बर्दास्त कर पाना संम्भव नहीं है।
किंतु यदि संचार तंत्र अपने दायित्वों के प्रति सचेत है और ईमानदारी से
अपनी जवाबदेही पर क्रियान्वयन करता है तो उसके रास्ते में शूल ही नही
भाले-ही भाले हैं। यहॉ यह उल्लेख कर देना उपयुक्त होगा कि अन्य तंत्रों की
तुलना में इस तंत्र के निर्वाहन में भारी अन्तर है। विधायिका,कार्यपालिका
का प्रशासन तंत्र आर्थिक एवं आधिकारिक रूप से सम्मृद्ध है। इसी तरह
न्यायपालिका सुख-सुविधाओं एवं सहूलियतों से परिपूर्ण है। बचता है केवल यही
तंत्र जिसे पूंजीपतियों तथा कार्यपालिका के धुरन्धरों की कठपुतली बनकर रहना
पड़ रहा है। अगर सीधे-साधे शब्दों में पत्रकार संवर्ग की हालत का यदि
सिंहावलोकन किया जाय तो जो परिदृश्य उभर कर सामने आता है। वह बड़ा चौंकाने
वाला है। पत्रकार को पूंजीपतियों के प्रकाशकीय कारखानों में पत्रकारिता
करनी पड़ती है।
जिसमें उनकी हैसियत एक मजदूर से भी
कही अधिक गई गुजरी होती है। दिन-भर दौड़ धूप करके वह कुछ खबरों को खोज कर
लाता है किन्तु जैसे ही उन खबरों के प्रकाशन की बारी आती है,सेठ के
निर्देश, आड़े आ जाते हैं। न्यायपालिका के विरूद्ध, प्रशासनिक अमले के
विरूद्ध, अमुक माफिया के विरूद्ध, अमुक तथाकथित जिम्मेदार के विरूद्ध कोई
समाचार प्रकाशित नहीं होगा। रह जाती है उसकी तमाम दौड़-धूप के बाद प्राप्त
की गई सन-सनी खेज खबर धरी की धरी। संवाददाता को अपनी कलम का कौशल प्रदर्शित
करने का जजबा दिखाने का मौका जो हाथ लगा था सेठ ने अपने धन संकलन के
अवसरों के गतिरोधों की आड़ में गला घौंट दिया। वह रह जाता है हाथ मलता हुआ।
इतना ही नहीं पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करना बड़ा जोखिम भरा हुआ है।
पत्रकार दिनरात खबरों की खोज में घूमता रहता है। जिन लोगों के काले
कारनामेंा के समाचार उसके द्वारा प्रकाशित कराए जा चुके होते है वे उसकी
जान के दुश्मन बन जाते है। और मौके की तलाश में रहते हैं कि वे कब उसे सबक
सिखा दें। जैसे ही उन्हें मौका मिलता है वे उसे भुनाते है। इसके कई उदाहरण
हैं कि पत्रकारों को अपनी जान तक गवानी पड़ी। इस सच्चाई को भी कभी नकारा
नहीं जा सकता कि पत्रकार यदि ईमानदारी से कार्य करता है तो उसे अपने परिवार
का भरण पोषण कर पाना मुश्किल हो जाता है।
इसके अलावा इस तथ्य पर प्रकाश डालना
बड़ा अहम है कि जो व्यक्ति पत्रकारिता के क्षेत्र में आकर ईमानदारी से
कार्य करना चाहता है उसे पग-पग पर कॉंटे ही कांटेक मिलते हैं। सेठ उसे काम
पर रखने से हाथ खड़े कर देता है। दूसरा काम पर रखने के पूर्व पूछता है वहां
से क्यों भगाए गए। और उत्तर में यदि ईमानदारी की बात आड़े आई तो दूसरा सेठ
हंसकर कह उठता है, क्या मुझे बेवकूफ समझा है। जो तुम्हे अपने यहॉ रखकर
लाखो के सरकारी विज्ञापन और दलाली का धन्धे से हाथ धो बैठूॅ । मैं एक
मीडिया जगत का प्रतिष्ठापित व्यवसायी हूॅ,कोई राष्ट्रभक्त या समाजसेवक नही।
एक जगह से हटे पत्रकार को दूसरी जगह काम मिलना कठिन हो जाता है। यह तो हुई
इस चौथे स्तम्भ में स्थिति किन्तु इस क्षेत्र के बाहर के लोग उसके प्रवेश
से ही चौंक जाते हैं, काम देना तो दूर की बात।
इन उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है कि
पत्रकारिता का काम न अकेला चुनैतीपूर्ण ही है बल्कि जोखिम भरा भी। इस
क्षेत्र में जो रोजगार के अवसर तलाशने आते हैं इससे बड़ी भूल और कुछ हो
नहीं सकती क्यों कि इस क्षेत्र में जो वेतन दिया जाता है उससे परिवार को दो
वक्त की रोटी मुश्किल रहती है और अन्य क्षेत्रों के दरवाजें बन्द हो जाते
हैं। किन्तु इन तमाम चुनोंतियो के बाद भी कुछ लोग ऐसे है जिन्हें यह चुनौती
भरा जीवन पसन्द है मैं उन्हें उनके साहस को प्रणाम करता हूॅ,बधाई देता हूं
मेरा मानना है कि ऐसे पत्रकार भाईयों क ी बदौलत ही पत्रकारिता का अस्तित्व
बचा है वरना तथाकथित पत्रकार और भ्रष्टाचारी दबंग इस राष्ट्र के अस्तित्व
को सरेआम नीलाम करा देने से भी नही चूकेंगें। और अपनी दलाली का हिस्सा लेकर
ऐसे नाचेंगे जैसे किसी राज दरबार में भॉड़ नृत्य करते है। ऐसे राष्ट्र के
रक्षक रूपी पत्रकार साथियों का वह चाहे किसी स्थान के हों उनको नमन करता
हूॅ। उनका स्वागत करता हूं।
|
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें