हनुमान मंदिर के पीछे
कनॉट प्लेस के हनुमान रोड का जिक्र आने पर पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल कुछ भावुक होकर बताने लगते थे कि ‘हनुमान रोड तक मेरे साथ ही रह्ता था सतीश (गुजराल)। ’ वहां पर रहते हुए सतीश गुजराल ने लाजपत नगर के अपने घर में शिफ्ट कर लिया था। मतलब 33 हनुमान रोड में दोनों भाई एक छत के नीचे ही रहते थे। ये 1960 के दशक की बातें हैं।
हनुमान मंदिर के ठीक पीछे है हनुमान रोड। यहां एक सामानांतर दुनिया बसती है। एक बेहद कुलीन एरिया के रूप में हनुमान रोड की पहचान गुजरे दशकों से बनी हुई है।
इसे नई दिल्ली की सबसे पहली बनी अति सभ्रांत कॉलोनियों में से एक माना जा सकता है। गोल्फ लिंक, जोर बाग, सुंदर नगर 1952 के बाद बने थे। नई दिल्ली के बड़े बिल्डर सरदार सोबा सिंह ने हनुमान रोड में 1940 में प्लाट काट कर बेचे थे। यानी एक बार नई दिल्ली का 1931 में निर्माण पूरा होने के बाद हनुमान रोड कॉलोनी बनी और बसी। यहाँ शुरुआती दौर में दिल्ली के असरदार लोगों ने अपने आशियाने बनाए थे।
हनुमान रोड से पहले बंगाली मार्किट बन और बस चुकी थी। पर उसमें अधिकतर पुरानी दिल्ली के परिवार ही आए थे। इस लिहाज से हनुमान रोड अधिक समावेशी रहा।
हनुमान रोड में लंबे समय तक कोका कोला कंपनी के भारत में मालिक सरदार मोहन सिंह, जिनके नाम पर मोहन सिंह प्लेस है और जिनके पुत्र चरणजीत सिंह ने मेरिडियन होटल बनाया था, मशहूर बिल्डर उत्तम सिंह सेठी, चेम्सफोर्ड क्लब के अध्यक्ष रहे मेहरबान सिंह धूपिया और स्वाधीनता सेनानी और कारोबारी बांके लाल भार्गव भी रहे।
मेदांता अस्पताल के चेयरमेन डा.नरेश त्रिहेन, सांसद नरेश गुजराल और मशहूर फोटोग्राफर अविनाश पसरीचा का बचपन भी इधर गुजरा। अविनाश पसरीचा अब भी हनुमान रोड में ही रहते हैं। इधर कुछ प्लाट दिल्ली में बसे गुजराती और बंगाली परिवारों ने भी लिए थे।
रीगल सिनेमा से सटी मशहूर गांगुली वाचेज शो-रूम के मालिक की भी यहां कोठी थी। अब तो इस शो-रूम का स्वामित्व भी हस्तांरित हो चुका है।
हां, देश की आजादी के बाद हनुमान रोड का चरित्र बदला। इधर कुछ प्रमुख रिफ्यूजी परिवारों ने रेंट पर ही घर ले लिए, कुछ मुसलमान अपने घरों को बेचकर पाकिस्तान चले गए।
हनुमान रोड में सड़क के दोनों तरफ 56 प्लाट हैं। ये 500 गज से 2400 गज के हैं। पर इधर की कुछ कोठियों की दशा को देखकर निराशा होती है। इनमें सफेदी हुए भी लगता है कि काफी समय बीत गया है। कभी इन बड़े-विशाल घरों ने बेहतर दिन होंगे।
हनुमान रोड की बात होगी तो यहां के आर्य समाज मंदिर की अवश्य चर्चा होगी। इधर हजारों लोगों की सादगी से शादी हो चुकी है। यहां का लैंडमार्क है आर्य समाज मंदिर।
हनुमान रोड में रहने वालों में गजब की सामाजिकता रही है। यहाँ के सब लोगों में प्रेम और भाईचारे वाले सम्बंध सदैव बने रहे। हनुमान रोड की होली - दिवाली के क्या कहने । सब मिलकर इन पर्वों को मनाते रहे।
अब भी हनुमान रोड में कई परिवार 1940 से ही रह रहे हैं। हां, कुछ परिवार चले भी गए हैं। कारण यह है कि अब हनुमान रोड में हलचल काफी रहती है। 48 हनुमान रोड पर स्पेन कल्चरल सेंटर चालू हो गया है। इस कारण यहां की जिंदगी पहले जैसी सुकून भरी तो नहीं रही है। फिर इधर बंदरों का आतंक भी लगातार बढ़ रहा है। बहरहाल,जो कभी यहां रह लिया उसके दिलों में बसता है हनुमान रोड।
30 दिसंबर 2020
Vivek Shukla
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