नियम कहते हैं कि आवंटन हासिल करने के लिए सांसद को जिलाधिकारी के जरिए खाता खोलना होगा। रकम इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग सिस्टम के जरिए सीधे उसमें पहुंच जाएगी। नियम पुराना है, लेकिन कई दिग्गज मंत्री एवं सांसद इसे मानते ही नहीं। दैनिक जागरण के पास मौजूद दस्तावेज साबित करते हैं कि खाते के बिना निधि लेने की यह आदत राज्यसभा एवं लोकसभा के सदस्यों में समान रूप से मौजूद है। कामरूप [असम] से राज्यसभा सदस्य मनमोहन सिंह, कुछ केंद्रीय मंत्री और कई बार संसद पहुंच चुके सत्ता पक्ष और विपक्ष के तमाम ऐसे सदस्य हैं, जिन्हें निधि का आवंटन चेक या ड्राफ्ट से किया जा रहा था। इस सूची में राज्यसभा के 34 और लोकसभा के 117 सदस्य हैं।
इन माननीयों का ही रसूख था कि बैंक खाता की शर्त में इस साल की शुरुआत में फिर ढील देनी पड़ी, हालांकि वित्त मंत्रालय और केंद्रीय लेखा नियंत्रक ऐसा करने के कतई खिलाफ थे। मंत्रालय ने सांसदों को खाता खोलने के लिए इस साल जून तक मोहलत दी थी। दो माह पहले अगस्त में पड़ताल हुई, तो पता चला कि 151 सांसदों ने बैंक खाता नहीं खुलवाया। नतीजतन मंत्रालय ने उनका आवंटन रोक दिया है। बगैर खाते के निधि खर्च करने वालों में उत्तर प्रदेश के 24 और बिहार के 17 सांसद हैं।
सांसद निधि के मामले में सरकारी नियम बड़े स्पष्ट हैं। इसके आवंटन के लिए न केवल बैंक खाता जरूरी है, बल्कि उसका ब्योरा केंद्रीय योजना स्कीम मॉनीटरिंग सिस्टम में दर्ज करवाना होता है। यह एक ऑनलाइन प्रणाली है, जिसमें स्कीम का ब्योरा दैनिक रूप से अपडेट किए जाने की शर्त है, ताकि केंद्रीय स्तर पर कार्यान्वयन पर नजर रखी जा सके, लेकिन यह पूरी योजना माननीयों के कारण परवान ही नहीं चढ़ सकी।
Short URL: http://www.wisdomblow.com/hi/?p=792
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें