या अन्य लिंक्स की की अपेक्षा 90 प्रतिशत ज्यादा थी।
2012 में फेसबुक पर 17 बिलियन लोकेशन टैग्ड पोस्ट और चेक इन थे
फेसबुक के माध्यम से 80 प्रतिशत यूजर्स विभिन्न ब्रांड्स से जुड़े।
फेसबुक के 43 प्रतिशत यूजर्स पुरुष है वहीं 57 फीसदी महिलाएं।
अप्रैल में फेसबुक की कुल आय का 12 प्रतिशत हिस्सा जिग्ना गेम का था।
बीटूसी कंपनियों को 77 प्रतिशत और बीटूबी कंपनियों को 43 प्रतिशत ग्राहक फेसबुक से मिले थे।
सिर्फ एक दिन में ही फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग विश्व के 23
वें सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में शामिल हो गए। 28 साल के मार्क जुकरबर्ग
ने 18 मई 2012 को फेसबुक के शेयर पब्लिक के लिए निकाले थे जिससे फेसबुक को
करोड़ो डॉलर की आमदनी हुई।
करीब 55 फीसदी अभिभावक अपने बच्चों का फेसबुक पर पीछा करते हैं.
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि फेसबुक पर लोग अपने मौजूदा जीवनसाथी के बजाय पूर्व जीवनसाथी से ज्यादा जुड़े होते हैं।
बरसों तक इंटरनेट की दुनिया पर राज करने वाली गूगल कंपनी ने
माना है कि सोशल नेटवर्किंग साइटों को नजरअंदाज करना उसकी सबसे बड़ी गलती
रही। ऐसी गलती, जिसकी भरपाई अब नहीं की जा सकती है। फेसबुक का जब
जन्म भी नहीं हुआ था, तब गूगल ने ऑर्कुट के तौर पर सोशल मीडिया चलाया था,
जो भारत और ब्राजील के अलावा कहीं और नहीं चल पाया। इसके बाद गूगल का बज भी
फेल हो गया और अब कंपनी ने अपना पूरा ध्यान गूगल़ पर लगाया है लेकिन उसकी
कामयाबी भी सीमित है। गूगल ने पिछले दशक में इंटरनेट की दुनिया पर राज
किया, और उसकी लोकप्रियता का यह आलम था कि गूगल को अंग्रेजी भाषा में
क्रिया मान लिया गया और उसे शब्दकोषों में जगह मिल गई। एलेक्सा डॉट कॉम के
मुताबिक अब भी वह पहले नंबर की वेबसाइट बनी हुई है, जबकि फेसबुक दूसरे नंबर
पर है। लेकिन कभी कभी फेसबुक उससे पहला नंबर छीन लेता है।
फेसबुक की ताजा तिमाही रिपोर्ट में कहा गया है कि 1.18 अरब प्रयोग कर्ता में से 1.41 करोड़ फर्जी हैं।
ट्विटर:
ट्विटर की शुरुआत इंटरनेट पर 21 मार्च 2006 में हुई। ट्विटर मूलतः एक मुफ्त लघु संदेश सेवा (SMS) व माइक्रो-ब्लॉगिंग तरह की सोशल मीडिया सेवा है जो अपने उपयोगकर्ताओं को अपनी अद्यतन जानकारियां, जिन्हें ट्वीट्स कहते
हैं, एक दूसरे को भेजने और पढ़ने की सुविधा देता है। इस कारण यह टेक-सेवी
यानी आधुनिक संचार माध्यमों का प्रयोग करने वाले उपभोक्ताओं, विशेषकर
युवाओं में खासी लोकप्रिय हो चुकी है। ट्वीट्स अधिकतम 140 अक्षरों तक के
हो सकते हैं, जो उपयोगकर्ता प्रेषक के द्वारा भेजे जाते हैं।
इन्हें उपयोगकर्ता के फॉलोअर देख और दुबारा प्रेषित (Retweet) कर सकते हैं।
चूंकि केवल फॉलोअर ही किसी के ट्वीट्सको
देख सकते हैं, इसलिए ट्विटर पर उपयोगकर्ताओं को फॉलो करने की होड़ रहती है,
और लोगों की प्रसिद्धि उनके फोलोवर्स की संख्या के रूप में दिखाई देती है।
हालाँकि ट्विटर यह सुविधा भी देता है कि इसके उपयोगकर्ता अपने ट्वीट्स को
अपने फोलोवर्स मित्रों तक सीमित कर सकते हैं, या डिफ़ॉल्ट विकल्प में मुक्त
उपयोग की अनुमति भी दे सकते हैं। उपयोगकर्ता ट्विटर वेबसाइट या, या बाह्य
अनुप्रयोगों के माध्यम से भी ट्वीट्स भेज और प्राप्त कर सकते हैं। इंटरनेट पर यह सेवा निःशुल्क है, लेकिन एसएमएस के उपयोग के लिए फोन सेवा प्रदाता को शुल्क देना पड़ सकता है। ट्विटर कई सामाजिक नेटवर्क माध्यमों जैसे माइस्पेस और फेसबुक पर भी काफी प्रसिद्ध हो चुका है।
ट्विटर उपयोगकर्ता वेब ब्राउज़र के साथ ही ईमेल और फेसबुक जैसे वेब एप्लीकेशन्स से भी अपने ट्विटर खाते को अद्यतित यानी अपडेट कर सकते हैं। अमेरिका में 2008 के राष्ट्रपति चुनावों में दोनों दलों के राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने आम जनता तक ट्विटर के माध्यम से अपनी पहुंच बनाई थी। बीबीसी व अल ज़जीरा जैसे विख्यात समाचार संस्थानों से लेकर अमरीका के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बराक ओबामा भी ट्विटर पर मिलते हैं। हाल के दौर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर शशि थरूर, ऋतिक रोशन, सचिन तेंदुलकर, अभिषेक बच्चन, शाहरुख खान, आदि भी ट्विटर पर दिखाई दिये हैं। अभी तक यह सेवा अंग्रेजी में ही उपलब्ध थी, किन्तु अब इसमें स्पेनिश, जापानी, जर्मन, फ्रेंच और इतालवी सहित अन्य कई भाषाएं भी उपलब्ध होने लगी हैं।
ट्विटर, अलेक्सा इंटरनेट के वेब यातायात विश्लेषण के द्वारा संसार भर की सबसे लोकप्रिय वेबसाइट के रूप में 26वीं श्रेणी पर बताई गयी है। फरवरी 2009 में compete.com ब्लॉग के द्वारा ट्विटर को सबसे अधिक प्रयोग किये जाने वाले सामाजिक नेटवर्क के रूप में तीसरा स्थान दिया गया था।
ब्लॉगिंगः
‘ब्लॉग’ शब्द ‘वेब’ और ‘लॉग’ द्वारा मिलकर बने शब्द ‘वेबलॉग’ का संक्षिप्त रूप है, जिसकी शुरूआत 1994 में जस्टिन हॉल ने ऑनलाइन डायरी के रूप में की थी। जबकि पहली बार ‘वेबलॉग’ शब्द का प्रयोग 1997 में जॉन बर्जन ने किया था। औपचारिक रूप से देखें तो सर्वप्रथम वेबलॉग को पहली बार अपनी निजी साइट पर लाने वाले व्यक्ति हैं पीटर महारेल्ज, जिन्होंने सन 1999 में इस काम को अंजाम दिया था। जबकि पहली मुफ्त ब्लॉगिंग की शुरूआत करने का श्रेय पियारा लैब्स के इवान विलियम्स और मैग होरिहान को जाता है, जिन्होंने अगस्त 1999 में ‘ब्लॉगर’ नाम से ब्लॉग साइट का प्रारम्भ
किया, जिसे बाद में गूगल ने खरीद लिया। इस प्रकार इंटरनेट के द्वारा संचार
की वेबसाइट के द्वारा शुरू हुई प्रक्रिया ब्लॉग तक आते-आते न सिर्फ बेहद
सहज और सुलभ हो गयी है, वरन अपनी अनेकानेक विशेषताओं के कारण हर दिल अजीज
भी बनती जा रही है।
हिंदी में ब्लॉगिंगः
वर्ष 1999 में अंग्रेजी ब्लॉगिंग की शुरूआत होने के बावजूद हिन्दी ब्लॉगिंग को प्रारम्भ होने में पूरे चार साल लगे। पहला हिन्दी ब्लॉग ‘नौ दो ग्यारह’ 21 अप्रैल 2003 में आलोक कुमार ने
लिखा। इसके पीछे मुख्य वजह रही हिन्दी फांट की समस्या और उसके लेखन की
विधियां। साथ ही लोगों के बीच तकनीकी जानकारी का अभाव भी इसके प्रसार में
बाधक रहा। अज्ञानता के इस अंधकार को तोड़ने का पहला प्रयास रवि रतलामी ने वर्ष 2004 में ऑनलाइन पत्रिका ‘अभिव्यक्ति’ में ‘अभिव्यक्ति का नया माध्यम- ब्लॉग’ शीर्षक से लेख लिखकर किया, लेकिन इस रोशनी को मशाल का रूप अक्टूबर 2007 में ‘कादम्बिनी’ में प्रकाशित बालेंदु दाधीच के लेख ‘ब्लॉग बने तो बात बने’
के द्वारा मिला। वर्तमान में हिन्दी ब्लॉगों की संख्या बहुत तेजी से बढ़
रही है। अब पुरूष और महिलाएँ ही नहीं, बच्चे भी ब्लॉगिंग के क्षेत्र में आ
चुके हैं और अपनी लोकप्रियता के झण्डे गाड़ रहे हैं। आज राजनीति, साहित्य,
कला, संगीत, खेल, फिल्म, सामाजिक मुद्दों पर ही नहीं विज्ञान और मनोविज्ञान
जैसे गूढ़ विषयों पर भी न सिर्फ ब्लॉग लिखे जा रहे हैं, वरन सराहे भी जा
रहे हैं। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि न सिर्फ
दैनिक समाचार पत्र और मासिक पत्रिकाएँ ब्लॉगों की सामग्री को नियमित रूप
से अपने अंकों में प्रकाशित कर रही हैं, वरन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में
उनकी समीक्षाओं के कॉलम भी लिखे जाने लगे हैं। चूंकि ब्लॉग एक अलग तरह का
माध्यम है, इसलिए इसके अपने कुछ पारिभाषिक शब्द भी हैं, जो ब्लॉग की दुनिया
में खूब प्रचलित हैं। जो लोग ब्लॉग के स्वामी हैं अथवा ब्लॉग लिखने में
रूचि रखते हैं, वे सभी लोग ब्लॉगर के नाम से जाने जाते हैं और ब्लॉग लिखने
की प्रक्रिया ‘ब्लॉगिंग’ कहलाती है। इसी प्रकार ब्लॉग में लिखे जाने वाले
सभी लेख ‘पोस्ट’ के नाम से जाने जाते हैं। अपने पसंदीदा ब्लॉगों में
प्रकाशित होने वाली अद्यतन सूचनाओं से भिज्ञ होने के लिए जिस तकनीक का
सहारा लिया जाता है, वह आरएसएस फीड के नाम से जानी जाती है, जबकि जो
वेबसाइटें अपने यहां पंजीकृत समस्त ब्लॉगों की ताजी पोस्टों की सूचना देने
का कार्य करती हैं, वे ‘एग्रीगेटर’ के नाम से जानी जाती हैं। आमतौर से
हिन्दी में भी ये शब्द इसी रूप में प्रचलित हैं, पर कुछ अनुवाद प्रेमियों
ने ब्लॉग के लिए ‘चिट्ठा’, ब्लॉगर के लिए ‘चिट्ठाकार’ और ब्लॉगिंग के लिए
‘चिट्ठाकारिता’ जैसे शब्द भी गढ़े हैं, जो यदा-कदा ही उपयोग में लाए जाते
हैं।
ब्लॉग की लोकप्रियता के प्रमुख कारणः
अक्टूबर, 2007 में ‘कादम्बिनी’ में प्रकाशित अपने लेख में बालेन्दु दाधीच ने उसका परिचय देते हुए लिखा था-‘ब्लॉग
का लेखक ही संपादक है और वही प्रकाशक भी है। यह ऐसा माध्यम है, जो भौगोलिक
सीमाओं और राजनीतिक-सामाजिक नियंत्रण से लगभग मुक्त है। यहां अभिव्यक्ति न
कायदों में बंधने को मजबूर है, न अलकायदा से डरने को, न समय की यहाँ
समस्या है, न सर्कुलेशन की।’ ब्लॉग लिखना ईमेल लिखने के समान आसान
है। यह सम्पादकीय तानाशाही से पूरी तरह से मुक्त है। इसके लिए न तो किसी
प्रेस की जरूरत है, न डिस्ट्रीब्यूटर की, न किसी कंपनी की और न ही ढ़ेर सारे
रूपयों की। यह बिलकुल फ्री सेवा है, जो कहीं भी अपने घर में बैठकर, पार्क
में टहलते हुए, रेस्त्रां में खाना खाते हुए या फिर किसी मूवी को इन्ज्वॉय
करते हुए उपयोग में लाई जा सकती है। इसके लिए जरूरत होती है सिर्फ एक अदद
कम्प्यूटर, लैपटॉप या पॉमटॉप अथवा मोबाईल की, जिसमें इंटरनेट कनेक्शन जुड़ा
होना चाहिए। चूंकि सर्च इंजन ब्लॉगों की सामग्री का समर्थन करते हैं, इसलिए
ब्लॉग के लिए पाठकों की कोई समस्या नहीं होती। इसके साथ ही ब्लॉग समय,
स्थान और देश-काल से परे होते हैं। इन्हें ईमेल की तरह न सिर्फ विश्व के किसी भी स्थान में बैठकर पढ़ा जा सकता है, वरन लिखा भी जा सकता है। किताबों, पत्रिकाओं और समाचार पत्रों के विपरीत ब्लॉग दोतरफा संचार का माध्यम
हैं, जिसमें लिखकर, बोलकर, चित्रित करके अथवा वीडियो के द्वारा अपनी बात
पाठकों तक पहुंचाई जा सकती है। यही कारण है कि पाठक न सिर्फ इसका लुत्फ
लेते हैं, वरन लेखक से जीवंत रूप में संवाद भी स्थापित कर सकते हैं। और
सबसे बड़ी बात यह है कि यह सब त्वरित गति के साथ सम्पन्न होता है। कभी-कभी
तो यह प्रक्रिया इतनी तीव्र होती है कि इधर ब्लॉग पर लेख प्रकाशित हुआ नहीं
कि उधर पाठक का कमेंट हाजिर। इसके अतिरिक्त ब्लॉग की एक अन्य विशेषता भी
है, जो उसे संचार के अन्य माध्यमों से विशिष्ट बनाती है। वह विशेषता है ब्लॉग की पठनीयता की उम्र।
एक अखबार की सामान्य उम्र जहां एक दिन, मासिक पत्रिका की औसत आयु जहाँ एक
माह होती है, वहीं ब्लॉग की जिन्दगी अनंतकाल की होती है। एक बार इंटरनेट पर
जो सामग्री लिख दी जाती है, वह जबरन न मिटाए जाने तक सदा के लिए सुरक्षित
हो जाती है और उसे कोई भी व्यक्ति कभी भी और कहीं भी पढ़ सकता है, यानी
भौगोलिक सीमाएं भी नहीं होती हैं।
कैसे बनते हैं ब्लॉग?
वर्तमान में ब्लॉग लेखन विधा इतनी लोकप्रिय
हो चुकी है कि लगभग हर चर्चित वेबसाइट मुफ्त में पाठकों को ब्लॉग बनाने की
सुविधा प्रदान करती है। लेकिन बावजूद इसके आज भी ब्लॉग बनाने के लिए जो
साइटें सर्वाधिक उपयोग में लाई जाती हैं, वे हैं ब्लॉगर, वर्ड प्रेस और टाईप पैड।
ब्लॉग बनाने के लिए सिर्फ एक अदद ईमेल
एकाउंट की जरूरत होती है। यह ईमेल किसी भी कंपनी (जी-मेल, याहू, रेडिफ,
हॉटमेल आदि) का हो सकता है। यदि इच्छुक व्यक्ति को ब्लॉग बनाने की औपचारिक
जानकारी हो, तो सीधे ब्लॉग बनाने की सुविधा देने वाली किसी भी साइट को
खोलकर और उसमें अपना ईमेल पता लिखकर ‘साइन अप’ करके और बताए गये निर्देशों
का पालन करते हुए ब्लॉग बनाया जा सकता है। लेकिन यदि इच्छुक व्यक्ति को
ब्लॉग बनाने की प्रक्रिया का समुचित ज्ञान न हो, तो किसी भी सर्च इंजन
(गूगल, याहू आदि) को खोल कर उसमें ‘ब्लॉग बनाने की विधि’ अथवा ‘हाऊ टू
क्रिएट ए ब्लॉग?’ सर्च करके इस सम्बंध में जानकारी जुटाई जा सकती है।
विज्ञान पर ब्लॉगिंगः
हिन्दी में आज कई अच्छे विज्ञान ब्लॉग लिखे
जा रहे हैं। लेकिन जहाँ तक पहले विज्ञान सम्बंधी ब्लॉग की बात है, तो इसका
श्रेय ‘ज्ञान-विज्ञान’ को जाता है, जिसकी शुरूआत जनवरी 2005 में हुई। यह
एक सामुहिक ब्लॉग था, जो दुर्भाग्यवश नियमित ब्लॉग नहीं बन सका। इस तरह से
देखें तो हिन्दी के पहले सक्रिय विज्ञान ब्लॉग का श्रेय डा. अरविंद मिश्र
के सितम्बर 2007 से नियमित रूप से प्रकाशित हो रहे ‘साईब्लॉग’ को जाता है।
इस पर नियमित रूप से विज्ञान के विविध पहलुओं पर केन्द्रित चर्चा देखने को
मिलती रहती है। हिन्दी में विज्ञान ब्लॉगिंग को बढ़ावा देने में ‘साइंटिफिक
वर्ल्ड’ और ‘साइंस ब्लॉगर्स एसोसिएशन’ का विशेष योगदान रहा है। 28 फरवरी,
2008 से प्रारम्भ होने वाला ‘तस्लीम’ ब्लॉग को जहाँ हिन्दी के पहले सामुहिक
विज्ञान ब्लॉग का दर्जा प्राप्त है, वहीं ‘साइंस ब्लॉगर्स एसोसिएशन’
हिन्दी के सबसे सक्रिय और सबसे बड़े सामुहिक ब्लॉग के रूप में जाना जाता है।
वर्तमान में स्तरीय विज्ञान ब्लॉगों की संख्या पांच दर्जन के आसपास है। इन
ब्लॉगों में विविध क्षेत्रों और विविध विषयों पर न सिर्फ रोचक वैज्ञानिक
सामग्री का प्रकाशन होता है, वरन वैज्ञानिक विषयों पर बहसों का भी आयोजन
किया जाता है। किन्तु इनमें से बहुत से ब्लॉग ऐसे भी हैं, जो अपने
प्रारम्भिक काल में तो नियमित रूप से अपडेट होते रहे, लेकिन बाद में ये
