पत्र लेखन से अभिव्यक्ति कौशल का विकास
बुनियादी जानकारी
►राकेश रौथन
प्रस्तुति-- राहुल मानव, सजीली सहाय
बच्चों में
अपने विचारों को अपने परिवेश के साथ जोड़कर प्रस्तुत करने की असीम क्षमता
होती है। वह हर घटना तथा विचार पर अपना मत प्रकट अवश्य करते हैं। यह भी कह
सकते हैं कि उन्होंने कुछ देखा हो या न देखा हो, चाहे वह उससे जुड़े हुए हों
या नहीं, पर कुछ न कुछ तो बोलेंगे ही। उनकी कक्षा, घर, परिवार, पास पड़ोस
में बहुत सी बातें होती हैं, जिन्हें बताने के लिए वे उत्सुक रहते हैं।
अब बात आती
है कि बच्चों की इस कला (भावों को अभिव्यक्त करना) को किस प्रकार हम लेखन
की ओर ले जाएँ। खासतौर पर जब यह कार्य हमें दूसरी भाषा के रूप में करना हो
अर्थात अँग्रेजी भाषा के रूप में। मातृभाषा के लिए हमारे पास अवसर अधिक हैं
क्योंकि हम घर, विद्यालय आसपड़ोस व बातचीत में इसका अधिक से अधिक प्रयोग
करते हैं।
अँग्रेजी
में भी इस तरह विद्यार्थी कुछ स्वयं लिखने का प्रयास करें, उसके लिए कुछ
शुरुआत करनी थी। एक दिन एक विचार मेरे मन में आया। मैं बच्चों के साथ कक्षा
में एक कविता Letter to my mother पर काम कर रहा था। बच्चों से बातचीत में
पता चला कि वे post off।ce , letter box, व postman के बारे में जानते थे।
जब उनसे पूछा गया की चिट्ठी के विषय में वह क्या जानते हैं तो उनके विचार
आए:
- अपनी बात दूसरे को बताने का माध्यम है
- जो लोग हमारे सामने नहीं हैं उन तक अपनी बात पहुँचाने का जरिया है
- अगर फोन नहीं होगा तो चिट्ठी ही काम आएगी।
जब
मैंने पूछा, ‘क्या तुमने कभी चिट्ठी लिखी है?’ अधिकतर का जवाब नहीं में था।
मैंने पूछा , ‘क्या तुम चिट्ठी लिखना सीखना चाहते हो?’ सब जवाब इस बार हाँ
में थे।
किस को
चिट्ठी लिखेंगे? कोई अपने भाई को, कोई मामा को या अलग-अलग लोगों को लिखना
चाहते थे। मैंने उन्हें सुझाव दिया, क्यों न हम पहले अपने कक्षा के मित्रों
को ही पत्र लिखें व अपनी बात उन्हें बताएँ? सब तैयार हो गए। उत्साह
अत्यधिक था।
अब सवाल
उठा कि लिखें तो कैसे लिखें? इसका भी एक स्वरुप तैयार कर अभ्यास किया गया।
अब सब पूर्णतः तैयार थे। लिखना शुरू किया। कई बच्चों की दिक्कत थी की
अँग्रेजी में लिखना नहीं आता। उनसे कहा, हिन्दी में शुरुआत कर लो, कुछ
अँग्रेजी शब्दों का प्रयोग कर लो।
चिट्ठियाँ
तैयार हो गईं। दोस्तों के नाम लिख दिए गए। उन पर स्टेपलर पिन लगा दी गई।
अब उन सभी पत्रों को कक्षा में बनाए गए लैटर बॉक्स में डाल दिया गया।
बच्चों का उत्साह देखने लायक था। पत्र को लैटर बॉक्स में डालने से पहले वे
किसी को भी इसे दिखाना नहीं चाहते थे, किसी के साथ साझा भी नहीं करना
चाहते थे। वह चाहते थे कि केवल उनके मित्र ही इसे पढ़ें, और कोई नहीं।
अब पत्र
कक्षा में जिस-जिस छात्रों को देना था, दिया गया। वे अपने-अपने पत्र, जो
उनके मित्रों ने भेजा था, पढ़़ने लगे। पत्र पढ़ने के लिए भी काफी कोशिश
करनी पढ़ रही थी। फिर भी उत्साह अत्यधिक था।
बच्चों से
जब पूछा गया कि वे कैसा अनुभव कर रहें हैं तो वे काफी खुश थे और इस
गतिविधि को निरन्तर आगे बढ़ाना चाहते थे। जैसे-जैसे गतिविधि दोहराई जाने
लगी बच्चों में भावों को लिखकर व्यक्त करने की प्रवृति नए रूप ले रही थी।
अब छोटे साधारण अँग्रेजी के वाक्यों का प्रयोग भी करने लगे हैं। वह निरन्तर
किसी न किसी की सहायता लेते रहते हैं अपने भावों को लिखकर व्यक्त करने
में।
इस गतिविधि
में वे बच्चे भी प्रतिभाग करने लगे हैं जो पहले लिखने में अधिक रूचि नहीं
दिखाते थे। बच्चे पत्र पढ़ते समय हँसी-मजाक करते हैं और अगली बार के लिए
नया साथी खोजते हैं जिसे वह पत्र लिख सकें।
इस तरह
मैंने सीखा कि कैसे इस गतिविधि द्वारा बच्चों को प्रेरित करने का प्रयास कर
सकते हैं। बच्चों के साथ यदि उनकी रूचि के कार्यों द्वारा सिखाने की पहल
की जाए तो वे ज्यादा भागीदारी दिखाते हैं।
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