फणीश्वरनाथ रेणु | |
पूरा नाम | फणीश्वरनाथ रेणु |
अन्य नाम | रेणु |
जन्म | 4 मार्च, 1921 |
जन्म भूमि | पूर्णिया ज़िला, बिहार |
मृत्यु | 11 अप्रैल, 1977 |
कर्म भूमि | बिहार |
कर्म-क्षेत्र | उपन्यासकार, लेखक |
मुख्य रचनाएँ | मैला आंचल (1954), परती परिकथा (1957), जूलूस (1965), कितने चौराहे (1966) |
विषय | कहानी, उपन्यास, रिपोर्ताज, संस्मरण, रेखाचित्र |
भाषा | हिन्दी |
विद्यालय | काशी हिन्दू विश्वविद्यालय |
शिक्षा | इन्टरमीडिएट |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मश्री |
विशेष योगदान | 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में उन्होंने सक्रिय रूप से योगदान दिया। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी अपनी पहचान बनाई और सत्ता के दमन और शोषण के विरुद्ध आजीवन संघर्षरत रहे। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
शिक्षा
रेणु की प्रारंभिक शिक्षा 'फॉरबिसगंज' तथा 'अररिया' में हुई। रेणु ने प्रारम्भिक शिक्षा के बाद मैट्रिक नेपाल के 'विराटनगर' के 'विराटनगर आदर्श विद्यालय' से कोईराला परिवार में रहकर किया। रेणु ने इन्टरमीडिएट काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1942 में किया और उसके बाद वह स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। 1950 में रेणु ने 'नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन' में भी भाग लिया।- समाजवाद और बिहार सोशलिस्ट पार्टी
सक्रिय राजनीति
वे सिर्फ़ सृजनात्मक व्यक्तित्व के स्वामी ही नहीं बल्कि एक सजग नागरिक व देशभक्त भी थे। 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में उन्होंने सक्रिय रूप से योगदान दिया। इस प्रकार एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई। इस चेतना का वे जीवनपर्यंत पालन करते रहे और सत्ता के दमन और शोषण के विरुद्ध आजीवन संघर्षरत रहे।1950 में बिहार के पड़ोसी देश नेपाल में राजशाही दमन बढने पर वे नेपाल की जनता को राणाशाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के संकल्प के साथ वहां पहुंचे और वहां की जनता द्वारा जो सशस्त्र क्रांति व राजनीति की जा रही थी, उसमें सक्रिय योगदान दिया।
दमन और शोषण के विरुद्ध आजीवन संघर्षरत रहे 'रेणु' ने सक्रिय राजनीति में भी हिस्सेदारी की। 1952-53 के दौरान वे बहुत लम्बे समय तक बीमार रहे। फलस्वरूप वे सक्रिय राजनीति से हट गए। उनका झुकाव साहित्य सृजन की ओर हुआ। 1954 में उनका पहला उपन्यास 'मैला आंचल' प्रकाशित हुआ। मैला आंचल उपन्यास को इतनी ख्याति मिली कि रातों-रात उन्हें शीर्षस्थ हिन्दी लेखकों में गिना जाने लगा।
जीवन के सांध्यकाल में राजनीतिक आन्दोलन से उनका पुनः गहरा जुड़ाव हुआ। 1975 में लागू आपातकाल का जे.पी. के साथ उन्होंने भी कड़ा विरोध किया। सत्ता के दमनचक्र के विरोध स्वरूप उन्होंने पद्मश्री की मानद उपाधि लौटा दी। उनको न सिर्फ़ आपात स्थिति के विरोध में सक्रिय हिस्सेदारी के लिए पुलिस यातना झेलनी पड़ी बल्कि जेल भी जाना पड़ा। 23 मार्च 1977 को जब आपात स्थिति हटी तो उनका संघर्ष सफल हुआ। परन्तु वो इसके बाद अधिक दिनों तक जीवित न रह पाए। रोग से ग्रसित उनका शरीर जर्जर हो चुका था।
लेखन कार्य
फणीश्वरनाथ रेणु ने 1936 के आसपास से कहानी लेखन की शुरुआत की थी। उस समय कुछ कहानियाँ प्रकाशित भी हुई थीं, किंतु वे किशोर रेणु की अपरिपक्व कहानियाँ थी। 1942 के आंदोलन में गिरफ्तार होने के बाद जब वे 1944 में जेल से मुक्त हुए, तब घर लौटने पर उन्होंने 'बटबाबा' नामक पहली परिपक्व कहानी लिखी। 'बटबाबा' साप्ताहिक 'विश्वमित्र' के 27 अगस्त 1944 के अंक में प्रकाशित हुई। रेणु की दूसरी कहानी 'पहलवान की ढोलक' 11 दिसम्बर 1944 को साप्ताहिक 'विश्वमित्र' में छ्पी। 1972 में रेणु ने अपनी अंतिम कहानी 'भित्तिचित्र की मयूरी' लिखी। उनकी अब तक उपलब्ध कहानियों की संख्या 63 है।'रेणु' को जितनी प्रसिद्धि उपन्यासों से मिली, उतनी ही प्रसिद्धि उनको उनकी कहानियों से भी मिली। 'ठुमरी', 'अगिनखोर', 'आदिम रात्रि की महक', 'एक श्रावणी दोपहरी की धूप', 'अच्छे आदमी', 'सम्पूर्ण कहानियां', आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं।
- तीसरी क़सम
कथा-साहित्य के अलावा उन्होंने संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्ताज आदि विधाओं में भी लिखा। उनके कुछ संस्मरण भी काफ़ी मशहूर हुए। 'ऋणजल धनजल', 'वन-तुलसी की गंध', 'श्रुत अश्रुत पूर्व', 'समय की शिला पर', 'आत्म परिचय' उनके संस्मरण हैं। इसके अतिरिक्त वे 'दिनमान' पत्रिका में रिपोर्ताज भी लिखते थे। 'नेपाली क्रांति कथा' उनके रिपोर्ताज का उत्तम उदाहरण है।
- आंचलिक कथा
- लेखन शैली
- भाषा द्वारा चित्रण
- मैला आंचल
इसमें फूल भी है, शूल भी, धूल भी है, गुलाब भी, कीचड़ भी है, चंदन भी, सुंदरता भी है, कुरूपता भी – मैं किसी से दामन बचाकर नहीं निकल पाया।[3]
रचनाएँ
रेणु की कुल 26 पुस्तकें हैं। इन पुस्तकों में संकलित रचनाओं के अलावा भी काफी रचनाएँ हैं जो संकलित नहीं हो पायीं, कई अप्रकाशित आधी अधूरी रचनाएँ हैं। असंकलित पत्र पहली बार 'रेणु रचनावली' में शामिल किये गये हैं। साहित्यिक कृतियां- उपन्यास
- मैला आंचल 1954
- परती परिकथा 1957
- जूलूस 1965
- दीर्घतपा 1964 (जो बाद में कलंक मुक्ति (1972) नाम से प्रकाशित हुई)
- कितने चौराहे 1966
- पल्टू बाबू रोड 1979 (यह उपन्यास 'ज्योत्सना' के अंकों से निकालकर अनुपम प्रकाशन ने प्रकाशित किया)
- कथा-संग्रह
- आदिम रात्रि की महक 1967
- ठुमरी 1959
- अगिनखोर 1973
- अच्छे आदमी 1986
- रिपोर्ताज
- ऋणजल धनजल 1977 (मृत्यु के बाद प्रकाशित)
- नेपाली क्रांतिकथा 1977 (मृत्यु के बाद प्रकाशित)
- वनतुलसी की गंध 1984
- एक श्रावणी दोपहरी की धूप 1984
- श्रुत अश्रुत पूर्व 1986
- संस्मरण
- आत्म परिचय
- समय की शिला पर
- प्रसिद्ध कहानियां
- मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम)
- एक आदिम रात्रि की महक
- लाल पान की बेगम
- पंचलाइट
- तबे एकला चलो रे
- ठेस
- संवदिया
- ग्रंथावली
- फणीश्वरनाथ रेणु ग्रंथावली
- बारह वर्षों के अनथक प्रयासों से भारत यायावर के सम्पादन में रेणु की निम्न नई पुस्तकें प्रकाशित हुई[4]-
- वनतुलसी की गंध 1984
- एक श्रावणी दोपहरी की धूप 1984
- श्रुत अश्रुत पूर्व 1986
- अच्छे आदमी 1986
- एकांकी के दृश्य 1987
- रेणु से भेंट 1987
- आत्म परिचय 1988
- कवि रेणु कहे 1988
- उत्तर नेहरू चरितम् 1988
- फणीश्वरनाथ रेणु: चुनी हुई रचनाएँ 1990
- समय की शिला पर 1991
- फणीश्वरनाथ रेणु अर्थात् मृदंगिये का मर्म 1991
- प्राणों में घुले हुए रंग 1993
- रेणु की श्रेष्ठ कहानियाँ 1992
- चिठिया हो तो हर कोई बाँचे (यह पुस्तक प्रकाश्य में है)
सम्मान
अपने प्रथम उपन्यास मैला आंचल के लिये उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया ।निधन
रेणु सरकारी दमन और शोषण के विरुद्ध ग्रामीण जनता के साथ प्रदर्शन करते हुए जेल गये। रेणु ने आपातकाल का विरोध करते हुए अपना 'पद्मश्री' का सम्मान भी लौटा दिया। इसी समय रेणु ने पटना में 'लोकतंत्र रक्षी साहित्य मंच' की स्थापना की। इस समय तक रेणु को 'पैप्टिक अल्सर' की गंभीर बीमारी हो गयी थी। लेकिन इस बीमारी के बाद भी रेणु ने 1977 ई० में नवगठित जनता पार्टी के लिए चुनाव में काफी काम किया। 11 अप्रैल 1977 ई० को रेणु उसी 'पैप्टिक अल्सर' की बीमारी के कारण चल बसे।[5]टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ फणीश्वरनाथ रेणु:एक परिचय (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 13 जनवरी, 2011।
- ↑ फणीश्वरनाथ रेणु (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 13 जनवरी, 2011।
- ↑ पुस्तक परिचय-15 : “मैला आंचल” (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 13 जनवरी, 2011।
- ↑ यायावर, भारत “भाग-1”, रेणु रचनावली, प्रथम संस्करण (हिंदी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: राजकमल प्रकाशन, 11।
- ↑ फणीश्वरनाथ रेणु:एक परिचय (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 13 जनवरी, 2011।
आंचलिक रचनाकार रेणु जी के बारे में अच्छी जानकारी दी है आपने। मुझे स्मरण है, अपातकाल के समय का उनका एक चित्र किसी अख़बार में प्रकाशित हुआ था जिसमें उनके सिर पर गहरी चोट लगी थी और सिर से ख़ून बह रहा था। भारत की पुलिस ने एक साहित्यकार ...चिंतक और ईमानदार व्यक्ति का लाठियों से स्वागत किया था। वह चित्र कहीं मिले बबल जी! तो ज़रूर प्रकाशित कीजियेगा। नयी पीढ़ी को पता चलना चाहिये कि विद्वानों का भारत में कैसा स्वागत किया जाता है।
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