जेम्स
अगस्टन हिक्की ने 29 जनवरी 1780 में पहला भारतीय समाचार पत्र बंगाल गजट
कलकत्ता से अंग्रजी में निकाला। इसका आदर्श वाक्य था - सभी के लिये खुला
फिर भी किसी से प्रभावित नहीं ।
अपने
निर्भीक आचरण और विवेक पर अड़े रहने के कारण हिक्की को इस्ट इंडिया कंपनी
का कोपभाजन बनना पड़ा। हेस्टिंगस सरकार की शासन शैली की कटू आलोचना का
पुरस्कार हिक्की को जेल यातना के रूप में मिली।
हिक्की
ने अपना उद्देश्य ही घोषित किया था - अपने मन और आत्मा की स्वतंत्रता के
लिये अपने शरीर को बंधन में डालने में मुझे मजा आता है। समाचार पत्र की
शुरूआत विद्रोह की घोषणा से हुई।
हिक्की भारत के प्रथम पत्रकार थे जिन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता के लिये ब्रिटिश सरकार से संघर्ष किया।
उत्तरी
अमेरिका निवासी विलियम हुआनी ने हिक्की की परंपरा को समृद्ध किया। 1765
में प्रकाशित बंगाल जनरल जो सरकार समर्थक था 1791 में हुमानी के संपादक बन
जाने के बाद सरकार की आलोचना करने लगा। हुमानी की आक्रामक मुद्रा से आतंकित
होकर सरकार ने उसे भारत से निष्कासित कर दिया।
जेम्स बंकिघम ने 2 अक्टूबर 1818 को कलकत्ता से अंग्रजी का कैलकटा जनरल प्रकाशित किया। जो सरकारी नीतियों का निर्भीक आलोचक था।
पंडित अंबिकाप्रशाद ने लिखा कि इस पत्र की स्वतंत्रता व उदारता पहले किसी पत्र में नही देखी गयी।
कैलकटा
जनरल उस समय के एंग्लोइंडियन पत्रों को प्रचार प्रसार में पीछे छोड़ दिया
था। एक रूपये मुल्य के इस अखबार का दो वर्ष में सदस्य संख्या एक हजार से
अधिक हो गयी थी।
जेम्स
बंकिघम को प्रेस की स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता था। सन् 1823 में
उन्हें देश निकाला दे दिया गया। हालांकि इंगलैंड जाकर उन्होंने आरियंटल
हेराल्ड निकाला जिसमें वह भारतीय समस्याओं और कंपनी के हाथों में भारत का
शासन बनाये रखने के खिलाफ लगातार अभियान चलाता रहा।
1961
के इंडियन कांउसिल एक्ट के बाद समाज के उपरी तबकों में उभरी राजनीतिक
चेतना से भारतीय व गैरभारतीय दोनों भाषा के पत्रों की संख्या बढ़ी।
1861
में बंबई में टाइम्स आफ इंडिया की 1865 में इलाहाबाद में पायनियर 1868 में
मद्रास मेल की 1875 में कलकत्ता स्टेटसमैन की और 1876 में लाहौर में सिविल
ऐंड मिलटरी गजट की स्थापना हुई। ये सभी अंग्रेजी दैनिक ब्रिटिश शासनकाल
में जारी रहे।
टाइम्स आफ इंडिया ने प्रायः ब्रिटिश सरकार की नीतियों का समर्थन किया।
पायोनियर ने भूस्वामी और महाजनी तत्वों का पक्ष तो मद्रास मेल ने यूरोपीय वाणिज्य समुदाय का पक्षधर था।
स्टेटसमैन ने सरकार और भारतीय राष्ट्रवादियों दोनों का ही आलोचना की थी।
सिविल एण्ड मिलिटरी गजट ब्रिटिश दाकियानूसी विचारों का पत्र था।
स्टेटसमैन
टाइम्स आफ इंडिया सिविल एण्ड मिलिटरी गजट पायनियर और मद्रास मेल जैसे
प्रसिद्ध पत्र अंग्रेजी सरकार और शासन की नीतियों एवं कार्यक्रम का समर्थन
करते थे।
अमृत
बाजार पत्रिका बांबे क्रानिकल बांबे सेंटिनल हिन्दुस्तान टाइम्स
हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड फ्री प्रेस जनरल नेश्नल हेराल्ड नेश्नल काल अंग्रेजी
में छपने वाले लक्ष्य प्रतिष्ठित राष्ट्रवादी दैनिक और साप्ताहिक पत्र थे।
हिन्दू लीडर इंडियन सोशल रिफार्मर माडर्न रिव्यू उदारपंथी राष्ट्रीयता की
भावना को अभिव्यक्ति देते थे।
इंडियन नेशनल कांग्रेस की नीतियों और कार्यक्रमों को राष्ट्रीय पत्रों ने पूर्ण और उदारपंथी पत्रों ने आलोचनात्मक समर्थन दिया था।
डान मुस्लिम लीग के विचारों का पोषक था। देश के विद्यार्थी संगठनों के अपने पत्र थे जैसे स्टूडेंट और साथी।
सुरेंद्रनाथ बनर्जी का बंगाली ( 1879 अंग्रेजी में )
भारत
के राष्ट्रीय नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने 1874 में बंगाली ( अंग्रेजी )
पत्र का प्रकाशन व संपादन किया। इसमें छपे एक लेख के लिये उनपर न्यायालय की
अवज्ञा का अभियोग लगाया गया था। उन्हें दो महीने के कारावास की सजा मिली
थी। बंगाली ने भारतीय राजनीतिक विचारधारा के उदारवादी दल के विचारों का
प्रचार किया था।
सुरेन्द्रनाथ
बनर्जी की राय पर दयाल सिंह मजीठिया ने 1877 में लाहौर में अंग्रेजी दैनिक
ट्रिब्यून की स्थापना की। पंजाब की उदारवादी राष्ट्रीय विचारधारा का यह
प्रभावशाली पत्र था।
लार्ड
लिटन के प्रशासनकाल में कुछ सरकारी कामों के चलते जनता की भावनाओं को चोट
पहुंची जिससे राजनीतिक असंतोष बढ़ा और अखबारों की संख्या में वृद्धि हुई।
1878 में मद्रास में वीर राधवाचारी और अन्य देशभक्त भारतीयों ने अंग्रेजी
सप्ताहिक हिन्दू की स्थापना की। 1889 से यह दैनिक हुआ। हिन्दु का दृष्टिकोण
उदारवादी था। लेकिन इसने इंडियन नेश्नल कांग्रेस की राजनीति की आलोचना के
साथ ही सका समर्थन भी किया।
राष्ट्रीय चेतना का समाज सुधार के क्षेत्र में भी प्रसार हुआ। बंबई में 1890 में इंडियन सोशल रिफार्मर अंग्रेजी साप्ताहिक की स्थापना हुई। समाज सुधार ही इसका मुख्य लक्ष्य था।
1899
में सच्चिदानंद सिन्हा ने अंग्रेजी मासिक हिन्दुस्तान रिव्यू की स्थापना
की। इस पत्र का राजनैतिक और वैचारिक दृष्टिकोण उदारवादी था।
1900 के बाद
1900 में जी ए नटेशन ने मद्रास से इंडियन रिव्यू का और 1907 में कलकत्ता से रामानन्द चटर्जी ने मॉडर्न रिव्यू का प्रकाशन शुरू किया।
मॉडर्न
रिव्यू देश का सबसे अधिक विख्यात अंग्रेजी मासिक सिद्ध हुआ। इसमें सामाजिक
राजनीतिक ऐतिहासिक और वैज्ञानिक विषयों पर लेख निकलते थे और अंतराष्ट्रीय
घटनाओं के विषय में भी काम की खबरें होती थी। इसने इंडियन नेश्नल कांग्रेस
में प्रायः दक्षिणपंथियों का समर्थन किया।
1913 में बी जी हार्नीमन के संपादकत्व में फिरोजशाह मेहता ने बांबे क्रानिकल निकाला।
1918
में सर्वेंटस आफ इंडिया सोसाइटी ने श्रीनिवास शास्त्री के संपादकत्व में
अपना मुखपत्र सर्वेंट आफ इंडिया निकालना शुरू किया। इसने उदारवादी
राष्ट्रीय दृष्टिकोण से देश की समस्याओं का विश्लेषण और समाधान प्रस्तुत
किया। 1939 में इसका प्रकाशन बंद हो गया।
1919
में गांधी ने यंग इंडिया का संपादन किया और इसके माध्यम से अपने राजनीतिक
दर्शन कार्यक्रम और नीतियों का प्रचार किया। 1933 के बाद उन्होंने हरिजन (
बहुत सी भाषाओं में प्रकाशित साप्ताहिक ) का भी प्रकाशन शुरू किया।
पंडित मोतीलाल नेहरू ने 1919 में इलाहाबाद से इंडीपेंडेंट ( अंग्रेजी दैनिक ) का प्रकाशन शुरू किया।
स्वराज
पार्टी के नेता ने दल के कार्यक्रम के प्रचार के लिये 1922 में दिल्ली में
के एम पन्नीकर के संपादकत्व में हिन्दुस्तान टाइम्स ( अंग्रेजी दैनिक ) का
प्रकाशन शुरू किया। इसी काल में लाला लाजपत राय के फलस्वरूप लाहौर से
अंग्रेजी राष्ट्रवादी दैनिक प्युपल का प्रकाशन शुरू किया गया।
1923 के बाद धीरे -
धीरे समाजवादी, साम्यवादी विचार भारत में फैलने लगे। वर्कर्स एंड प्लेसंट
पार्टी आफ इंडिया का एक मुखपत्र मराठी साप्ताहिक क्रांति था। मर्ट
कांसपीरेसी केस के एम जी देसाई और लेस्टर हचिंसन के संपादकत्व में क्रमशः
स्पार्क और न्यू स्पार्क ( अंग्रेजी साप्ताहिक ) प्रकाशित हुआ।
मार्क्सवाद
का प्रचार करना और राष्ट्रीय स्वतंत्रता एवं किसानों मजदूरों के स्वतंत्र
राजनीतिक आर्थिक संघर्षों को समर्थन प्रदान करना इनका उद्देश्य था।
1930
और 1939 के बीच मजदूरों किसानों के आंदोलनों का विस्तार हुआ और उनकी ताकत
बढ़ी। कांग्रेस के नौवजवानों के बीच सामाजवादी साम्यवादी विचार विकसित हुए।
इस तरह स्थापित कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने अधिकारिक पत्र के रूप में
कांग्रेस सोशलिस्ट का प्रकाशन किया।
कम्युनिस्ट के प्रमुख पत्र नेश्नल फ्रंट और बाद में प्युपलस् वार थे। ये दोनों अंग्रेजी सप्ताहिक पत्र थे।
एम एन रॉय के विचार अधिकारिक साम्यवाद से भिन्न थे। उन्होंने अपना अलग दल कायम किया जिसका मुखपत्र था इंडीपेंडेंट इंडिया।
राजा राममोहन राय
राजा
राममोहन राय ने सन् 1821 में बंगाली पत्र संवाद कौमुदी को कलकत्ता से
प्रकाशित किया। 1822 में फारसी भाषा का पत्र मिरात उल अखबार और अंग्रेजी
भाषा में ब्रेहेनिकल मैगजीन निकाला।
राजा
राममोहन राय ने अंग्रेजी में बंगला हेराल्ड निकाला। कलकत्ता से 1829 में
बंगदूत प्रकाशित किया जो बंगला फारसी हिन्दी अंग्रेजी भाषाओं में छपता था।
संवाद
कौमुदी और मिरात उल अखबार भारत में स्पष्ट प्रगतिशील राष्ट्रीय और
जनतांत्रिक प्रवृति के सबसे पहले प्रकाशन थे। ये समाज सुधार के प्रचार और
धार्मिक – दार्शनिक समस्याओं पर आलोचनात्मक वाद – विवाद के मुख्य पत्र थे।
राजा
राममोहन राय की इन सभी पत्रों के प्रकाशन के पीछे मूल भावना यह थी ...
मेरा उद्देश्य मात्र इतना है कि जनता के सामने ऐसे बौध्दिक निबंध उपस्थित
करूं जो उनके अनुभव को बढ़ावें और सामाजिक प्रगति में सहायक सिध्द हो। मैं
अपनी शक्ति भर शासकों को उनकी प्रजा की परिस्थितियों का सही परिचय देना
चाहता हूं और प्रजा को उनके शासकों द्वारा स्थापित विधि व्यवस्था से परिचित
कराना चाहता हूं ताकि जनता को शासन अधिकाधिक सुविधा दे सके। जनता उन उपायो
से अवगत हो सके जिनके द्वारा शासकों से सुरक्षा पायी जा सके और अपनी उचित
मांगें पूरी करायी जा सके।
दिसंबर
1823 में राजा राममोहन राय ने लार्ड एमहस्ट को पत्र लिखकर अंग्रेजी शिक्षा
के प्रसार हेतु व्यवस्था करने का अनुरोध किया ताकि अंग्रेजी को अपनाकर
भारतवासी विश्व की गतिविधियों से अवगत हो सके और मुक्ति का महत्व समझे।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
विष्णु शास्त्री चिपलणकर और लोकमान्य तिलक ने मिलकर 1 जनवरी 1881 से मराठी में केसरी और अंग्रेजी में मराठा साप्ताहिक पत्र निकाले।
तिलक
और उनके साथियों ने पत्र – प्रकाशन की उदघोषणा में कहा - हमारा दृढ़
निश्चय है कि हम हर विषय पर निष्पक्ष ढंग से तथा हमारे दृष्टिकोण से जो
सत्य होगा उसका विवेचन करेंगे। निःसंदेह आज भारत में ब्रिटिश शान में
चाटुकारिता की प्रवृति बढ़ रही है। सभी ईमानदार लोग यह स्वीकार करेंगे कि
यह प्रवृति अवांछनीय तथा जनता के हितों के विरूद्ध है। इस प्रस्तावित
समाचारपत्र (केसरी) में जो लेख छपेंगे वे इनके नाम के ही अनुरूप होंगे।
केसरी
और मराठा ने महाराष्ट्र में जनचेतना फैलाई तथा राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन
के इतिहास में स्वर्णिम योगदान दिया। उन्होंने भारतीय जनता को दीन – हीन व
दब्बू पक्ष की प्रवृति से उठ कर साहसी निडर व देश के प्रति समर्पित होने
का पाठ पढ़ाया। बस एक ही बात उभर कर आती थी -स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध
अधिकार है।
सन्
1896 में भारी आकाल पड़ा जिसमें हजारों लोगों की मौत हुई। बंबई में इसी
समय प्लेग की महामारी फैली। अंग्रज सरकार ने स्थिति संभालने के लिये सेना
बुलायी। सेना घर – घर तलाशी लेना शुरू कर दिया जिससे जनता में क्रोध पैदा
हो गया। तिलक ने इस मनमाने व्यवहार व लापरवाही से क्षुब्ध होकर केसरी के माध्यम से सरकार की कड़ी आलोचना की। केसरी में उनके लिखे लेख के कारण उन्हें 18 महीने कारावास की सजा दी गयी।
महात्मा गांधी
गांधीजी
ने 4 जून 1903 में इंडियन ओपिनियन साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन किया। जिसके
एक ही अंक से अंग्रेजी हिन्दी तमिल गुजराती भाषा में छः कॉलम प्रकाशित होते
थे। उस समय गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में रहते थे।
अंग्रेजी में यंग इंडिया और जुलाई 1919 से हिन्दी - गुजराती में नवजीवन का प्रकाशन आरंभ किया।
इन
पत्रों के माध्यम से अपने विचारों को जनमानस तक पहुंचाया। उनके व्यक्तित्व
ने जनता पर जादू सा कर दिया था। उनकी आवाज पर लोग मर - मिटने को तैयार हो
गये।
इन
पत्रों में प्रति सप्ताह महात्मा गांधी के विचार प्रकाशित होते थे।
ब्रिटिश शासन द्वारा पारित कानूनों के कारण जनमत के अभाव में ये पत्र बंद
हो गये। बाद में उन्होंने अंग्रेजी में हरिजन और हिन्दी में हरिजन सेवक तथा
गुजराती में हरिबन्धु का प्रकाशन किया तथा ये पत्र स्वतंत्रता तक छापते
रहे।
अमृत बाजार पत्रिका
सन्
1868 में बंगाल के छोटे से गांव अमृत बाजार से हेमेन्द्र कुमार घोष, शिशिर
कुमार घोष और मोतीलाल घोष के संयुक्त प्रयास से एक बांगला साप्ताहिक पत्र
अमृत बाजार पत्रिका शुरू हुआ। बाद में कलकत्ता से यह बांगला और अंग्रेजी
दोनों भाषाओं में छपने लगी।
1878
के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिये इसे पूर्णतः अंग्रेजी
साप्ताहिक बना दिया गया। सन् 1891 में अंग्रेजी दैनिक के रूप में इसका
प्रकाशन शुरु हुआ।
अमृत
बाजार पत्रिका ने तगड़े राष्ट्रीय विचारों का प्रचार किया और यह अत्याधिक
लोकप्रिय राष्ट्रवादी पत्र रहा है। सरकारी नीतियों की कटू आलोचना के कारण
इस पत्र का दमन भी हुआ। इसके कई संपादकों को जेल की भी सजा भुगतनी पड़ी।
जब
ब्रिटिश सरकार ने धोखे से कश्मीर मे राजा प्रताप सिंह को गद्दी से हटा
दिया और कश्मीर को अपने कब्जे में लेना चाहा तो इस पत्रिका ने इतना तीव्र
विरोध किया कि सरकार को राजा प्रताप सिंह को राज्य लौटाना पड़ा।
पयामे आजादी
स्वतंत्रता
आंदोलन के अग्रणी नेता अजीमुल्ला खां ने 8 फरवरी 1857 को दिल्ली से पयामे
आजादी पत्र प्रारंभ किया। शोले की तरह अपनी प्रखर व तेजस्वनी वाणी से जनता
में स्वतंत्रता की भावना भर दी। अल्पकाल तक जीवित रहे इस पत्र से घबराकर
ब्रिटिश सरकार ने इसे बंद कराने में कोई कसर नही छोड़ी।
पयामे
आजादी पत्र से अंग्रेज सरकार इतनी आतंकित हुई कि जिस किसी के पास भी इस
पत्र की कॉपी पायी जाती उसे गद्दार और विद्रोही समझ कर गोली से उड़ा दिया
गया। अन्य को सरकारी यातनायें झेलनी पड़ती थी। इसकी प्रतियां जब्त कर ली
गयी फिर भी इसने जन – जागृति फैलाना जारी रखा।
युगांतर
जगदीश
प्रसाद चतुर्वेदी ने लिखा है - जहां तक क्रांतिकारी आंदोलन का संबंध है
भारत का क्रांतिकारी आंदोलन बंदूक और बम के साथ नही समाचारपत्रों से शुरु
हुआ।
वारिन्द्र
घोष का पत्र युगांतर वास्तव में युगान्तरकारी पत्र था। कोई जान नही पाता
था कि इस पत्र का संपादक कौन है। अनेक व्यक्तियों ने ससमय अपने आपको पत्र
का संपादक घोषित किया और जेल गये। दमनकारी कानून बनाकर पत्र को बंद किया
गया।
चीफ
जस्टिस सर लारेंस जैनिकसन ने इस पत्र की विचारधारा के बारे में लिखा था –
इसकी हर एक पंक्ति से अंग्रेजों के विरुध्द द्वेष टपकता है। प्रत्येक शब्द
में क्रांति के लिये उत्तेजना झलकती है।
युगांतर
के एक अंक में तो बम कैसे बनाया जाता है यह भी बताया गया था। सन् 1909 में
इसका जो अंतिम अंक प्रकाशित हुआ उस पर इसका मुल्य था – फिरंगदि कांचा माथा
( फिरंगी का तुरंत कटा हुआ सिर )
एक से अधिक भाषा वाले भाषाई पत्र
हिन्दु
मुसलमान दोनों सांप्रदायिकता के खतरे को समझते थे। उन्हें पता था कि
साम्प्रदायिकता साम्राज्यवादियों का एक कारगर हथियार है। पत्रकारिता के
माध्यम से सामप्रदायिक वैमनस्य के खिलाफ लड़ाई तेज की गयी थी। भाषाई
पृथकतावाद के खतरे को देखते हुए एक से अधिक भाषाओं में पत्र निकाले जाते
थे। जिसमें द्विभाषी पत्रों की संख्या अधिक थी।
हिन्दी और उर्दू पत्र
मजहरुल सरुर, भरतपुर 1850
पयामे आजादी, दिल्ली 1857
ज्ञान प्रदायिनी, लाहौर 1866
जबलपुर समाचार, प्रयाग 1868
सरिश्ते तालीम, लखनऊ 1883
रादपूताना गजट, अजमेर 1884
बुंदेलखंड अखबार, ललितपुर 1870
सर्वाहित कारक, आगरा 1865
खैर ख्वाहे हिन्द, मिर्जापुर 1865
जगत समाचार, प्रयाग 1868
जगत आशना, आगरा 1873
हिन्दुस्तानी, लखनऊ 1883
परचा धर्मसभा, फर्रुखाबाद 1889
समाचार सुधा वर्षण, हिन्दी और बांगला, कलकत्ता 1854
हिन्दी प्रकाश, हिन्दी उर्दू गुरुमुखी, अमृतसर 1873
मर्यादा परिपाटी समाचार, संस्कृत हिन्दी, आगरा 1873
1846
में कलकत्ता से प्रकाशित इंडियन सन् भी हिन्दु हेरोल्ड की भांति पांच
भाषाओं हिन्दी फारसी अंग्रेजी बांगला और उर्दू में निकलता था।
1870 में नागपुर से हिन्दी उर्दू मराठी में नागपुर गजट प्रकाशित होता था।
बंगदूत बांगला फारसी हिन्दी अंग्रेजी भाषओं में छपता था।
गुजराती
बंबई
में देशी प्रेस के प्रणेता फरदून जी मर्जबान 1822 में गुजराती में बांबे
समाचार शुरु किया जो आज भी दैनिक पत्र के रुप में निकलता है।
1851
में बंबई में गुजराती के दो और पत्रों रस्त गोफ्तार और अखबारे सौदागर की
स्थापना हुई। दादाभाई नौरोजी ने रस्त गोफ्तार का संपादन किया। यह गुजराती
भाषा का प्रभावशाली पत्र था।
1831 में बंबई से पी एम मोतीबाला ने गुजराती पत्र जामे जमशेद शुरु किया।
मराठी
सूर्याजी कृष्णजी के संपादन में 1840 में मराठी का पहला पत्र मुंबई समाचार शुरु हुआ।
1842 में कृष्णजी तिम्बकजी रानाडे ने पूना से ज्ञान प्रकाश पत्र प्रकाशित किया।
1879 – 80 में बुरहारनपुर से मराठी साप्ताहिक पत्र सुबोध सिंधु का प्रकाशन लक्ष्मण अनन्त प्रयागी द्वारा होता था।
मध्य भारत में हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं का विकास मराठी पत्रों के सहारे ही हुआ था।
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