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इस अखबार के छपते हुए अगर आप इसके बारे में नहीं जानते थे तो इसके बंद होते समय ही सही लेकिन इसके बारे में जानिए। यह अखबार 168 साल पुराना है। अखबार की पहली प्रति 1843 में प्रकाशित हुई थी. इस अखबार के प्रकाशन की खासियत यह थी कि उस दौर में यह सबसे सस्ता अखबार था जिसका मकसद था कम कीमत पर ज्यादा लोगों तक समाचार पहुंचाना। लेकिन 1969 में मीडिया मुगल कहे जाने वाले व्यापारी रूपर्ट मर्डोक ने इसे खरीद लिया। रुपर्ट मर्डोक ने न्यूज आफ वर्ल्ड के जरिए ऐसी पत्रकारिता की जिसे मीडिया विशेषज्ञ आनंद प्रधान गटरछाप पत्रकारिता करार दे रहे हैं. आनंद प्रधान मानते हैं कि 10 जुलाई को इस अखबार के प्रकाश का बंद होना मर्डोक के आर्थिक साम्राज्य की सोची समझी कवायद भर है।
मीडिया मुग़ल रूपर्ट मर्डोक को आखिरकार अपने प्रिय साप्ताहिक टैबलायड ‘न्यूज आफ द वर्ल्ड’ को बंद करने का एलान करना पड़ा. इस टैबलायड पर राजनेताओं, सेलेब्रिटीज से लेकर आम लोगों यहाँ तक कि अपराध की शिकार छोटी बच्ची और ईराक और अफगानिस्तान में मारे गए सैनिकों के परिवार के सदस्यों तक के फोन टेप करने का आरोप है. इसे लेकर ब्रिटेन की राजनीति, समाज और मीडिया में जबरदस्त हंगामा मचा हुआ है. लोगों के बढ़ते विरोध के कारण मर्डोक को मजबूरी में यह फैसला करना पड़ा है. फैसले के मुताबिक, इस सप्ताह इस १६८ साल पुराने टैबलायड का आखिरी अंक छपेगा. इसके साथ ही, छिछोरी और गटर पत्रकारिता के लिए कुख्यात ‘न्यूज आफ द वर्ल्ड’ इतिहास के कूड़ेदान में चला जाएगा. उसने जिस तरह की पत्रकारिता की, उसमें उसका यही हश्र होना था. यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था. आश्चर्य है कि यह १६८ साल कैसे चल गया? जाहिर है कि आज उसकी मौत पर कोई आंसू बहानेवाला नहीं है. लेकिन ‘न्यूज आफ द वर्ल्ड’ की मौत से छिछोरी और गटर पत्रकारिता का अंत नहीं होनेवाला है. सच यह है कि मर्डोक का दूसरा दैनिक टैबलायड ‘सन’ भी इसी छिछोरी पत्रकारिता का अगुवा है. मर्डोक के दोनों अख़बारों ‘सन’ और ‘न्यूज आफ द वर्ल्ड’ में कोई खास फर्क नहीं है. ‘सन’ सप्ताह में छह दिन निकलता है जबकि ‘न्यूज आफ द वर्ल्ड’ रविवार को निकलता है.
असल में, मर्डोक ने न्यूज आफ द वर्ल्ड को एक झटके में बंद करके एक तीर से कई शिकार किये हैं. इस फैसले के जरिये उसने आम लोगों के गुस्से को शांत करने की कोशिश की है. वैसे भी अब ‘न्यूज आफ द वर्ल्ड’ का कोई व्यावसायिक भविष्य नहीं रह गया था. विज्ञापनदाता उसे छोडकर भाग रहे थे और पाठक उसके बहिष्कार का अभियान चला रहे थे. साथ ही, मर्डोक की कंपनी- न्यूज इंटरनेशनल के लिए दो अलग-अलग टैबलायड को मैनेज करने में भी मुश्किल आ रही थी. इस फैसले के बाद चर्चा है कि ‘सन’ को अब सप्ताह के सातों दिन छापा जाएगा.
