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Ebook : अजब-गजब हिन्दुस्तान
Author : Anami Sharan Babal
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Description :
पत्रकारिता (मीडिया) का प्रभाव समाज पर लगातार बढ़ रहा है। इसके बावजूद यह पेशा अब संकटों से घिरकर लगातार असुरक्षित हो गया है। मीडिया की चमक दमक से मुग्ध होकर लड़के लड़कियों की फौज इसमें आने के लिए आतुर है। बिना किसी तैयारी के ज्यादातर नवांकुर पत्रकार अपने आर्थिक भविष्य का मूल्याकंन नहीं कर पाते। पत्रकार दोस्तों को मेरा ब्लॉग एक मार्गदर्शक या गाईड की तरह सही रास्ता बता और दिखा सके। ब्लॉग को लेकर मेरी यही धारणा और कोशिश है कि तमाम पत्रकार मित्रों और नवांकुरों को यह ब्लॉग काम का अपना सा उपयोगी लगे।
हालांकि, इलैक्टोनिक मीडिया में आम बोलचाल की भाषा को अपनाया जाता है। इसके पीछे तर्क साफ है कि लोगों को तुंरत दिखाया/सुनाया जाता है यहाँ अखबार की तरह आराम से खबर को पढ़ने का मौका नहीं मिलता है। इसलिए रेडियो और टी.वी. की भाषा सहज, सरल और बोलचाल की भाषा को अपनाया जाता है। कई अखबारों ने भी इस प्रारूप को अपनाया है खासकर हिन्दी के पाठकों को ध्यान में रख कर भाषा का प्रयोग होने लगा है।शुरुआती दौर की हिन्दी पत्रकारिता की भाषा साहित्य की भाषा को ओढे हुए थी। ऐसे में हिन्दी पत्रकारिता साहित्य के बहुत करीब थी। जाहिर है इससे साहित्यकारों का ही जुड़ाव रहा होगा। बल्कि हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास पर नजर डालने से यह साफ हो जाता है। 30 मई 1826 में प्रकाशित हिंदी के पहले पत्र ‘‘उदंत मार्तण्ड’’ के संपादक युगल किशोर शुक्ल से लेकर भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र, पंडित मदनमोहन मालवीय, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, अंबिका प्रसाद वाजपेयी, बाबू राव विष्णु पराड़कर, आचार्य शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी सहित सैकड़ों ऐसे नाम है जो चर्चित साहित्यकार-रचनाकार रहे हैं। अपने दौर में हिन्दी पत्रकारिता से जुड़े रहे और दिशा दिया। लेकिन समय के साथ ही हिंदी पत्रकारिता भी बदली है। संपादन, साहित्यकार से होते हुए पत्रकार के हाथों पहुंच गया और हिन्दी पत्रकारिता में हिन्दी भाषा की बिंदी अंग्रेजी बन गयी।