प्रस्तुति--़़-- अखौरी प्रमोद रुपेश कुमार
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
भीकाजी कामा
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पूरा नाम | भीकाजी रुस्तम कामा |
अन्य नाम | मैडम कामा |
जन्म | 24 सितंबर, 1861 |
जन्म भूमि | बम्बई (वर्तमान मुम्बई) |
मृत्यु | 13 अगस्त, 1936 |
मृत्यु स्थान | बम्बई, भारत |
पति/पत्नी | रुस्तम के. आर. कामा |
नागरिकता | भारत, फ़्रांस |
प्रसिद्धि | मैडम भीकाजी कामा ने भारत का पहला झंडा फहराया उसमें हरा, केसरीया तथा लाल रंग के पट्टे थे। |
आंदोलन | भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन |
अन्य जानकारी | 'वन्दे मातरम' और 'मदन तलवार' नामक दो क्रांतिकारी पत्रों का प्रकाशन किया। |
जीवन परिचय
मैडम कामा का जन्म 24 सितंबर सन् 1861 में एक पारसी परिवार में हुआ था। मैडम कामा के पिता प्रसिद्ध व्यापारी थे। मैडम कामा ने अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षा प्राप्त की। अंग्रेज़ी भाषा पर उनका प्रभुत्व था। श्री रुस्तम के. आर. कामा के साथ उनका विवाह हुआ। वे दोनों अधिवक्ता होने के साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता भी थे, किंतु दोनों के विचार भिन्न थे। रुस्तम कामा उनकी अपनी संस्कृति को महान मानते थे परंतु मैडम कामा अपने राष्ट्र के विचारों से प्रभावित थीं। उन्हें विश्वास था कि ब्रिटिश लोग भारत का छल कर रहे हैं। इसीलिए वे भारत की स्वतंत्रता के लिए सदा चिंतित रहती थीं। मैडम कामा ने श्रेष्ठ समाज सेवक दादाभाई नौरोजी के यहां सेक्रेटरी के पद पर कार्य किया। उन्होंने यूरोप में युवकों को एकत्र कर स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन किया तथा ब्रिटिश शासन के बारे में जानकारी दी। मैडम कामा ने लंदन में पुस्तक प्रकाशन का कार्य आरंभ किया। उन्होंने विशेषत: देशभक्ति पर आधारित पुस्तकों का प्रकाशन किया। वीर सावरकर की ‘1857 चा स्वातंत्र्य लढा’ (1857 का स्वतंत्रता संग्राम) पुस्तक प्रकाशित करने के लिए उन्होंने सहायता की। मैडम कामा ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए क्रांतिकारियों को आर्थिक सहायता के साथ ही अन्य अनेक प्रकार से भी सहायता की। सन् 1907 में जर्मनी के स्ट्रटगार्ड नामक स्थानपर ‘अंतरराष्ट्रीय साम्यवादी परिषद’ संपन्न हुई थी। इस परिषद के लिए विविध देशों के हजारों प्रतिनिधी आए थे। उस परिषद में मैडम भीकाजी कामा ने साड़ी पहनकर भारतीय झंडा हाथ में लेकर लोगों को भारत के विषय में जानकारी दी। मैडम कामा ने फहराया हुआ यह पहला झंडा।भारत का पहला झंडा फहराया
मैडम भीकाजी कामा ने भारत का पहला झंडा फहराया उसमें हरा, केसरिया तथा लाल रंग के पट्टे थे। लाल रंग यह शक्ति का प्रतीक है, केसरिया विजय का तथा हरा रंग साहस एवं उत्साह का प्रतीक है। उसी प्रकार 8 कमल के फूल भारत के 8 राज्यों के प्रतीक थे। ‘वन्दे मातरम्’ यह देवनागरी अक्षरों में झंडे के मध्य में लिखा था। यह झंडा वीर सावरकर ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर बनाया था।[1]सामाजिक कार्य
[2]जहाँ एक ओर परतंत्रता का दंश झेल रहा था वहीं सामाजिक स्तर पर भी पिछड़नेपन से जूझ रहा था। एक ओर औरतों को देवी बना कर उन्हें पूजनीय माना जाता था, वहीं इसका दूसरा पहलू था कि लड़कियों अभिशाप मानी जाती थीं। एक ओर जहाँ महिलाओं के सामने अपने ही समाज से लड़ने की चुनौती थी, तो दूसरी ओर स्वतंत्रता की लड़ाई में महती भूमिका निभाने की प्रबल इच्छा। ऐसे में अगर कोई स्त्री पूरी तरह से देश की स्वतंत्रता को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना ले तो इसे अप्रतीम उदाहरण माना जाएगा। आज़ादी की लड़ाई में उन्हीं अग्रणियों में एक नाम आता है - मैडम भीकाजी कामा का। दृढ़ विचारों वाली भीकाजी ने अगस्त 1907 को जर्मनी में आयोजित सभा में भारत का झंडा फहराया था, जिसे वीर सावरकर और उनके कुछ साथियों ने मिलकर तैयार किया था, यह आज के तिरंगे से थोड़ा भिन्न था। भीकाजी ने स्वतंत्रता सेनानियों की आर्थिक मदद भी की और जब देश में प्लेग फैला तो अपनी जान की परवाह किए बगैर उनकी भरपूर सेवा की। स्वतंत्रता की लड़ाई में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। वो बाद में लंदन चली गईं और उन्हें भारत आने की अनुमति नहीं मिली। लेकिन देश से दूर रहना उनके लिए संभव नहीं हो पाया और वो पुन: अपने वतन लौट आईं। सामाजिक कार्यों में अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण उनका स्वास्थ बिगड़ गया, जिसके उपचार के लिए उन्हें 1902 ई. में इंग्लैण्ड जाना पडा। वहाँ वे 'भारतीय होम रूल समिति' की सदस्या बन गई। श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा उन्हें 'इण्डिया हाउस' के क्रांतिकारी दस्ते में शामिल कर लिया गया।[3]क्रांति प्रसूता
पत्र का प्रकाशन
धीरे-धीरे मैडम कामा की क्रांतिकारी गतिविधियाँ बढ़ती गई। इससे पहले कि अंग्रेज़ सरकार उन्हें गिरफ्तार करे, वे फ्रांस चली गई तथा वहाँ से 'वन्दे मातरम' नामक क्रांतिकारी पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। अपनी सम्पादकीय में वे कितनी उग्र भाषा का प्रयोग करती थीं। इसका एक उदाहरण धीरे-धीरे गोली चलाना सीख लो। अब वह समय ज़्यादा दूर नहीं, जब तुम्हें अपनी प्रिय हिन्दुस्तानी सरजमीं से अग्रेज़ों को मार भागने के लिए कहा जाएगा।‘मदन तलवार'
इसी कालावधि में सावरकर जी का ‘1857 का स्वतंत्रता समर' ग्रंथ प्रकाशित हुआ। उन्होंने घोषित किया कि ब्रिटिश शासन द्वारा प्रतिबंधित ग्रंथ की प्रतियां अपने पैरिस के अधिवास (पता) पर उपलब्ध होंगी। इस ग्रंथ का अनुवाद भी उन्होंने एवं पी. टी. आचार्य जी ने फ्रेंच भाषा में प्रकाशित किए। मदनलाल धिंगरा जी के कर्जन वायली का वध करने पर 5 अगस्त 1907 को सावरकर जी से मिलने के लिए मैडम कामा लंदन आकर गईं। मदन लाल जी की स्मृति में उन्होंने ‘मदन तलवार' नामक नियतकालिक भी सितंबर 1909 को आरंभ किया।[5]वीर सावरकर और मैडम कामा
जनवरी 1910 के प्रथम सप्ताह में क्रांति के कार्य की भागदौड से सावरकर जी का स्वास्थ्य बिगड गया। विश्राम के लिए तथा स्थानपालट हेतु वे लंदन से पैरिस मैडम कामा के यहां आए। अब तक मैडम कामा उनकी दूसरी मां ही बन गई थीं। इस असाधारण मां ने 2 माह तक सावरकरजी की सेवा की। तब तक महाराष्ट्र के नासिक में अनंत कान्हेरे जी ने जैक्सन का वध किया था। इस घटना का संबंध सावरकर जी से हो सकता है, यह जानकर पूछताछ चालू हो गई। सावरकर जी ने ही संबंधित पिस्तौल हिंदुस्तान में भेजी थी। हिंदुस्तान एवं लंदन में अपने सहकारी संकट में होते हुए स्वयं फ्रांस में रहना उचित नहीं, यह जानकर सावरकर जी लंदन लौटने लगे। लंदन पहुंचते ही उन्हें बंदी बनाया जा सकता है, यह सोचकर मैडम कामा चिंतित हो उठीं। लंदन लौटने के विचारों से सावरकरजी को परावृत्त करने का उन्होंने प्रयत्न भी किया; परंतु सावरकरजी अपने विचारों पर अडीग रहे। 13 मार्च 1910 को मैडम कामा तथा लाला हरदयालजी सावरकरजी को छोड़ने आगगाडी स्थानक (रेलवे स्टेशन) पर आए। उस समय उन दोनों का मन बड़ा चिंताग्रस्त हो गया। विक्टोरिया स्थानक पर उतरते ही सावरकरजी को बंदी बना लिया गया और न्यायालय के आदेश अनुसार उन्हें हिंदुस्तान में भेजने का निर्णय हुआ।सावरकरजी को मुक्त करने के प्रयत्न
निधन
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उन्हें काफ़ी कष्ट झेलने पड़े। भारत में उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली गई। उन्हें एक देश से दूसरे देश में लगातार भागना पड़ा। वृद्धावस्था में वे भारत लौटी तथा 13 अगस्त, 1936 को बम्बई (वर्तमान मुम्बई) में गुमनामी की हालत में उनका देहांत हो गया।टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मैडम कामा (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) बालसंस्कार। अभिगमन तिथि: 5 मार्च, 2013।
- ↑ भारत
- ↑ मैडम भीकाजी कामा (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 5 मार्च, 2013।
- ↑ भीखाजी कामा की जयन्ती किसी को याद नहीं (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) kranti 4 people। अभिगमन तिथि: 5 मार्च, 2013।
- ↑ 5.0 5.1 ‘भारतकन्या' मैडम कामा (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) हिंदू जनजागृति समिति। अभिगमन तिथि: 5 मार्च, 2013।
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