इस तरह मर्डोक को इस फैसले कोई आर्थिक नुकसान नहीं होने जा रहा है. अलबत्ता न्यूज इंटरनेशनल को एक झटके में २०० पत्रकारों को से बिना किसी झंझट के मुक्ति मिल गई. इनमें से अधिकांश की कोई गलती नहीं थी जबकि फोन टैपिंग के जिम्मेदार संपादक रेबेका ब्रुक्स आज भी मर्डोक की कंपनी में सी.इ.ओ के पद पर बैठी है और दूसरे संपादक एंडी कॉलसन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून के प्रेस सलाहकार बने हुए हैं.
क्या उचित समय नहीं है कि हम भारत में भी मर्डोक और उसके देशी अवतारों की अगुवाई में मीडिया के निरंतर फैलते और बढ़ते अंडरवर्ल्ड को लेकर सावधान हो जाएँ और उसपर अंकुश लगाने के उपायों पर विचार करें? क्या हम अपने न्यूज आफ द वर्ल्ड का इंतज़ार कर रहे हैं?
यही नहीं, मर्डोक ने ‘न्यूज आफ द वर्ल्ड’ की कुर्बानी देकर एक बड़े व्यावसायिक सौदे को बचाने की कोशिश की है. मर्डोक की कंपनी इन दिनों ब्रिटेन की बड़ी ब्राडकास्टिंग कंपनी- ब्रिटिश स्काई ब्राडकास्टिंग यानि बी.स्काई.बी के टेकओवर की कोशिश में लगी हुई है. अभी बी.स्काई.बी में मर्डोक का कोई ३९ प्रतिशत शेयर है लेकिन वह उसके पूरे मालिकाने के लिए पूरी ताकत लगाये हुए हैं. लेकिन ‘न्यूज आफ द वर्ल्ड’ के विवाद के बाद ब्रिटेन में यह बहस छिड गई है कि क्या मीडिया में किसी एक व्यक्ति और कंपनी को इतनी असीमित ताकत मिलना उचित है?
दरअसल, ब्रिटेन में मर्डोक के विशाल मीडिया साम्राज्य की राजनीतिक-प्रशासनिक व्यवस्था पर बढ़ते प्रभाव को लेकर खूब बहस हो रही है और चिंताएं जाहिर की जा रही हैं. कहते हैं कि मर्डोक की लेबर और कंजर्वेटिव पार्टी में बराबर की पकड़ और घुसपैठ है. यही नहीं, दोनों ही पार्टियों में मर्डोक के समर्थन के लिए होड़ लगी रहती है. इसलिए यह मांग तेज हो रही है कि मर्डोक के मीडिया साम्राज्य को नियंत्रित किया जाना चाहिए. यही नहीं, मर्डोक को बी.स्काई.बी का टेकओवर करने की इजाजत नहीं देने की मांग भी जोर पकड़ रही है.
कहने की जरूरत नहीं है कि मर्डोक ने 9 अरब डालर के इस सौदे को बचाने के लिए ही न्यूज आफ द वर्ल्ड की कुर्बानी देकर लोगों के बीच अपनी साख बहाल करने की कोशिश की है. हालांकि मर्डोक की इस चाल को लोग समझ रहे हैं लेकिन मुश्किल यह है कि सत्ता और विपक्ष दोनों उसके साम्राज्य के आगे घुटने टेक चुके हैं. यही कारण है कि न्यूज आफ द वर्ल्ड के एक आरोपी संपादक एंडी कॉलसन जिसको जेल में होना चाहिए था, वह प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार बने हुए हैं. लेकिन ब्रिटेन में हाल के खुलासों के बाद मीडिया के जिस अंडरवर्ल्ड का पर्दाफाश हुआ है और जो लोगों के गुस्से और विरोध के निशाने पर है, उसपर लगाम लगाने की कोशिशें कामयाब होंगी. उम्मीद करनी चाहिए कि ब्रिटेन में यह मुहिम आगे बढ़ेगी.
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