अपरिहार्य कारणों से निष्क्रिय हो गये। लेकिन इसके बावजूद हिन्दी में
सक्रिय ब्लॉगों की संख्या कम नहीं है। ऐसे ब्लॉगों में तस्लीम (http://www.scientificworld.in/), विज्ञान गतिविधियाँ (www.sciencedarshan.in), ‘न जादू न टोना’ (http://www.sharadkokas.blogspot.in), एवं सर्प संसार (http://snakes-scientificworld.in/)
का स्थान प्रमुख है। इनके अलावा साइंस ब्लॉगर्स एसोसिएशन, साई ब्लॉग,
वॉयजर, विज्ञान विश्व, सौरमंडल, अंतरिक्ष, क्यों और कैसे विज्ञान में, इमली
इको क्लब, डायनमिक, साइंस फिक्शन इन इंडिया, हिन्दी साइंस फिक्शन,
स्वास्थ्य सब के लिए, मीडिया डॉक्टर, स्पंदन, आयुष वेद, मेरा समस्त, हमारा
पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान, स्वास्थ्य सुख, क्लाइमेट वॉच, सुजलाम, हरी
धरती एवं खेती-बाड़ी। आम जनता में वैज्ञानिक मनोवृत्ति जागृत करने वाले इन
ब्लॉगों पर मुख्य रूप से पिछले दिनों में जिन विषयों को प्रमुखता से उठाया
गया है उनमें एक ओर जहाँ ज्योतिष, तंत्र-मंत्र, भूत-पिशाच, विज्ञान के
प्रयोगों के द्वारा दिखाये जाने वाले तथाकथित चमत्कारों की चर्चा शामिल है,
वहीं अंधविश्वास के कारण घटने वाली घटनाओं के तार्किक विवेचन, तथा उनके
समाजशास्त्रीय प्रभावों एवं मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है।
यदि ब्लॉग जगत की गतिविधियों का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन किया जाए, तो यह
बात भी निकल कर सामने आती है कि जैसे-जैसे ब्लॉग जगत में वैज्ञानिक लेखन को
बढ़ावा मिला है, वैसे-वैसे अवैज्ञानिक एवं अंधविश्वास के पोषक ब्लॉगर
धीरे-धीरे लुप्तप्राय होते जा रहे हैं। इससे स्वतः स्पष्ट है कि ब्लॉग लेखन
वैज्ञानिक मनोवृत्ति के विकास के नजरिए से एक उपयोगी विधा है। यदि विज्ञान
संचार में रूचि रखने वाले विज्ञान संचारक इस माध्यम का समुचित उपयोग करें
तो विज्ञान संचार की मुहिम को आसानी से आम जनता के बीच लोकप्रिय बनाया जा
सकता है।
गूगल:
गूगल की शुरुआत 1996 में एक रिसर्च परियोजना के दौरान लैरी पेज तथा सर्गी ब्रिन ने
की। उस वक्त लैरी और सर्गी स्टैनफौर्ड युनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया में
पीएचडी के छात्र थे। उस समय, पारंपरिक सर्च इंजन सुझाव (रिजल्ट) की वरीयता
(Preference) वेब-पेज पर सर्च-टर्म की गणना से तय करते थे, जब कि लैरी और
सर्गी के अनुसार एक अच्छा सर्च सिस्टम वह होगा जो वेबपेजों के ताल्लुक का
विश्लेषण करे। इस नए तकनीक को उन्होनें पेज रैंक (Page Rank) का नाम दिया।
इस तकनीक में किसी वेबसाइट की प्रासंगिकता/योग्यता का अनुमान, वेबपेजों की
गिनती, तथा उन पेजों की प्रतिष्ठा, जो आरम्भिक वेबसाइट को लिंक करते हैं के
आधार पर लगाया जाता है। 1996 में आईडीडी इन्फोर्मेशन सर्विसेस के रॉबिन लि
ने “रैंकडेक्स” नामक एक छोटा सर्च इंजन बनाया था, जो इसी तकनीक पर काम कर
रहा था। रैंकडेक्स की तकनीक लि ने पेटेंट करवा ली थी और बाद में इसी तकनीक
पर उन्होंने बायडु नामक कम्पनी की स्थापना चीन में की। पेज और ब्रिन ने
शुरुआत में अपने सर्च इंजन का नाम “बैकरब” रखा था, क्योंकि यह सर्च इंजन
पिछले लिंक्स (back links) के आधार पर किसी साइट की वरीयता तय करता था।
अंततः, पेज और ब्रिन ने अपने सर्च इंजन का नाम गूगल (Google) रखा। गूगल अंग्रेजी के शब्द ‘googol’ की गलत वर्तनी
है, जिसका मतलब है−वह नंबर जिसमें एक के बाद सौ शून्य हों। नाम ‘गूगल” इस
बात को दर्शाता है कि कम्पनी का सर्च इंजन लोगों के लिए जानकारी बड़ी मात्रा
में उपलब्ध करने के लिए कार्यरत है। अपने शुरुआती दिनों में गूगल
स्टैनफौर्ड विश्वविद्यालय की वेबसाइट के अधीन google.stanford.edu
नामक डोमेन से चला। गूगल के लिए उसका डोमेन नाम 15 सितंबर 1997 को रजिस्टर
हुआ। सितम्बर 4, 1998 को इसे एक निजी-आयोजित कम्पनी में निगमित किया गया।
कम्पनी का पहला ऑफिस सुसान वोज्सिकि (उनकी दोस्त) के गराज मेलनो पार्क,
कैलिफोर्निया में स्थापित हुआ। क्रेग सिल्वरस्टीन, एक साथी पीएचडी छात्र,
कम्पनी के पहले कर्मचारी बने। गूगल विश्व भर में फैले अपने डाटा-केंद्रों
से दस लाख से ज्यादा सर्वर चलाता है और दस अरब से ज्यादा खोज-अनुरोध तथा
चौबीस पेटाबाईट उपभोक्ता-संबंधी डाटा संसाधित करता है।
गूगल की विकास यात्रा:
1996: गूगल की शुरुआत।
1997: 15 सितंबर को गूगल के लिए उसका डोमेन नाम रजिस्टर हुआ।
1998: 4 सितम्बर को गूगल को एक निजी-आयोजित कम्पनी में निगमित किया गया।
1999: ब्लॉगर की शुरुआत।
1997: 15 सितंबर को गूगल डॉट कॉम एक डोमेन नेम के रूप में पंजीकृत हुआ।
2004: जनवरी में आर्कुट की शुरुआत हुई। आगे इसी वर्ष एक अप्रेल को
जी-मेल की शुरुआत की गई, जिसके वर्तमान में 425 मिलियन प्रयोग कर्ता हैं।
जुलाई में फोटो के लिए पिकासा की शुरुआत हुई, और अक्टूबर में भारत के
बेंगलौर और हैदराबाद में गूगल के कार्यालय खुले।
2005: अप्रेल में यूट्यूब पर पहला वीडियो पोस्ट हुआ। यूट्यूब तब गूगल
का हिस्सा नहीं था। वर्तमान में यूट्यूब पर हर मिनट 100 से अधिक घंटे लंबे
वीडियो अपलोड होते हैं, और दुनिया में लोग प्रति माह छः बिलियन घंटे
यूट्यूब पर वीडियो देखते हैं।
2005: जून में उपग्रह आधारित गूगल अर्थ की शुरुआत हुई, जिस पर वर्चुअल मोड में पूरी दुनिया की सैर की जा सकती है।
2006: अप्रेल में गूगल ट्रªासलेट की अंग्रेजी और अरबी भाषाओं से शुरुआत
हुई। वर्तमान में इसके जरिए हिंदी सहित दुनिया की 70 से अधिक भाषाओं के
अनुवाद की सुविधा उपलब्ध है।
2006: अक्टूबर में गूगल ने यूट्यूब का अधिग्रहण कर लिया।
2007 : नवंबर में गूगल ने मोबाइल के लिए एंड्रोइड सुविधा शुरू की।
2008: सितंबर में गूगल क्रोम नाम से नया इंटरनेट ब्राउजर की शुरुआत हुई। वर्तमान में 750 मिलियन लोग इसका प्रयोग करते हैं।
2008: आईफोन के लिए पहले गूगल मोबाइल एप की शुरुआत हुई।
2009: फरवरी में ट्विटर पर पहला संदेश जारी हुआ। मार्च में फोन के लिए
गूगल वॉइस की शुरुआत हुई, आगे 2013 में गूगल प्लस और हैंग आउट्स में भी
गूगल वॉइस का प्रयोग संभव हुआ।
2012: दिसंबर में यूट्यूब पर ‘गंगम स्टाइल’ डांस के वीडियो ने पहली बार
और इकलौते एक बिलियन लोगों द्वारा देखे जाने का रिकॉर्ड बनाया।
2014: सितंबर में गूगल ने एंड्रोइड फोनों की भारत में शुरुआत की।
2015 :नवंबर माह में गूगल ने अपनी नई कंपनी एल्फाबेट के लिए BMW के पास मौजूद alphabet.com डोमेन नाम खरीदने में असफल रहने पर अनूठा abcdefghijklmnopqrstuvwxyz.com डोमेन नाम खरीद लिया है। नई कंपनी का डोमेन नाम abc.xyz दिखाई देगा। बताया गया है कि गूगल/अल्फाबेट कंपनी 1800 डोमेन नामों की मालिक है।
भारतीय चुनाव में मदद
इस बीच गूगल ने भारत को आने वाले आम चुनाव
में मदद का फैसला किया है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक भारतीय चुनाव आयोग
के साथ गूगल का समझौता हो गया है, जिसके तहत वह ऑनलाइन वोटरों के
रजिस्ट्रेशन में मदद करेगा। अगले छह महीने तक गूगल आयोग को अपने संसाधन
मुहैया कराएगा। इससे वोटर इंटरनेट पर ही पता लगा पाएंगे कि उनका नाम किस
मतदान केंद्र में शामिल है और वे वहां पहुंचने के लिए गूगल मैप की सहायता
भी ले सकेंगे।
मीडिया की गलती से ‘मृत’ महिला पायलट सुमिता को फेसबुक पर कहना पड़ा-‘जिंदा हूं मैं’
स्वयं को जिन्दा बताने वाली सुमिता की फेसबुक पोस्ट
गलतियां सब से होती हैं। अब तक नए/सोशल
मीडिया पर होने वाली गलतियों की कई खबरें आती रही हैं। लेकिन ताजा खबर
परंपरागत मीडिया द्वारा नए मीडिया की मदद से की गई बड़ी गलती की है, जिसका
निराकरण आखिर सोशल मीडिया की ओर से ही किया गया है। हुआ यह कि बीती 23
नवंबर को जम्मू कश्मीर में मां वैष्णो देवी के आधार शिविर कटरा से सांझी छत
के लिए मात्र तीन मिनट की उड़ान पर जाते वक्त एक हेलीकॉप्टर गिद्ध से
टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस दुर्घटना में उत्तराखंड आपदा के दौरान
भी बचाव कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली महिला हेलीकॉप्टर
पायलट केरल निवासी सुमिता विजयन सहित जम्मू के चार और दिल्ली के दो
तीर्थयात्रियों की दर्दनाक मौत हो गई थी। घटना की त्वरित कवरेज के फेर में
पहले सभी इलेक्ट्रानिक चैनलों ने बिना ठोस छानबीन किए और बाद में सभी
समाचार पत्रों ने सुमिता विजयन के फेसबुक पेज से उनकी फोटो निकालकर लगा दी।
लेकिन घटना के दो दिन बाद मीडिया में अपनी फोटो देखकर दुबई में रह रही
सुमिता विजयन को सफाई देनी पड़ी कि वे जिंदा हैं। यह गलतफहमी दोनों का नाम
एक होने और दुबई की सुमिता के भी इंडियन एयरलाइंस के इंजीनियरिंग विंग के
कर्मचारी की बेटी होने और इंडियन एयर लाइंस आइडियल स्कूल से पढ़ाई किए होने
के साम्य की वजह से हुई।
इन्टरनेट-नए मीडिया की दुनिया की ताज़ा ख़बरें :
जियो के साथ देश में इंटरनेट की नयी पीढ़ी-‘डेटागिरी’ का आगाज, पहले महीने ही जुड़े 1.6 करोड़ ग्राहक :
रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश
अंबानी ने 10 करोड़ ग्राहकों को जोड़ने के लक्ष्य के साथ 5 सितंबर 2016 को
मुफ्त वॉयल कॉल, मुफ्त एसएमएस, मुफ्त रोमिंग और सबसे सस्ते डेटा की
‘रिलायंस जियो-4जी’ सुविधा देने का दावा करते हुये धमाकेदार शुरुआत की, और
सितम्बर महीने के 26 दिनों में ही 1.6 करोड़ नए ग्राहकों को जोड़ने का विश्व
रिकोर्ड बना दिया। रिलायंस जियो के ‘वेलकम ऑफर’ में तीन माह यानी 31 दिसंबर
तक के लिये सभी सुविधाएं मुफ्त देने और आगे आम लोगों के केवल पांच पैंसे
प्रति एमबी यानी 50 रुपये प्रति जीबी की सस्ती दर पर डेटा देने और छात्रों
को 25 प्रतिशत अतिरिक्त डेटा व स्कूल-कॉलेज में मुफ्त वाई-फाई देने का ऐलान
किया गया, जिसका असर शेयर मार्केट में अन्य दूरसंचार कंपनियों के शेयरों
में 10 प्रतिशत की टूट के रूप में देखने को भी मिला। इसके बाद देश की अन्य
दूरसंचार कंपनियां भी जियो के मुकाबले को कमर कस रही हैं। और उनकी इस कोशिश
में देश की तीन शीर्ष दूरसंचार कंपनियांे-भारती एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया
ने हाल में हुई नीलामी में जियो के एक गीगा हर्ट्ज से कुछ कम 4जी
स्पेक्ट्रम हासिल कर लिये हैं। इस नीलामी से सरकार को 5.6 लाख करोड़ रुपये
मिलने की उम्मीद है। बैंक ऑफ अमेरिका के मेरिल लिंच ने इस पर अपनी रिपोर्ट
में कहा-‘हमारा विश्वास है कि तीनों शीर्ष कंपनियों के पास पर्याप्त 4जी
स्पेक्ट्रम है, जिससे जरिये वे जियो को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। इसके साथ ही
हमें छोटी कंपनियों का तेजी से एकीकरण देखने को मिलेगा।’
इधर देश की मौजूदा सबसे बड़ी सार्वजानिक
दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल ने निजी कम्पनियों से प्रतिस्पर्धा कर अपनी मोबाइल
ब्राडबैंड क्षमता को दोगुना कर 600 टैरोबाईट (टीबी) प्रतिमाह करने की
योजना बनायी है। बताया गया है की बीएसएनएल अपनी बेहतर 3 जी व अन्य सेवाएं
उपलब्ध कराने के लिए नवम्बर माह तक अपनी क्षमता को दक्षिण भारत में 600 और
अन्य क्षेत्रों में 450 टीबी करेगी।
जल्द मिलेगा 4जी से 20 गुना अधिक गति वाला 5जी इंटरनेट
भारत
में इधर 4जी आया ही है, कि उधर चीन, जापान और दक्षिण कोरिया में 4जी से 20
गुना अधिक गति वाले 5जी नेटवर्क की तैयारी जोर पकड़ गयी है। मीडिया रिपोर्ट
के अनुसार 5जी इंटरनेट से पूरी एचडी फिल्म 1 सेकेंड में डाउनलोड की जा
सकेगी। डेटा को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक डेटा के एक पैकेट को पहुंचाने
में लगने वाले समय को लेटेंसी कहते हैं। 4जी के मामले में जहां लेटेंसी रेट
10 मिली सेकेंड होता है, वहीं 5जी में यह गति 1 मिली सेकेंड की होगी। 5जी
नेटवर्क के अत्याधुनिक एप्लीकेशन के जरिये स्वचालित गाड़ियां भी नियंत्रित
की जा सकेंगे। 5जी का व्यवसायिक इस्तेमाल वर्ष 2020 से होने की संभावना है,
किंतु दक्षिणी कोरिया ने 2018 के शीत ओलंपिक खेलों तक इसे शुरू करने का
लक्ष्य रखाा है।
ह्वाट्सएप की टक्कर में उतरा गूगल का ऐप ‘एलो’ और स्काइप के मुकाबले ‘डुओ’:
गूगल ने ह्वाट्स ऐप के मुकाबले के लिये अपना ‘एलो’ नाम का मैसेजिंग ऐप
शुरू किया है, साथ ही ‘गूगल असिस्टेंट’ की भी शुरुआत की गई है, जो जरूरत
पड़ने पर सहायता उपलब्ध कराने के साथ बातचीत जारी रखने में सहायता भी उपलब्ध
कराता है। एलो इंटरनेट के जरिये निगरानी की व्यवस्था तथा स्मार्ट जवाब,
फोटो, इमोजी तथा 200 स्टिकर साझा करने की विशेषताओं तथा भारतीय
उपयोगकर्ताओं के लिये ‘हिंग्लिश’ में स्मार्ट जवाब देने की क्षमता से भी
युक्त है। एलो की घोषणा गूगल ने मई 2016 में वीडियो कॉलिंग ऐप डुओ के साथ
की थी, जिसे कि गूगल ने स्काइप से मुकाबले के लिये उतारा है।
पांचवी पीढ़ी के स्मार्टफोन के लिए खोजा गया बेहतर एंटीना
प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की ओर से लंदन से
जारी ताजा रिपोर्ट के अनुसार फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने एक नया डिजिटल
एंटिना विकसित किया है। इससे अगली यानी पांचवी पीढ़ी के स्मार्टफोनों की
क्षमता बढ़ जाएगी। शोधकर्ताओं का दावा है कि नए एंटिना से डाटा ट्रांसफर की
रफ्तार सौ से हजार गुना तक ज्यादा हो जाएगी। इसके अलावा ऊर्जा की भी कम खपत
होगी। रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में स्मार्टफोन की स्क्रीन के ऊपर और
नीचे एंटिना लगाए जाते हैं। इस कारण टच स्क्रीन पूरे फोन पर नहीं लग पाती
है। जबकि आल्टो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अनुसार नया एंटिना
अपेक्षाकृत कम जगह घेरेगा। इससे स्मार्टफोन के डिस्प्ले को ज्यादा बड़ा किया
जा सकेगा और डिजाइन करने वालों को भी ज्यादा छूट मिल सकेगी। इससे कम ऊर्जा
की खपत होगी और बैटरी भी ज्यादा देर तक चलेगी। विशेषज्ञों के अनुसार इस
एंटीना के साथ सभी तरह के स्मार्टफोन में डाटा ट्रांसफर सिर्फ एक एंटिना से
हो सकेंगे, तथा जीपीएस, ब्लूटूथ और वाई-फाई के लिए अलग से एंटिना की जरूरत
भी नहीं पड़ेगी। साथ ही रेडिएशन भी मौजूदा एंटीना से ज्यादा बेहतर होगा।
इससे पांचवीं पीढ़ी के स्मार्टफोन को नया स्वरूप देने में भी आसानी होगी।
इन्टरनेट-नए मीडिया की दुनिया की ताज़ा ख़बरें :
जियो के साथ देश में इंटरनेट की नयी पीढ़ी-‘डेटागिरी’ का आगाज, पहले महीने ही जुड़े 1.6 करोड़ ग्राहक :
रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश
अंबानी ने 10 करोड़ ग्राहकों को जोड़ने के लक्ष्य के साथ 5 सितंबर 2016 को
मुफ्त वॉयल कॉल, मुफ्त एसएमएस, मुफ्त रोमिंग और सबसे सस्ते डेटा की
‘रिलायंस जियो-4जी’ सुविधा देने का दावा करते हुये धमाकेदार शुरुआत की, और
सितम्बर महीने के 26 दिनों में ही 1.6 करोड़ नए ग्राहकों को जोड़ने का विश्व
रिकोर्ड बना दिया। रिलायंस जियो के ‘वेलकम ऑफर’ में तीन माह यानी 31 दिसंबर
तक के लिये सभी सुविधाएं मुफ्त देने और आगे आम लोगों के केवल पांच पैंसे
प्रति एमबी यानी 50 रुपये प्रति जीबी की सस्ती दर पर डेटा देने और छात्रों
को 25 प्रतिशत अतिरिक्त डेटा व स्कूल-कॉलेज में मुफ्त वाई-फाई देने का ऐलान
किया गया, जिसका असर शेयर मार्केट में अन्य दूरसंचार कंपनियों के शेयरों
में 10 प्रतिशत की टूट के रूप में देखने को भी मिला। इसके बाद देश की अन्य
दूरसंचार कंपनियां भी जियो के मुकाबले को कमर कस रही हैं। और उनकी इस कोशिश
में देश की तीन शीर्ष दूरसंचार कंपनियांे-भारती एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया
ने हाल में हुई नीलामी में जियो के एक गीगा हर्ट्ज से कुछ कम 4जी
स्पेक्ट्रम हासिल कर लिये हैं। इस नीलामी से सरकार को 5.6 लाख करोड़ रुपये
मिलने की उम्मीद है। बैंक ऑफ अमेरिका के मेरिल लिंच ने इस पर अपनी रिपोर्ट
में कहा-‘हमारा विश्वास है कि तीनों शीर्ष कंपनियों के पास पर्याप्त 4जी
स्पेक्ट्रम है, जिससे जरिये वे जियो को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। इसके साथ ही
हमें छोटी कंपनियों का तेजी से एकीकरण देखने को मिलेगा।’
इधर देश की मौजूदा सबसे बड़ी सार्वजानिक
दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल ने निजी कम्पनियों से प्रतिस्पर्धा कर अपनी मोबाइल
ब्राडबैंड क्षमता को दोगुना कर 600 टैरोबाईट (टीबी) प्रतिमाह करने की
योजना बनायी है। बताया गया है की बीएसएनएल अपनी बेहतर 3 जी व अन्य सेवाएं
उपलब्ध कराने के लिए नवम्बर माह तक अपनी क्षमता को दक्षिण भारत में 600 और
अन्य क्षेत्रों में 450 टीबी करेगी।
जल्द मिलेगा 4जी से 20 गुना अधिक गति वाला 5जी इंटरनेट
भारत
में इधर 4जी आया ही है, कि उधर चीन, जापान और दक्षिण कोरिया में 4जी से 20
गुना अधिक गति वाले 5जी नेटवर्क की तैयारी जोर पकड़ गयी है। मीडिया रिपोर्ट
के अनुसार 5जी इंटरनेट से पूरी एचडी फिल्म 1 सेकेंड में डाउनलोड की जा
सकेगी। डेटा को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक डेटा के एक पैकेट को पहुंचाने
में लगने वाले समय को लेटेंसी कहते हैं। 4जी के मामले में जहां लेटेंसी रेट
10 मिली सेकेंड होता है, वहीं 5जी में यह गति 1 मिली सेकेंड की होगी। 5जी
नेटवर्क के अत्याधुनिक एप्लीकेशन के जरिये स्वचालित गाड़ियां भी नियंत्रित
की जा सकेंगे। 5जी का व्यवसायिक इस्तेमाल वर्ष 2020 से होने की संभावना है,
किंतु दक्षिणी कोरिया ने 2018 के शीत ओलंपिक खेलों तक इसे शुरू करने का
लक्ष्य रखाा है।
ह्वाट्सएप की टक्कर में उतरा गूगल का ऐप ‘एलो’ और स्काइप के मुकाबले ‘डुओ’:
गूगल ने ह्वाट्स ऐप के मुकाबले के लिये अपना ‘एलो’ नाम का मैसेजिंग ऐप
शुरू किया है, साथ ही ‘गूगल असिस्टेंट’ की भी शुरुआत की गई है, जो जरूरत
पड़ने पर सहायता उपलब्ध कराने के साथ बातचीत जारी रखने में सहायता भी उपलब्ध
कराता है। एलो इंटरनेट के जरिये निगरानी की व्यवस्था तथा स्मार्ट जवाब,
फोटो, इमोजी तथा 200 स्टिकर साझा करने की विशेषताओं तथा भारतीय
उपयोगकर्ताओं के लिये ‘हिंग्लिश’ में स्मार्ट जवाब देने की क्षमता से भी
युक्त है। एलो की घोषणा गूगल ने मई 2016 में वीडियो कॉलिंग ऐप डुओ के साथ
की थी, जिसे कि गूगल ने स्काइप से मुकाबले के लिये उतारा है।
पांचवी पीढ़ी के स्मार्टफोन के लिए खोजा गया बेहतर एंटीना
प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की ओर से लंदन से
जारी ताजा रिपोर्ट के अनुसार फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने एक नया डिजिटल
एंटिना विकसित किया है। इससे अगली यानी पांचवी पीढ़ी के स्मार्टफोनों की
क्षमता बढ़ जाएगी। शोधकर्ताओं का दावा है कि नए एंटिना से डाटा ट्रांसफर की
रफ्तार सौ से हजार गुना तक ज्यादा हो जाएगी। इसके अलावा ऊर्जा की भी कम खपत
होगी। रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में स्मार्टफोन की स्क्रीन के ऊपर और
नीचे एंटिना लगाए जाते हैं। इस कारण टच स्क्रीन पूरे फोन पर नहीं लग पाती
है। जबकि आल्टो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अनुसार नया एंटिना
अपेक्षाकृत कम जगह घेरेगा। इससे स्मार्टफोन के डिस्प्ले को ज्यादा बड़ा किया
जा सकेगा और डिजाइन करने वालों को भी ज्यादा छूट मिल सकेगी। इससे कम ऊर्जा
की खपत होगी और बैटरी भी ज्यादा देर तक चलेगी। विशेषज्ञों के अनुसार इस
एंटीना के साथ सभी तरह के स्मार्टफोन में डाटा ट्रांसफर सिर्फ एक एंटिना से
हो सकेंगे, तथा जीपीएस, ब्लूटूथ और वाई-फाई के लिए अलग से एंटिना की जरूरत
भी नहीं पड़ेगी। साथ ही रेडिएशन भी मौजूदा एंटीना से ज्यादा बेहतर होगा।
इससे पांचवीं पीढ़ी के स्मार्टफोन को नया स्वरूप देने में भी आसानी होगी।
जल्द फेसबुक देगा अच्छी पोस्ट डालने वालों को पैंसे कमाने का मौका
फेसबुक जल्द ‘टिप जार’ नाम का एक ऐसा फीचर
लाने की तैयारी कर रहा है, जिस पर यूजर किसी अच्छी पोस्ट को ‘लाइक’ करने के
बजाए ‘कैश टिप’ दे पाएंगे। संभवतया यह फीचर लाइक बटन की ही तरह काम करेगा।
इस तरह के सिस्टम को माइक्रोपेमेंट कहा जाता है। पूर्व में फ्लैटर जैसी
कुछ कंपनियां यूजर्स को कुछ पैंसे कमाने, विज्ञापनों से प्राप्त आय को अपने
उपयोगकर्ताओं में बांटने का अवसर देते हैं, लेकिन वे कम प्रचार के कारण
सफल नहीं हो पाए। उम्मीद की जा रही है कि अधिक सदस्य संख्या होने की वजह से
फेसबुक पर यह प्रयोग सफल रहेगा। इससे फेसबुक पर अच्छी पोस्ट डालने वालों
को कुछ आय भी हो सकेगी। भारत सरकार ने ट्राई के प्रत्येक कॉल ड्रॉप पर एक रुपए का जुर्माना लगाने
के निर्णय को सही ठहराते हुए सर्वाेच्च न्यायालय में कहा है कि देश की
चार-पांच मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनिया रोजाना 250 करोड़ कमा रही हैं, और
इसके बावजूद ये अपने नेटवर्क को सुधारने पर कार्य नहीं कर रही हैं।
इंटरनेट के प्रसार में है पॉर्न का बड़ी भूमिका
एक वीडियो मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में इंटरनेट का विस्तार
ईमेल, गेमिंग या गूगल की वजह से नहीं वरन पॉर्न यानी अश्लील सामग्री की वजह
से हुआ है। 90 के दशक में लोगों को ऑनलाइन आने के लिये प्रेरित करने में
पॉर्न की बड़ी भूमिका रही है। भारत में शुरुआती दिनों में आम लोगों के लिये
इंटरनेट का मतलब एक तरह से पॉर्न ही था। रिपोर्ट के अनुसार वीडियो
स्ट्रीमिंग की शुरुआत करने का श्रेय यूट्यूब को नहीं, वरन पॉर्न इंडस्ट्री
को जाता है, जिन्होंने सबसे पहले अपने वेब पेजों पर डाले थे, और पॉर्न
इंडस्ट्री की वजह से ही बड़ी कंपनियों को अहसास हुआ कि वीडियो में बहुत
ज्यादा क्षमता है। फ्लॉपी डिस्क से लेकर सीडी, डीवीडी और फ्लैश ड्राइव तक
के विस्तार के साथ ही क्लाउड स्टोरेज और अधिक स्पीड वाले इंटरनेट कनेक्शन
लेने में भी पॉर्न का बड़ा योगदान रहा है। यही नहीं, ऑनलाइन पेमेंट का
प्रयोग भी लोगों ने पहले पहल अपना पसंदीदा पॉर्न कंटेंट सब्स्क्राइब करने
के लिये ही किया था। वहीं भारत में लोगों को पहले मोबाइल और अब स्मार्टफोन
अपनाने के लिये प्रेरित करने और मोबाइल डेटा पैक्स की खरीद बढ़ाने में भी
पॉर्न का बड़ा योगदान रहा है। वहीं आगे उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में
आने वाले वर्चुअल रियलिटी हैंडसेट को लोकप्रिय बनाने में भी पॉर्न अपना
योगदान देगा, क्योंकि बड़ी पॉर्न वेबसाइट्स ने वर्चुअल रियलिटी वाला पॉर्न
तैयार करना शुरू कर दिया है।
शुरुआत में केवल एक रुपये देकर मिलने लगे लैपटॉप
भारत में उपभोक्ताओं, खासकर बच्चों को उनके बालपन से ही लैपटॉप लेने के
लिये आकर्षित करने के लिये ऐसे-ऐसे ऑफर आ रहे हैं कि कोई इनसे बच नहीं
सकता। प्रसिद्ध कंपनी डेल ने 18 अप्रैल 2016 से मई 2016 माह के बीच बच्चों
के लिये एक ऐसी योजना जारी की है, जिसके तहत कोई अभिभावक अपने बच्चों के
लिये शुरुआत में केवल एक रुपए देकर और आगे छह माह की बिना ब्याज की किश्तें
देकर लैपटॉप खरीद सकते हैं। इस ऑफर का नाम ‘बैक टू स्कूल’ दिया गया है,
जिसके तहत 4जी सिरीज के लैपटॉप दिए जाएंगे। साथ में 999 रुपए देकर दो साल
के लिए ‘डेल नेक्स्ट बिजनेस डे ऑनसाइट वारंटी’ का विकल्प भी दिया गया हैं।
गुजरात में एक दिन के इंटरनेट बैन से लगी 1500 करोड़ रुपए की चपत
गुजरात में 18 अप्रैल 2016 को पाटीदार आरक्षण को लेकर राज्य में भड़की आग
के मद्देनजर एक दिन के लिये एहतियात के तौर पर इंटरनेट बैन किया गया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस कारण एक दिन में 1500 करोड़ रुपए का नुकसान
हुआ है। इस कारण इंटरनेट से पैंसे भेजने, ई-कॉमर्श पर खरीददारी करने या
मोबाइल ऐप के इस्तेमाल से टैक्सी बुकिंग करने जैसी रोजमर्रा की चीजों में
लोगों को काफी दिक्कतें झेलनी पड़ीं। इस दिन नेट बैंकिंग की सेवाओं में 90
फीसद से अधिक गिरावट देखी गई। गुजरात में बैंकों के द्वारा होने वाले
लेनदेन का लगभग 10 फीसद हिस्सा इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से होता है, जबकि
देश भर में मोबाइल और इंटरनेट द्वारा होने वाले लेन-देन का 13 फीसद हिस्सा
गुजरात में होता है। गौरतलब है कि इस दिन यानी 18 अप्रैल सोमवार को चार
दिनों के बाद बैंक खुले थे। इससे समझा जा सकता है कि आगे इंटरनेट सेवाएं
देश की अर्थव्यवस्था को कितना और किस हद तक प्रभावित कर सकती हैं।
भविष्य में फिजिकल कंप्यूटर्स का अंत हो जाएगा: सुंदर पिचाई
गूगल को लगता है कि भविष्य में कंप्यूटर का
चलन खत्म हो जाएगा. कंपनी के सीईओ सुंदर पिचाई के मुताबिक एक दिन कंप्यूटर
‘फिजिकल डिवाइस’ नहीं रहेंगे. पिचाई ने गुरुवार को पैरंट कंपनी ऐल्फाबेट
के शेयरहोल्डर्स को भेजे लेटर में लिखा, ‘भविष्य की तरफ देखें तो ‘डिवाइस’
का कॉन्सेप्ट खत्म हो जाएगा। वक्त के साथ कंप्यूटर (किसी भी रूप में) एक
इंटेलिजेंट असिस्टेंट बनकर दिन भर आपकी मदद करेगा।’ भले ही अभी
स्मार्टफोन्स की चौकोर टच स्क्रीन पर ज्यादातर ऑनलाइन ऐक्टिविटी हो रही है,
मगर पिचाई का मानना है कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस से बिना आकार वाले
कंप्यूटर्स का विकास हो रहा है। पिचाई ने कहा, ‘हम मोबाइल-फर्स्ट से
आर्टिफिशल इंटेलिजेंस-फर्स्ट वाली दुनिया की तरफ बढ़ रहे हैं।’ पिचाई एक तरह
से अपनी प्लेबुक के बारे में बात कर रहे थे, क्योंकि गूगल आर्टिफिशल
इंटेलिजेंस और इससे जुड़ी टेक्नॉलजी पर काम कर रहा है। इसके एडवांस्ड
सॉफ्टवेयर पहले से ही गूगल फोटो और गूगल ट्रांसलेट जैसी वेब सर्विसेज को
चला रहे हैं। मैजिक लीप नाम की स्टार्टअप के प्रमुख इन्वेस्टर्स में गूगल
भी शामिल है। इस स्टार्टअप ने ऑगमेंटेड रिऐलिटी सिस्टम बनाने के लिए 1
बिलियन डॉलर से ज्यादा फंड इकट्ठा किया है। यह सिस्टम लोगों के आसपास
वर्चुअल 3डी तस्वीरें और अन्य जानकारियां दिखा सकता है। संभव है कि पिचाई
इसी तरह की टेक्नॉलजी की बात कर रहे थे।
जून 2017 तक देश में हो जायेंगे 45 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता
आईएमएआई व आईएमआरबी की ताजा रिपोर्ट के
अनुसार जून 2017 तक भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 45 करोड़ हो
जायेंगे। जबकि दिसंबर 2016 में देश में इंटरनेट प्रयोक्ताओं की संख्या 43.2
करोड़ थी। इनमें से 26.9 करोड़ प्रयोक्ता शहरी थे। शहरी इंटरनेट प्रयोक्ताओं
का घनत्व 60 प्रतिशत रहा है, और इसमें स्थायित्व देखने को मिला है, जबकि
ग्रामीण भारत में इंटरनेट प्रयोक्ताओं का घनत्व केवल 17 प्रतिशत है, और
यहां यानी गांवों में इंटरनेट के विकास व विस्तार की बड़ी संभावनाएं हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में इंटरनेट प्रयोक्ताओं की वृद्धि
मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों में ही हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में यदि
ठीक से प्रयास किये जायें तो ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी 75 करोड़
प्रयोक्ताओं के शामिल होने की संभावना है। रपट में यह भी कहा गया है कि
शहरी इंटरनेट प्रयोक्ताओं में से 13.72 करोड़ यानी 51 प्रतिशत और ग्रामीण
क्षेत्रों के लगभग 7.8 करोड़ यानी 48 प्रतिशत प्रयोक्ता दैनिक इंटरनेट का
इस्तेमाल करते हैं, और देश में डिजिटाइजेशन के बाद इंटरनेट लोगों की जरूरत
बन गया है।
आ गया पहला 5जी स्मार्ट फोन
एक रिपोर्ट के अनुसार वार्सिलोना में
आयोजित मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस (एमडब्लूसी-2017) में जेडटीई कंपनी की ओर से
दुनिया का पहला मोबाइल नेटवर्क की पांचवी पीढ़ी की 5 जी तकनीक पर आधारित
‘गीगाबाइट स्मार्टफोन’ पेश किया गया है। कंपनी का दावा है कि यह 2020 तक
दुनिया में आने जा रही 5 जी तकनीक को सपोर्ट करेगा। इस नये 5जी स्मार्टफोन
के बारे में कहा गया है कि इसकी डाउनलोडिंग स्पीड 1जीबी प्रति सेकेंड की
होगी। यह 4जी की मौजूदा तकनीक से 10 गुना अधिक तेज है। क्वॉलकॉम के लेटेस्ट
स्नैपड्रैगन 835 प्रोसेसर युक्त इस स्मार्टफोन से एक पूरी फिल्म केवल एक
सेकेंड में डाउनलोड की जा सकेगी। बताया गया है कि दक्षिण कोरियाई कंपनी
कैरियर केटी कॉर्प का लक्ष्य प्योंग चैंग में 2018 में 5जी नेटवर्क का
ट्रायल करने की योजना है।
2021 तक 5 जी मोबाइल कर जायेंगे 15 करोड़ का आंकड़ा पार
5 जी नेटवर्क के बारे में बताया गया है कि 5
जी तकनीक से डाटा स्पीड 100 गीगा बाइट प्रति सेकेंड तक पहुंच जायेगी,
जिससे 100 फिल्में एक साथ एक सेकेंड में डाउनलोड हो सकेंगी। 5 जी तकनीक में
न्यू रेडियो एक्सेस (एनएक्स), नई पीढ़ी का एलटीई एक्सेस और बेहतर कोर
नेटवर्क होगा, जिससे डाटा के तीव्र आदान-प्रदान के साथ ही ‘इंटरनेट ऑफ
थिंग्स’ यानी आईओटी की सुविधा भी मिल सकेगी। इस तकनीक का उपयोग करने के
लिये आज के 10-20 मेगा हर्ट्ज की चैनल बैंड विड्थ वाले मोबाइल उपयोगी नहीं
होंगे, बल्कि दो गीगा हर्ट्ज की चैनल बैंड विड्थ वाले मोबाइलों की जरूरत
पड़ेगी। इससे वीडियो ट्रेफिक 22 गुना तक बढ़ जायेगा और स्मार्टफोन के
प्रयोक्ता लाइव फीड्स प्राप्त कर पायेंगे, यानी स्मार्टफोन टेलीविजन की तरह
हो जायेंगे। वहीं दूरसंचार उपकरण निर्माता कंपनी एरिक्सन की मोबिलिटी
रिपोर्ट की मानें तो विश्व में वर्ष 2021 तक 5 जी सुविधा से युक्त मोबाइल
फोनों की संख्या 15 करोड़ पर पहुंच जायेगी, और 4 जी की तुलना में 5 जी
मोबाइलों की बिक्री अधिक तेजी से बढ़ेगी। सबसे अधिक बढ़ोत्तरी दक्षिण कोरिया,
जापान, चीन व अमेरिका में होगी।
क्या हैं 1जी, 2जी, 3जी, 4जी व 5जी तकनीकें ?
हाल के दिनों में 4जी तकनीक काफी चर्चा में
है। मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों में 4जी सेवा को लांच करने की जंग छिड़ी
हुई है। एयरटेल ने जहां भारत में सर्वप्रथम कोलकाता से अप्रैल 2012 में इस
सेवा की शुरुआत की थी, वहीं रिलायंस जियो ने 5 सितंबर 2016 को देश भर में
बड़े पैमाने पर 4जी की सेवाएं मुफ्त देकर तहलका ही मचा दिया। जबकि वोडाफोन
सहित अन्य कंपनियां भी इसे शुरू कर रही हैं। इसलिये जानते क्या है कि
मोबाइल सेवा की इन अलग-अलग जेनरेशन की तकनीकों में क्या अंतर हैः 1जी तकनीक: 1जी तकनीक दुनिया में वायरलेस टेलीफोनी की पहली तकनीक मानी जाती है। एनालॉग
सिग्नल पर आधारित यह तकनीक पहली बार 1980 में सामने आई और 1992-93 तक इसका
इस्तेमाल किया जाता रहा। पहली बार अमेरिका में 1जी मोबाइल सिस्टम ने इस
तकनीक का प्रयोग किया था। इसमें डेटा की आवाजाही की रफ्तार 2.4 केवीपीएस
थी। इस तकनीक की बड़ी खामी इसमें रोमिंग का ना होना था। इसमें मोबाइल फोन पर
आवाज की क्वालिटी काफी खराब थी, साथ ही यह बैटरी की भी बहुत अधिक खपत करता
था। इस तकनीक पर चलने वाले मोबाइल हैंडसेट बेहद भारी हुआ करते थे। 2जी तकनीक: 2जी तकनीक की शुरुआत 1991 में फिनलैंड में हुई। अभी भी प्रयोग की जाने वाली
यह तकनीक ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्यूनिकेशन पर आधारित तकनीक है, जिसे
संक्षिप्त रूप में जीएसएम टेक्नॉलजी कहा जाता है। इस तकनीक में पहली बार
डिजिटल सिग्नल का प्रयोग किया गया। इस तकनीक से माध्यम से फोन कॉल के अलावा
पिक्चर मैसेज, टेक्स मैसेज और मल्टीमीडिया मैसेज भेजे जाने लगे। इस तकनीक
की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि इसे इस्तेमाल करने से काफी कम ऊर्जा की खपत होती
है और फोन की बैटरी काफी ज्यादा चलती है। यह तकनीक मुख्य रूप से आवाज के
सिग्नल को प्रसारित करती है। 2जी तकनीक पर डेटा के आने-जाने की रफ्तार
अधिकतम 50,000 बिट्स प्रति सेकेंड तक तथा डाउनलोड और अपलोड की अधिकतम स्पीड
236 केवीपीएस (किलो बाइट प्रति सेकंड) होती है। इसके एडवांस वर्जन को
2.5जी और 2.7जी नाम भी दिये गये थे, जिसमें डेटा के आदान-प्रदान की रफ्तार
और भी बढ़ गई थी। 3जी तकनीक: 3जी तकनीक की शुरुआत 2001 में जापान में हुई। इस तकनीक का मानकीकरण
इंटरनेशनल टेलेकम्यूनिकेशन यूनियन (आईटीयू) ने किया था। इस तकनीक के माध्यम
से टेक्स्ट, तस्वीर और वीडियो के अलावा मोबाइल टेलीविजन और वीडियो
कांफ्रेसिंग या वीडियो कॉल किया जा सकता है। इस तकनीक ने दुनिया में
क्रांति ला दी और मोबाइल फोन की अगली पीढ़ी यानी स्मार्टफोन को बढ़ावा दिया।
3जी तकनीक में डेटा के आने-जाने की रफ्तार 40 लाख बिट्स प्रति सेकेंड तक
होती है। 3जी तकनीक का जोर मुख्य रूप से डेटा ट्रांसफर पर है। 2जी तकनीक के
मुकाबले 3जी की एक अहम खासियत यह है कि यह आंकड़ों के आदान-प्रदान के लिए
अधिक सुरक्षित (इनक्रिप्टेड) है। 3जी तकनीक की अधिकतम डाउनलोड स्पीड 21
एमवीपीएस और अपलोड स्पीड 5.7 एमबीपीएस होती है। इस तकनीक ने मोबाइल फोन के
लिए एप बनाने का रास्ता खोल दिया। अलबत्ता, 3जी तकनीक में 2जी के मुकाबले
काफी अधिक बैटरी की खपत होती है। 4जी तकनीक: 4जी तकनीक की शुरुआत साल 2000 के अंत में हुई। इसे मोबाइल तकनीक की चौथी
पीढ़ी कहा जाता है। इस तकनीक के माध्यम से 100 एमबीपीएस से लेकर 1 जीबीपीएस
तक की स्पीड से डेटा का डाउनलोड-अपलोड किया जा सकता है। यह ग्लोबल रोमिंग
को सपोर्ट करता है। यह तकनीक 3जी के मुकाबले कहीं सस्ती तकनीक है। साथ ही
इसमें सुरक्षा के फीचर्स भी ज्यादा हैं। लेकिन यह 3जी के मुकाबले कहीं अधिक
बैटरी की खपत करती है। 4जी तकनीक से लैस मोबाइल फोन में जटिल हार्डवेयर
प्रणाली की जरूरत होती है, इसलिए 3जी फोन के मुकाबले 4जी के फोन महंगे होते
हैं। 4जी तकनीक की आधारभूत संरचनाओं को तैयार करने में महंगे उपकरण लगाने
होते हैं। हालांकि जैसे-जैसे यह तकनीक आम होती जाएगी, फोन और नेटवर्क
इक्विपमेंट्स दोनों की कीमतों में कमी आएगी। फिलहाल 4जी तकनीक दुनिया के
काफी कम देशों में उपलब्ध है जिनमें मुख्यतः विकसित देश शामिल हैं। 3जी
तकनीक की सबसे बड़ी खामी जहां इसमें डेटा का न्यूनतम स्पीड लगभग 2.5जी के
बराबर होना है। वहीं 4जी तकनीक की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें खराब से
खराब नेटवर्क में भी कम से कम 54एमवीपीएस की रफ्तार मिल सकती है। 5जी तकनीक: 5जी तकनीक की शुरुआत साल 2010 में हुई। इसे मोबाइल नेटवर्क का पांचवी पीढ़ी
कहा जाता है। यह ‘वायरलेस वर्ल्ड वाइड वेब’ (मोबाइल इंटरनेट) को ध्यान में
रखकर बनाया गया है। इस तकनीक में बड़े पैमाने पर डेटा का आदान-प्रदान किया
जा सकता है। इसमें एचडी क्वालिटी के वीडियो के साथ मल्टीमीडिया न्यूजपेपर
प्रसारित किये जा सकते हैं। साथ ही इस तकनीक से वीडियो कॉलिंग के क्षेत्र
में क्रांति आ जाएगी। इस तकनीक में ‘अल्ट्रा हाइ डेफिनिशन क्वालिटी’ की
आवाज का प्रसारण किया जा सकता है। इस तकनीक में 1 जीवीपीएस से अधिक स्पीड
से डेटा की आवाजाही हो सकती है, हालांकि अभी तक इसकी अधिकतम स्पीड डिफाइन
नहीं की गई है, क्योंकि अभी यह कांसेप्ट के दौर में है और इस पर काम चल रहा
है। इस तकनीक की सबसे बड़ी खूबी रियल टाइम में बड़े से बड़े डेटा का
आदान-प्रदान होगा। साथ ही यह तकनीक संवर्धित वास्तविकता (अगर्मेंटेड
रियलिटी) के क्षेत्र में नया रास्ता खोलेगी, यानि इसके माध्यम से फोन कॉल
पर दो लोग बिल्कुल आमने-सामने बात कर पाने में सक्षम होंगे। विभिन्न साइंस
फिक्शन और फंतासी कथाओं में जिस प्रकार व्यक्ति आपके आगे आभासी रूप में
उपस्थित हो जाता है और आप उससे आमने-सामने बात करने में सक्षम होते हैं। इस
तकनीक से ऐसा करना संभव हो सकेगा। अनुमान के मुताबिक 5जी तकनीक साल 2020
तक धड़ल्ले से प्रयोग में आने लगेगी। फिलहाल ब्रिटेन की राजधानी लंदन में
साल 2020 तक 5जी तकनीक लगाने की तैयारी चल रही है।
2020 तक 119 अरब डॉलर तक पहुंच जायेगा ई-कॉमर्स का कारोबार
शोध संस्थान ई-मॉर्गन स्टैनली रिसर्च
द्वारा फरवरी 2016 में पेश रिपोर्ट में किये गये अनुमान के अनुसार 2020 तक
भारत का ई-कॉमर्स मार्केट मौजूदा 102 डॉलर से बढ़कर 119 अरब डॉलर पर पहुंच
जायेगा। रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति सेकेंड तीन इंटरनेट प्रयोगकर्ता
जुड़ते हैं, और भारत इस मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर आ गया है। इससे
सबसे बड़ा लाभ विदेशी कंपनियों को हो रहा है, जो भारत को एक उभरते हुए
ई-कॉमर्स बाजार के रूप में देख रही हैं। इस बाजार में महिलाओं की बड़ी
भागेदारी खरीददारों के रूप में है, जो ई-कॉमर्स का लाभ घर बैठे खरीददारी कर
उठाने लगी हैं। रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण भारत में कई महिलाएं जल्लीकट्टू
के लिये बैलों से लेकर अपना अचार, पापड़, जैम व सॉस से लेकर सजावट के सामान
इंटरनेट के जरिये बेच रही हैं, और कई अपने घर से ऑनलाइन ई-कॉमर्स शॉप चला
रही हैं। एक अध्ययन के अनुसार भारत में इंटरनेट का प्रयोग करने वाले 96.6
प्रतिशत लोग ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं, फलस्वरूप पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र
में भारत सबसे आगे हो गया है। हमारे देश में ही इंटरनेट पर कई समाचार पत्रों की ई-वेबसाईट्स ही नहीं वेब
पोर्टल्स भी लोगों तक आसानी से समाचार, सूचनाएं और जानकारी प्रेषित कर रहे
हैं। जरूरत है तो बस इतनी कि चंद बटनों को आपकी उंगली का इशारा मिले। हमारे
देश में 8 अप्रेल 1998 को न्यूज ट्रेक द्वारा ई-मेल अखबार जारी किया गया
था। उस दौर में एक पाठक के लिए उसका खर्च 25 पैसे आया था और उस दौर में
इसके 45 हजार पाठकोंको यह अखबार नियमित पहंुचाया जाता था। लेकिन आज नवतकनीक
के दौर में आप और हम अपने मोबाइल पर ही पल-पल हो रहे बदलाव को जानसकते
हैं। एक समय आएगा जब आप अपने मोबाइल की टॉर्च से दीवार पर ही वर्चुअल
समाचार पढ़ पाएंगे और वे भी दृश्यों के साथ।
सस्ती वाई-फाई सुविधा देने के लिये बनेंगे पीडीओ
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकारी यानी
‘ट्राई’ ने 9 मार्च 2017 को वाई-फाई उपकरणों पर आयात शुल्क आम लोगों को
सस्ती दरों पर वाई-फाई सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए ‘पब्लिक डाटा आफिस’ यानी
‘पीडीओ’ तथा ‘एग्रीगेटर’ उपलब्ध कराने का विचार रखा है। ट्राई का कहना है
कि पीडीओ स्थापित करने के लिए एक नई रूपरेखा बनाते हुए पीडीओ के साथ
एग्रीगेटर को यानी पीडीओए को सार्वजनिक वाई फाई सेवा मुहैया कराने की इजाजत
देनी चाहिए। ट्राई का मानना है कि इन कदमों से सार्वजनिक हॉट स्पाट की
संख्या बढ़ेगी तथा देश में इंटरनेट सेवाएं और वहनीय होंगी। नियामक का कहना
है कि वाई-फाई पहुंच बिंदुओं के लिए उपकरण आयात शुल्क ढांचे पर वाणिज्य
मंत्रालय के साथ समन्वय बिठाते हुए पुनर्विचार होना चाहिए। नियामक के
अनुसार इससे भी इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराने की लागत में कमी आएगी। इसमें कहा
गया है, ‘पीडीओ को सार्वजनिक तौर पर वाई-फाई सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए
बिना किसी खास लाइसेंस के यह सेवा देने की अनुमति होनी चाहिए। हालांकि
उन्हें इसके लिए दूरसंचार विभाग की तरफ से पंजीकरण की आवश्यकता होनी चाहिए।
इसमें उनके लिए ई-केवाईसी, और रिकार्ड रखने की आवश्यकता होगी।’
एक मिनट में इंटरनेट पर होता है बहुत कुछ
एक मिनट में इंटरनेट पर क्या-क्या होता है, इस पर एक दिलचस्प अध्ययन सामने आया है। इसके अनुसार :-
एक मिनट में सात लाख एक हजार 389 लोग फेसबुक पर लॉगइन करते हैं।
ह्वाट्सएप पर दो करोड़ आठ लाख संदेश भेजे और प्राप्त किए जाते हैं।
ट्विटर पर तीन लाख 47 हजार 222 ट्वीट्स किये जाते हैं।
इंस्टाग्राम पर 34 हजार 194 नए पोस्ट्स डाले जाते हैं।
ई-कॉमर्श कंपनी ऐमजॉन पर दो लाख तीन हजार 596 डॉलर यानी करीब एक करोड़ 35 लाख रुपए का सामान बेचा जाता है।
दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल पर 24 लाख सर्च किए जाते हैं।
यूट्यूब पर 27 लाख 80 हजार वीडियो देखे जाते हैं।
13 करोड़ ई-मेल भेजे जाते हैं।
कैब सर्विस-ऊबर पर 1389 राइड्स बुक होती हैं।
ऐपल के ऐप स्टोर से 51 हजार ऐप डाउनलोड होते हैं।
जॉब वेबसाइट लिंक्डइन पर 120 से ज्यादा नये अकाउंट खुलते हैं।
वाइन पर 10 करोड़ 40 लाख वाइन लूप्स देखे जाते हैं।
म्यूजिक स्ट्रीमिंग वेबसाइट स्पॉटीफाई पर 38 हजार 52 घंटे का म्यूजिक सुना जाता है।
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