शाही ट्रेन 'पैलेस ऑन व्हील्स' एक तरह से पटरी पर दौड़ता राजस्थान है.
यह ट्रेन पुराने रजवाड़ों के राजसी ठाठ-बाट के साथ यात्रियों को शाही अंदाज़ में सफ़र करवाने के लिए शुरू की गई थी.इस ट्रेन में वो कोच लगाए गए थे, जिनका इस्तेमाल पहले के महाराजाओं ने किया था.
हालांकि बाद में 1991 में उन कोचों को बदल दिया गया.
ढोला मारू और बूंदी शैली के चित्र, जैसलमेर की हवेलियों और सोनार क़िले से लेकर, उदयपुर के शाही मयूर की झलक, यहां मौजूद है.
साथ ही खूबसूरत फर्नीचर, गलीचे, परदे, सुसज्जित बार, महाराजा और महारानी नाम से दो रेस्टोरेंट इस ट्रेन में मौजूद हैं.
ट्रेन में लज़ीज़ खाना, स्पा और राजपूती साफे और पोशाक में तैनात खिदमतगार भी आपकी सेवा में लगे रहते हैं.
पैलेस ऑन व्हील्स का पहला फेरा 1982 में शुरू हुआ था. शुरू के सालों में यह बहुत लोकप्रिय रही, लेकिन पिछले कुछ सालों से इसका आकर्षण कम होता जा रहा है.
2007-2008 से 2013-14 के बीच इस ट्रेन के यात्रियों की संख्या में 43 प्रतिशत की गिरावट आई है.
इस ट्रेन को सबसे बड़ा झटका पिछले महीने लगा जब बुकिंग के अभाव में 30 मार्च का इसका फेरा रद्द करना पड़ा.
इसके लिए कुछ लोग नए यात्रा विकल्पों की तरफ लोगों की बढ़ती रूचि को ज़िम्मेदार मानते हैं.
वहीं कुछ लोग इसके लिए राजस्थान पर्यटन विभाग की बुरी व्यवस्था को ज़िम्मेदार मानते हैं.
बेहतर मार्केटिंग की कमी और सड़क मार्ग की यात्रा के लिए सैलानियों को लुभाने की ट्रैवल एजेंट्स की कोशिश को भी, इसका एक कारण बताया जा रहा है.
राज्य की एक दूसरी शाही ट्रेन 'रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स' का किराया इससे कम है, लेकिन पिछले दिसंबर में उसके भी दो फेरों को बुकिंग के अभाव में रद्द करना पड़ा था.
एक विदेशी पर्यटक के लिए, अक्टूबर से मार्च के बीच किसी एक फेरे में सफ़र करने पर पैलेस ऑन व्हील्स का किराया क़रीब 6 हज़ार डॉलर, यानी क़रीब चार लाख रुपये पड़ता है.
भारतीय पर्यटकों के लिए यह किराया क़रीब 3.63 लाख़ रुपये है.
इस ट्रेन के लिए अक्टूबर से मार्च तक का समय पीक सीज़न माना जाता है.
यह ट्रेन राजस्थान पर्यटन विकास निगम की है और इसे भारतीय रेल के सहयोग से चलाया जाता है.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें