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शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

BBC Hindi: निष्पक्ष पत्रकारिता के 75 वर्ष !









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Posted on May 24, 2015 by admin
राजनामा.कॉम। 
 बीबीसी अर्थात,ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन अपनी हिंदी सेवा के स्थापना के 75 वर्ष पूरे कर चुका है। बीबीसी परिवार से जुड़े सभी लोग मीडिया का सिरमौर समझे जाने वाले इस विश्व के सबसे प्रमुख एवं विश्वसनीय मीडिया हाऊस की स्थापना पर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

हालांकि जनवरी 2011 में बीबीसी परिवार को उस समय एक बड़ा झटका लगा था जबकि बीबीसी के तत्कालीन प्रमुख पीटर हॉक्स ने अपनी एक अप्रत्याशित घोषणा में भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय बीबीसी रेडियो सर्विस के हिंदी प्रसारण सहित मैसोडोनिया, सर्बिया, अल्बानिया, रूस, यूक्रेन तुर्की, मेड्रिन, स्पेनिश, तथा अजेरी भाषा के बीबीसी प्रसारण मार्च 2011 के दूसरे पखवाड़े से बंद किए जाने की घोषणा की थी।
इनमें अधिकांश देशों के प्रसारण बंद भी कर दिए गए। भारत में श्रोताओं व बीबीसी समर्थकों के भारी दबाव के बावजूद यहां भी बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी की गई तथा प्रसारण कार्यक्रमों में परिवर्तन किया गया।
ग़ौरतलब है कि विश्व की सबसे लोकप्रिय निष्पक्ष एवं बेबाक समझी जाने वाली बीबी सी समाचार सेवा का मुख्यालय हालांकि लंदन स्थित बुश हाऊस में है तथा यह सेवा पब्लिक ट्रस्ट से संचालित होती है। परंतु बी बी सी के कर्मचारियों तथा पत्रकारों की तनख़्वाह के लिए ब्रिटेन का विदेश मंत्रालय पैसा मुहैया कराता है।
लिहाज़ा ब्रिटिश विदेश मंत्रालय ने ही 2011 में यह फैसला लिया था कि बी बी सी को दिए जाने वाले अनुदान में 16 प्रतिशत की कटौती की जाए। तत्कालीन ब्रिटिश विदेश मंत्री विलियम हेग का कहना था कि बीबीसी की भविष्य की प्राथमिकताएं नए बाज़ार होंगे। जिसमें ऑनलाईन प्रसारण,इंटरनेट तथा मोबाईल बाज़ार प्रमुख हैं।
इस फैसले से बी बी सी से आत्मीयता का गहरा रिश्ता रखने वाले समाचार श्रोताओं के हृदय पर यह निर्णय एक कुठाराघात भी साबित हुआ था। परंतु समय के साथ-साथ संचार माध्यमों में आए परिवर्तन के चलते बीबीसी ने स्वयं को उसी के अनुरूप ढाल कर एक बार पुन: समाचार जगत में अपनी विश्वसनीयता तथा लोकप्रियता को बरकरार रखने का पूरा प्रयास किया है।
जिस समय 2011 में लंदन में बैठकर बीबीसी के नीति निर्धारकों द्वारा बीबीसी हिंदी सेवा के रेडियो प्रसारण को बंद किए जाने का फैसला लिया जा रहा था इससे भारत में बीबीसी से नाता रखने वाले करोड़ों लोग बेहद दु:खी थे।
इसका सीधा एवं स्पष्ट कारण यही था कि बीबीसी विश्व समाचार हिंदी के रेडियो प्रसारण ने अपनी निष्पक्ष,बेबाक, शुद्ध साहित्य,सही उच्चारण से परिपूर्ण तथा त्वरित पत्रकारिता के चलते भारत की करोड़ों अवाम के दिलों में जो सम्मानपूर्ण जगह बनाई थी वह जगह अन्य मीडिया घराने यहां तक कि सरकारी मीडिया हाऊस भी नहीं बना सके थे।
बीबीसी ने अपने शानदार समाचार विश्लेषण,साहित्यिक सूझबूझ रखने वाले पत्रकारों तथा शुद्ध एवं शानदार उच्चारण के चलते स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक भारतीय श्रोताओं के दिलों पर राज किया।
यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि बीबीसी सुनकर ही हमारे देश में न जाने कितने युवक आईएएस अधिकारी बने,कितने लोग नेता बने तथा तमाम लोग छात्र नेता, लेखक,पत्रकार,व अन्य अधिकारी बन सके। बीबीसी परीक्षार्थियों तथा विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले युवकों को भी अत्यंत लोकप्रिय था।
बीबीसी रेडियो की हिंदी सेवा ने गरीबों,रिक्शा व रेहड़ी वालों,चाय बेचने वालों, दुकानदारों से लेकर पंचायतों व चौपालों आदि तक पर लगभग 6 दशकों तक राज किया। भारत में अब भी बीबीसी के लाखों श्रोता ऐसे हैं जिनका नाश्ता बीबीसी की पहली प्रात:काल सेवा से ही होता है तथा रात में अंतिम सेवा सुनकर ही उन्हें नींद आती है।
यह कहने में भी कोई हर्ज नहीं कि भारत में बीबीसी हिंदी सेवा सुनने के लिए ही समाचार प्रेमी श्रोतागण रेडियो व ट्रांजिस्टर खरीदा करते हैं। तमाम भारतीय समाचार पत्र-पत्रिकाएं तथा टी वी चैनल बीबीसी के माध्यम से खबरें लेकर प्रकाशित व प्रसारित केवल इसलिए किया करते हैं क्योंकि बीबीसी की खबरों की विश्वसनीयता की पूरी गांरटी हुआ करती है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि 2011 में पूरा विश्व विशेषकर पश्चिमी देश भारी मंदी व इसके कारण पैदा हुए आर्थिक संकट के दौर से गुज़र रहे थे। परंतु आर्थिक संकट के उस दौर में यदि कटौती करनी भी चाहिए तो सर्वप्रथम युद्ध के खर्चों में कटौती की जानी चाहिए थी।
इराक, अफगानिस्तान तथा अन्य उन तमाम देशों में जहां अमेरिका तथा उसके परम सहयोगी देश के रूप में ब्रिटिश फौजें तैनात थीं दरअसल वहां होने वाले भारी-भरकम एवं असीमित खर्चों में कटौती की जानी चाहिए थी। न कि पूरी दुनिया में विश्वसनीयता का झंडा गाडऩे वाले बीबीसी जैसी रेडियो सेवा पर खर्च होने वाले पैसों में।
बीबीसी हिंदी सेवा के प्रसारणों में कमी के कारण यहां के श्रोतागणों की नाराज़गी भारतवर्ष में उस समय काफी मुखरित होती दिखाई दे रही थी। परंतु बड़े ही संतोष का विषय है कि बीबीसी के कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर की गई छंटनी तथा रेडियो सेवा के अतिरिक्त वेब पोर्टल जैसे अन्य वर्तमान आधुनकि संचार माध्यमों के द्वारा भी बीबीसी ने स्वयं को उसी प्रकार स्थापित कर अपने समर्थकों, शुभचिंतकों तथा श्रोताओं को मायूस होने से बचा लिया है।
बीबीसी ने अपनी शानदार पत्रकारिता एवं बेहतरीन प्रसारण के बल पर श्रोताओं के मध्य विश्व स्तर पर जो प्रतिष्ठा अर्जित की थी वह अब तक दुनिया की किसी और समाचार सेवा ने नहीं हासिल की। बीबीसी ने भारत में अपने श्रोताओं से संबंध स्थापित करने के लिए कभी विशेष रेल यात्रा निकाली तो कभी अपनी टीम के साथ देश के विभिन्न राज्यों में बस यात्राएं कीं।
बीबीसी के इन्हीं प्रयासों से यह प्रतीत होता है कि वह अपने प्रसारकों व पत्रकारों को ही नहीं बल्कि अपने श्रोताओं को भी अपने परिवार का ही एक सदस्य समझती है। और यही वजह है कि बीबीसी के श्रोता यह आस भी लगाए बैठे हैं कि संभवत: अब बीबीसी का हिंदी न्यूज़ चैनल भी शीघ्र ही शुरु होगा।
विश्व की इस सबसे प्रतिष्ठित व विश्वसनीय समाचार सेवा को और अधिक मज़बूत व मुखरित तथा प्रतिष्ठापूर्ण बनाने के लिए बीबीसी प्रबंधन को तथा ब्रिटिश सरकार को और अधिक प्रयास करने चाहिए। ब्रिटिश सरकार को स्वयं इस बात पर $गौर करना चाहिए कि वॉयस ऑफ अमेरिका रूस,चीनी तथा जर्मनी रेडियो की समाचार सेवाओं को कहीं पीछे छोड़ते हुए बीबीसी ने अपनी लोकप्रियता का जो झंडा बुलंद किया है उसे बरकरार रखा जाए।
यह कहना गलत नहीं होगा कि दुनिया में ब्रिटेन का आज भी जो थोड़ा-बहुत सम्मान आम लोगों के दिलों में है उसका एक प्रमुख बड़ा कारण बीबीसी लंदन जैसी विश्वसनीय समाचार सेवा भी है। ज़ाहिर है विश्वास के इस वातावरण को और भी अधिक मज़बूत व भरोसेमंद बनाए जाने की ज़रूरत है।
आले हसन,पुरुषोत्तमलाल पाहवा,विजय राणा,रामपाल,मार्क टुली,ओंकार नाथ श्रीवास्तव,से लेकर संजीव श्रीवास्तव,सलमा ज़ैदी,राजेश जोशी,महबूब खान,रेहान फज़ल,भारतेंदु विमल, पंकज प्रियदर्शी तथा अविनाश दत्त तक बीबीसी के सभी योग्य एवं होनहार पत्रकारों ने निश्चित रूप से भारतीय श्रोताओं के दिलों पर दशकों तक राज किया है।
भारतीय श्रोता बीबीसी के आजतक,विश्वभारती, आजकल तथा हम से पूछिए जैसे उन कार्यक्रमों को कभी नहीं भुला सकेंगे जो भारतीय चौपालों,पंचायतों,भारतीय सीमाओं तथा चायख़ानों तक में बड़ी गंभीरता से सुने जाते थे। बीबीसी हिंदी प्रसारण के शाम को प्रसारित होने वाले इंडिया बोल कार्यक्रम में भारतीय श्रोता अपने विचार अपने दिलों की गहराईयों से व्यक्त करते रहते हैं। अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूरे करने के अवसर पर समस्त बीबीसी परिवार बधाई एवं शुभकामना का पात्र है।
निष्पक्ष समाचार प्रसारण सेवा की इतनी लंबी यात्रा पूरी कर लेने पर कारपोरेशन के जि़म्मेदार लोगों को इसे सुदृढ़, और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए और अधिक प्रयास करने की ज़रूरत है। बहुत ही कम समय में हालांकि बीबीसी ने वेबसाईट व दूसरे सोशल मीडिया माध्यमों के द्वारा स्वयं को इस माध्यम में भी स्थापित करने जैसा सफल प्रयास किया है।
बीबीसी को चाहिए कि भारत में अभी भी हिंदी न्यूज़ चैनल के क्षेत्र में यहां के दर्शकों व श्रोताओं को एक निष्पक्ष,विश्वसनीय व दमदार टीवी चैनल की आवश्यकता महसूस हो रही है। बीबीसी के नीति निर्धारक इस कमी को पूरा कर सकते हैं।
अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूरे करने के शुभ अवसर पर उन्हें यह निर्णय लेना चाहिए कि वे अपने अंग्रेज़ी टीवी समाचार चैनल की ही तरह हिंदी भाषा में भी एक 24/7 का एक टीवी चैनल प्रारंभ करें। आशा है बीबीसी प्रबंधन यथाशीघ्र इस ओर भी ध्यान देगा।

tanvir

……..तनवीर जाफरी

1618, महावीर नगर,  मो: 098962-19228  अम्बाला शहर। हरियाणा

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शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

सामाजिक मीडिया / सोशल मीडिया / न्यू मीडिया




प्रस्तुति- स्वामी शरण



सामाजिक मीडिया पारस्परिक संबंध के लिए अंतर्जाल या अन्य माध्यमों द्वारा निर्मित आभासी समूहों को संदर्भित करता है। यह व्यक्तियों और समुदायों के साझा, सहभागी बनाने का माध्यम है। इसका उपयोग सामाजिक संबंध के अलावा उपयोगकर्ता सामग्री के संशोधन के लिए उच्च पारस्परिक प्लेटफार्म बनाने के लिए मोबाइल और वेब आधारित प्रौद्योगिकियों के प्रयोग के रूप में भी देखा जा सकता है।

अनुक्रम

  • 1 स्वरूप
  • 2 विशेषता
  • 3 व्यापारिक उपयोग
  • 4 समालोचना
  • 5 संदर्भ
  • 6 बाहरी कड़ियाँ

स्वरूप

सामाजिक मीडिया के कई रूप हैं जिनमें कि इन्टरनेट फोरम, वेबलॉग, सामाजिक ब्लॉग, माइक्रोब्लागिंग, विकीज, सोशल नेटवर्क, पॉडकास्ट, फोटोग्राफ, चित्र, चलचित्र आदि सभी आते हैं। अपनी सेवाओं के अनुसार सोशल मीडिया के लिए कई संचार प्रौद्योगिकी उपलब्ध हैं। उदाहरणार्थ-
फेसबूक – विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय सोशल साइट
  • सहयोगी परियोजना (उदाहरण के लिए, विकिपीडिया)
  • ब्लॉग और माइक्रोब्लॉग (उदाहरण के लिए, ट्विटर)
  • सोशल खबर ​​नेटवर्किंग साइट्स (उदाहरण के लिए डिग और लेकरनेट)
  • सामग्री समुदाय (उदाहरण के लिए, यूट्यूब और डेली मोशन)
  • सामाजिक नेटवर्किंग साइट (उदाहरण के लिए, फेसबुक)
  • आभासी खेल दुनिया (जैसे, वर्ल्ड ऑफ़ वॉरक्राफ्ट)
  • आभासी सामाजिक दुनिया (जैसे सेकंड लाइफ)[1]

विशेषता

सामाजिक मीडिया अन्य पारंपरिक तथा सामाजिक तरीकों से कई प्रकार से एकदम अलग है। इसमें पहुँच, आवृत्ति, प्रयोज्य, ताजगी और स्थायित्व आदि तत्व शामिल हैं। इन्टरनेट के प्रयोग से कई प्रकार के प्रभाव होते हैं। निएलसन के अनुसार ‘इन्टरनेट प्रयोक्ता अन्य साइट्स की अपेक्षा सामाजिक मीडिया साइट्स पर ज्यादा समय व्यतीत करते हैं’।
दुनिया में दो तरह की सिविलाइजेशन का दौर शुरू हो चुका है, वर्चुअल और फिजीकल सिविलाइजेशन। आने वाले समय में जल्द ही दुनिया की आबादी से दो-तीन गुना अधिक आबादी अंतर्जाल पर होगी। दरअसल, अंतर्जाल एक ऐसी टेक्नोलाजी के रूप में हमारे सामने आया है, जो उपयोग के लिए सबको उपलब्ध है और सर्वहिताय है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स संचार व सूचना का सशक्त जरिया हैं, जिनके माध्यम से लोग अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं। यही से सामाजिक मीडिया का स्वरूप विकसित हुआ है।[2]

व्यापारिक उपयोग

जन सामान्य तक पहुँच होने के कारण सामाजिक मीडिया को लोगों तक विज्ञापन पहुँचाने के सबसे अच्छा जरिया समझा जाता है। हाल ही के कुछ एक सालो में इंडस्ट्री में ऐसी क्रांति देखी जा रही है। फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर उपभोक्ताओं का वर्गीकरण विभिन्न मानकों के अनुसार किया जाता है जिसमें उनकी आयु, रूचि, लिंग, गतिविधियों आदि को ध्यान में रखते हुए उसके अनुरूप विज्ञापन दिखाए जाते हैं। इस विज्ञापन के सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त हो रहे हैं साथ ही साथ आलोचना भी की जा रही है।[3]

समालोचना

सामाजिक मीडिया की समालोचना विभिन्न प्लेटफार्म के अनुप्रयोग में आसानी, उनकी क्षमता, उपलब्ध जानकारी की विश्वसनीयता के आधार पर होती रही है। हालाँकि कुछ प्लेटफॉर्म्स अपने उपभोक्ताओं को एक प्लेटफॉर्म्स से दुसरे प्लेटफॉर्म्स के बीच संवाद करने की सुविधा प्रदान करते हैं पर कई प्लेटफॉर्म्स अपने उपभोक्ताओं को ऐसी सुविधा प्रदान नहीं करते हैं जिससे की वे आलोचना का केंद्र विन्दु बनते रहे हैं। वहीँ बढती जा रही सामाजिक मीडिया साइट्स के कई सारे नुकसान भी हैं। ये साइट्स ऑनलाइन शोषण का साधन भी बनती जा रही हैं। ऐसे कई केस दर्ज किए गए हैं जिनमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का प्रयोग लोगों को सामाजिक रूप से हनी पहुँचाने, उनकी खिचाई करने तथा अन्य गलत प्रवृत्तियों से किया गया।[4][5]
सामाजिक मीडिया के व्यापक विस्तार के साथ-साथ इसके कई नकारात्मक पक्ष भी उभरकर सामने आ रहे हैं। पिछले वर्ष मेरठ में हुयी एक घटना ने सामाजिक मीडिया के खतरनाक पक्ष को उजागर किया था। वाकया यह हुआ था कि उस किशोर ने फेसबूक पर एक ऐसी तस्वीर अपलोड कर दी जो बेहद आपत्तीजनक थी, इस तस्वीर के अपलोड होते ही कुछ घंटे के भीतर एक समुदाय के सैकडों गुस्साये लोग सडकों पर उतार आए। जबतक प्राशासन समझ पाता कि माजरा क्या है, मेरठ में दंगे के हालात बन गए। प्रशासन ने हालात को बिगडने नहीं दिया और जल्द ही वह फोटो अपलोड करने वाले तक भी पहुँच गया। लोगों का मानना है कि परंपरिक मीडिया के आपत्तीजनक व्यवहार की तुलना में नए सामाजिक मीडिया के इस युग का आपत्तीजनक व्यवहार कई मायने में अलग है। नए सामाजिक मीडिया के माध्यम से जहां गडबडी आसानी से फैलाई जा सकती है, वहीं लगभग गुमनाम रहकर भी इस कार्य को अंजाम दिया जा सकता है। हालांकि यह सच नहीं है, अगर कोशिश की जाये तो सोशल मीडिया पर आपत्तीजनक व्यवहार करने वाले को पकडा जा सकता है और इन घटनाओं की पुनरावृति को रोका भी जा सकता है। केवल मेरठ के उस किशोर का पकडे जाना ही इसका उदाहरण नहीं है, वल्कि सोशल मीडिया की ही दें है कि लंदन दंगों में शामिल कई लोगों को वहाँ की पुलिस ने पकडा और उनके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज किए। और भी कई उदाहरण है जैसे बैंकुअर दंगे के कई अहम सुराग में सोशल मीडिया की बडी भूमिका रही। मिस्र के तहरीर चैक और ट्यूनीशिया के जैस्मिन रिवोल्यूशन में इस सामाजिक मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को कैसे नकारा जा सकता है।[6]
सामाजिक मीडिया की आलोचना उसके विज्ञापनों के लिए भी की जाती है। इस पर मौजूद विज्ञापनों की भरमार उपभोक्ता को दिग्भ्रमित कर देती है तथा ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स एक इतर संगठन के रूप में काम करते हैं तथा विज्ञापनों की किसी बात की जवाबदेही नहीं लेते हैं जो कि बहुत ही समस्यापूर्ण है।[7][8]

संदर्भ



  • शी, जहाँ ; रुई, हुवाक्सिया ; व्हिंस्तों, एंड्रू बी. (फोर्थ कमिंग). "कंटेंट शेयरिंग इन अ सोशल ब्रॉड कास्टिंग एनवायरनमेंट एविडेंस फ्रॉम ट्विटर". मिस क्वार्टरली

  • जनसंदेश टाइम्स,5 जनवरी 2014, पृष्ठ संख्या:1 (पत्रिका ए टू ज़ेड लाइव), शीर्षक:आम आदमी की नई ताक़त बना सोशल मीडिया, लेखक: रवीन्द्र प्रभात

  • "फेसबुक पर ग्राहकों के साथ बातचीत के तरीको में सुधार". क्लियरट्रिप डॉट कॉम. २७ जनवरी २०१४. अभिगमन तिथि: १९ फरबरी २०१४.

  • फित्ज़गेराल्ड, बी.  (२५ मार्च २०१३). "डिस अपियरिंग रोमनी". दि हफिंग्टन पोस्ट. अभिगमन तिथि: १९ फरबरी २०१४.

  • हिन्शिफ, डॉन. (१५ फरबरी २०१४). "आर सोशल मीडिया सिलोस होल्डिंग बेक बिज़नस". ZDNet.com. अभिगमन तिथि: १९ फरबरी २०१४.

  • जनसंदेश टाइम्स,5 जनवरी 2014, पृष्ठ संख्या:1 (पत्रिका ए टू ज़ेड लाइव), शीर्षक:आम आदमी की नई ताक़त बना सोशल मीडिया, लेखक: रवीन्द्र प्रभात

  • शेर्विन आदम, आदम (४ सितम्बर २०१३). "स्टाइल ओवर सब्सतांस: वायने रूनी क्लेअरेड ऑफ़ नाइके ट्विटर प्लग". दि इंडिपेंडेंट. अभिगमन तिथि: १९ फरबरी २०१४.

    1. http://www.marketingweek.co.uk/news/nike-rooney-twitter-promo-escapes-censure/4007808.article

    बाहरी कड़ियाँ

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    मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

    रूपहले पर्दे के पीछे की वेश्या एं





    10 फ़िल्मी एक्ट्रेस जो पकड़ी गई सेक्स रैकेट में

    पिछले कुछ समय से फिल्म अभिनेत्रियों का सेक्स रैकेट में पकडे जाना एक आम सी बात हो गई है। यदि हम पिछले एक दो साल पर नज़र डाले तो 10 से ज्यादा एक्ट्रेस सेक्स रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार हो चुकी है। इसमें सबसे नया नाम जुड़ा है एक्ट्रेस श्वेता बसु का जिसे की हैदराबाद पुलिस ने 31 अगस्त को एक फाइव स्टार होटल से गिरफ्तार किया है। खास बात यह है कि इनमें से ज्यादातर अभिनेत्रियां साउथ की फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी हुई हैं।

    (यह भी पढ़े  10 अद्भुत और विचित्र सेक्स रिकॉर्ड ,     सेक्स से सम्बंधित 20 अनूठे कानून )

    1. श्वेता बसु प्रसाद (Shweta Basu Prasad) :

    श्वेता बसु प्रसाद (Shweta Basu Prasad)


    फिल्म अभिनेत्री श्वेता बसु प्रसाद को हैदराबाद पुलिस ने एक सेक्स रैकेट में इंगेज रहने के चलते गिरफ्तार किया है। 23 साल की श्वेता ने विशाल भारद्वाज की चर्चित फिल्म मकड़ी में बाल कलाकार की हैसियत से काम किया था। इस फिल्म के लिए उन्हें 2002 में सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। बाद में उन्होंने एक और चर्चित हिंदी फिल्म इकबाल में भी काम किया। इसके अलावा उन्होंने टीवी धारावाहिक कहानी घर-घर की और करिश्मा का करिश्मा में भी काम किया। श्वेता पिछले कुछ समय से हैदराबाद में रहकर तेलुगु फिल्मों में काम कर रही थीं।

    2. मिस्टी मुखर्जी (Misti Mukherjee) :

    मिस्टी


    9 जनवरी 2014 को मुंबई में एक आईएएस (बेस्टt के जीएम) ओपी गुप्ताM के घर छापेमारी के दौरान हाई प्रोफाइल सेक्सa रैकेट का भंडाफोड़ हुआ था। चौंकाने वाली बात यह थी कि रैकेट कोई और नहीं बल्कि बॉलीवुड अभिनेत्री मिस्टीट मुखर्जी चला रही थी। छापेमारी के दौरान पुलिस ने भारी मात्रा में ब्लूि फिल्म् की सीडियां बरामद की थीं और मिस्टीम मुखर्जी भी आपेत्तिजनक स्थिति में गिरफ्तार की गई थी।

    3. श्रावणी (Shravni) : 

    श्रावणी (Shravni)


    तेलुगु धारावाहिक 'हिमाबिंदु' और 'लाया' में काम कर चुकी एक्ट्रेस श्रावणी को एक हाई-प्रोफाइल सेक्स रैकेट मामले में 3 अक्टूबर, 2013 को मधापुर में रंगे हाथों पकड़ा गया था। इतना ही नहीं साथ में जयराज स्टील के मालिक संजन कुमार गोयनका को भी धर लिया गया था। पुलिस ने मौके से 2 लाख रुपए नकद भी पकड़े।

    4. किन्नरा (Kinnara) :

    किन्नरा (Kinnara)


    दक्षिण भारतीय अभिनेत्री किन्नरा को सेक्स ब्रोकर की भूमिका के लिए आरोपित किया गया था। इसका खुलासा एक न्यूज चैनल के स्टिंग में किया गया। बताया जाता है कि प्रोडयूसर्स और डायरेक्टर्स को प्रलोभन देकर किन्नरा ने फिल्मों में कई रोल हथियाए।

    5. भुवनेश्वरी (Bhuvneshwari) :

    भुवनेश्वरी (Bhuvneshwari)


    कई तमिल फिल्मों और धारावाहिकों में काम कर अच्छा पैसा कमाने के बावजूद भी भुवनेश्वरी ने जिस्मफरोशी का रास्ता अपनाया। 2009 में भुवनेश्वरी को चेन्नई में मुंबई की दो लड़कियों सहित जिस्मफरोशी करते पकड़ा गया। भुवनेश्वरी पर अपने ही अर्पाटमेंट से सेक्स रैकेट चलाने का आरोप था। इस एक्ट्रेस के पड़ोसियों ने पुलिस को गड़बड़ी की आशंका की सूचना दी थी और मामला सेक्स रैकेट का निकला।

    6. सायरा बानू (Saira Banu) :

    सायरा बानू (Saira Banu)


    हैदराबाद में 23 अगस्त 2010 को एक बड़े सेक्स रैकेट का भंडाफोड हुआ। इस रैकेट में एक्ट्रेसेज को रंगे हाथों पकड़ा गया। मौके से 9 लोगों को पकड़ा गया जिनमें 2 फिल्म एक्ट्रेस शामिल थी। इनमें से एक साउथ की सर्पोटिंग एक्ट्रेस सायरा बानू थी। साथ ही, एक उजबेकिस्तान की महिला को भी गिरफ्तार किया गया।

    7. ज्योति (Jyoti) :

    ज्योति (Jyoti)


    दक्षिण भारतीय अभिनेत्री सायरा बानू जिस सेक्स रैकेट में पकड़ी गई उसी में ज्योति भी शामिल थी। 23 अगस्त 2010 को पुलिस की रेड में ये दोनों फिल्म एक्ट्रेस रंगे हाथों पकड़ी गई थी।

    8. यमुना (Yamuna) :

     यमुना (Yamuna)


    पॉपुलर दक्षिण भारतीय अभिनेत्री यमुना को बेंगलुरु पुलिस ने कथित सेक्स रैकेट में शामिल रहने के आरोप के चलते गिरफ्तार किया। पुलिस ने बेंगलुरु की विट्ठल माल्या रोड़ पर स्थित एक होटल से यमुना को गिरफ्तार किया था।

    9. ऐश अंसारी (Aesh Ansari) :

    ऐश अंसारी (Aesh Ansari)


    'चलते चलते' और 'ओम शांति ओम' जैसी बड़ी फिल्मों में काम कर चुकी दक्षिण भारतीय एक्ट्रेस ऐश अंसारी को 5 नवंबर, 2013 को रंगे हाथ जिस्मफरोशी करते हुए पकड़ा गया। जोधुपर के राइकाबाग रोड स्थित एक होटल में तीन अन्य महिलाओं के साथ इस एक्ट्रेस को धर लिया गया। बताया जाता है कि ऐश अंसारी से जुड़ा यह सेक्स रैकेट ऑनलाइन ऑपरेट होता था।

    10. निहारिका (Niharika) :

     निहारिका (Niharika)


    दक्षिण की एक और अभिनेत्री को जिस्मफरोशी में लिप्त होने के चलते पकड़ा गया। निहारिका ने कुछ फिल्मों में जूनियर आर्टिस्ट के रूप में काम किया। निहारिका एक ज्वैलर के साथ रंगे हाथों पकड़ी गई थी। निहारिका ने बताया कि ज्वैलर ने उसे फिल्मों में काम दिलाने का भरोसा दिलाया था। उसका कहना था कि वह सेक्स रैकेट से इसलिए जुड़ी थी कि उसको फिल्मों के ऑफर मिलते रहें।
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    सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

    समाचार लेखन के मुख्य तत्व

     
     
     
    Newsracemedia
    13 October 2014 ·
    प्रस्तुति-- अमन कुमार हुमरा असद


     परिचय: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए वह एक जिज्ञासु प्राणी है। मनुष्य जिस समुह में, जिस समाज में और जिस वातावरण में रहता है वह उस बारे में जानने को उत्सुक रहता है। अपने आसपास घट रही घटनाओं के बारे में जानकर उसे एक प्रकार के संतोष, आनंद और ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसके लिये उसने प्राचीन काल से ही तमाम तरह के तरीकों, विधियों और माध्यमों को खोजा और विकसित किया। पत्र के जरिये समाचार प्राप्त करना इन माध्यमों में सर्वाधिक पुराना माध्यम है जो लिपि और डाक व्यवस्था के विकसित होने के बाद अस्तित्व में आया। पत्र के जरिये अपने प्रियजनों मित्रों और शुभाकांक्षियों को अपना समाचार देना और उनका समाचार पाना आज भी मनुष्य के लिये सर्वाधिक लोकप्रिय साधन है। समाचारपत्र रेडियो टेलिविजन समाचार प्राप्ति के आधुनिकतम साधन हैं जो मुद्रण रेडियो टेलीविजन जैसी वैज्ञानिक खोज के बाद अस्तित्व में आये हैं।
    समाचार की परिभाषा
    लोग आमतौर पर अनेक काम मिलजुल कर ही करते हैं। सुख दुख की घड़ी में वे साथ होते हैं। मेलों और उत्सव में वे साथ होते हैं। दुर्घटनाओं और विपदाओं के समय वे साथ ही होते हैं। इन सबको हम घटनाओं की श्रेणी में रख सकते हैं। फिर लोगों को अनेक छोटी बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गांव कस्बे या शहर की कॉलोनी में बिजली पानी के न होने से लेकर बेरोजगारी और आर्थिक मंदी जैसी समस्याओं से उन्हें जूझना होता है। विचार घटनाएं और समस्यों से ही समाचार का आधार तैयार होता है। लोग अपने समय की घटनाओं रूझानों और प्रक्रियाओं पर सोचते हैं। उनपर विचार करते हैं और इन सबको लेकर कुछ करते हैं या कर सकते हैं। इस तरह की विचार मंथन प्रक्रिया के केन्द्र में इनके कारणों प्रभाव और परिणामों का संदर्भ भी रहता है। समाचार के रूप में इनका महत्व इन्हीं कारकों से निर्धारित होना चाहिये। किसी भी चीज का किसी अन्य पर पड़ने वाले प्रभाव और इसके बारे में पैदा होने वाली सोच से ही समाचार की अवधारणा का विकास होता है। किसी भी घटना विचार और समस्या से जब काफी लोगों का सरोकार हो तो यह कह सकतें हैं कि यह समाचार बनने योग्य है।
    समाचार किसी बात को लिखने या कहने का वह तरीका है जिसमें उस घटना, विचार, समस्या के सबसे अहम तथ्यों या पहलुओं के सबसे पहले बताया जाता है और उसके बाद घटते हुये महत्व क्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना का ब्यौरा कालानुक्रम के बजाये सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरु होता है।
    किसी नई घटना की सूचना ही समाचार है : डॉ निशांत सिंह
    किसी घटना की नई सूचना समाचार है : नवीन चंद्र पंत
    वह सत्य घटना या विचार जिसे जानने की अधिकाधिक लोगों की रूचि हो :
    नंद किशोर त्रिखा
    किसी घटना की असाधारणता की सूचना समाचार है : संजीव भनावत
    ऐसी ताजी या हाल की घटना की सूचना जिसके संबंध में लोगों को जानकारी न हो : रामचंद्र वर्मा
    समाचार के मूल्य
    1 व्यापकता : समाचार का सीधा अर्थ है-सूचना। मनुष्य के आस दृ पास और चारों दिशाओं में घटने वाली सूचना। समाचार को अंग्रेजी के न्यूज का हिन्दी समरुप माना जाता है। न्यूज का अर्थ है चारों दिशाओं अर्थात नॉर्थ, ईस्ट, वेस्ट और साउथ की सूचना। इस प्रकार समाचार का अर्थ पुऐ चारों दिशाओं में घटित घटनाओं की सूचना।
    2 नवीनता: जिन बातों को मनुष्य पहले से जानता है वे बातें समाचार नही बनती। ऐसी बातें समाचार बनती है जिनमें कोई नई सूचना, कोई नई जानकारी हो। इस प्रकार समाचार का मतलब हुआ नई सूचना। अर्थात समाचार में नवीनता होनी चाहिये।
    3 असाधारणता: हर नई सूचना समाचार नही होती। जिस नई सूचना में समाचारपन होगा वही नई सूचना समाचार कहलायेगी। अर्थात नई सूचना में कुछ ऐसी असाधारणता होनी चाहिये जो उसमें समाचारपन पैदा करे। काटना कुत्ते का स्वभाव है। यह सभी जानते हैं। मगर किसी मनुष्य द्वारा कुत्ते को काटा जाना समाचार है क्योंकि कुत्ते को काटना मनुष्य का स्वभाव नही है। कहने का तात्पर्य है कि नई सूचना में समाचार बनने की क्षमता होनी चाहिये।
    4 सत्यता और प्रमाणिकता : समाचार में किसी घटना की सत्यता या तथ्यात्मकता होनी चाहिये। समाचार अफवाहों या उड़ी-उड़ायी बातों पर आधारित नही होते हैं। वे सत्य घटनाओं की तथ्यात्मक जानकारी होते हैं। सत्यता या तथ्यता होने से ही कोई समाचार विश्वसनीय और प्रमाणिक होते हैं।
    5 रुचिपूर्णता: किसी नई सूचना में सत्यता और समाचारपन होने से हा वह समाचार नहीं बन जाती है। उसमें अधिक लोगों की दिसचस्पी भी होनी चाहिये। कोई सूचना कितनी ही आसाधरण क्यों न हो अगर उसमे लोगों की रुचि नही है तो वह सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा किसी सामान्य व्यक्ति को काटे जाने की सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा काटे गये व्यक्ति को होने वाले गंभीर बीमारी की सूचना समाचार बन जायेगी क्योंकि उस महत्वपूर्ण व्यक्ति में अधिकाधिक लोगों की दिचस्पी हो सकती है।
    6 प्रभावशीलता : समाचार दिलचस्प ही नही प्रभावशील भी होने चाहिये। हर सूचना व्यक्तियों के किसी न किसी बड़े समूह, बड़े वर्ग से सीधे या अप्रत्यक्ष रुप से जुड़ी होती है। अगर किसी घटना की सूचना समाज के किसी समूह या वर्ग को प्रभावित नही करती तो उस घटना की सूचना का उनके लिये कोई मतलब नही होगा।
    7 स्पष्टता : एक अच्छे समाचार की भाषा सरल, सहज और स्पष्ट होनी चाहिये। किसी समाचार में दी गयी सूचना कितनी ही नई, कितनी ही असाधारण, कितनी ही प्रभावशाली क्यों न हो अगर वह सूचना सरल और स्पष्ट भाष में न हो तो वह सूचना बेकार साबित होगी क्योंकि ज्यादातर लोग उसे समझ नहीं पायेंगे। इसलिये समाचार की भाषा सीधीऔर स्पष्ट होनी चाहिये।उल्टा पिरामिड शैली
    ऐतिहासिक विकास
    इस सिद्धांत का प्रयोग 19 वीं सदी के मध्य से शुरु हो गया था, लेकिन इसका विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान हुआ था। उस समय संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ संदेश के जरिये भेजनी पड़ती थी, जिसकी सेवायें अनियमित, महंगी और दुर्लभ थी। यही नहीं कई बार तकनीकी कारणों से टेलीग्राफ सेवाओं में बाधा भी आ जाती थी। इसलिये संवाददाताओं को किसी खबर कहानी लिखने के बजाये संक्षेप में बतानी होती थी और उसमें भी सबसे महत्वपूर्ण तथ्य और सूचनाओं की जानकारी पहली कुछ लाइनों में ही देनी पड़ती थी।
    लेखन प्रक्रिया:
    उल्टा पिरामिड सिद्धांत : उल्टा पिरामिड सिद्धांत समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है। यह समाचार लेखन का सबसे सरल, उपयोगी और व्यावहारिक सिद्धांत है। समाचार लेखन का यह सिद्धांत कथा या कहनी लेखन की प्रक्रिया के ठीक उलट है। इसमें किसी घटना, विचार या समस्या के सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों या जानकारी को सबसे पहले बताया जाता है, जबकि कहनी या उपन्यास में क्लाइमेक्स सबसे अंत में आता है। इसे उल्टा पिरामिड इसलिये कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना पिरामिड के निचले हिस्से में नहीं होती है और इस शैली में पिरामिड को उल्टा कर दिया जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण सूचना पिरामिड के सबसे उपरी हिस्से में होती है और घटते हुये क्रम में सबसे कम महत्व की सूचनायें सबसे निचले हिस्से में होती है।स
    माचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली के तहत लिखे गये समाचारों के सुविधा की दृष्टि से मुख्यतः तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है-मुखड़ा या इंट्रो या लीड, बॉडी और निष्कर्ष या समापन। इसमें मुखड़ा या इंट्रो समाचार के पहले और कभी-कभी पहले और दूसरे दोनों पैराग्राफ को कहा जाता है। मुखड़ा किसी भी समाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों और सूचनाओं को लिखा जाता है। इसके बाद समाचार की बॉडी आती है, जिसमें महत्व के अनुसार घटते हुये क्रम में सूचनाओं और ब्यौरा देने के अलावा उसकी पृष्ठभूमि का भी जिक्र किया जाता है। सबसे अंत में निष्कर्ष या समापन आता है।
    समाचार लेखन में निष्कर्ष जैसी कोई चीज नहीं होती है और न ही समाचार के अंत में यह बताया जाता है कि यहां समाचार का समापन हो गया है। मुखड़ा या इंट्रो या लीड : उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुखड़ा लेखन या इंट्रो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला पैराग्राफ होता है, जहां से कोई समाचार शुरु होता है। मुखड़े के आधार पर ही समाचार की गुणवत्ता का निर्धारण होता है।
    एक आदर्श मुखड़ा में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्ण सूचना आ जानी चाहिये और उसे किसी भी हालत में 35 से 50 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिये। किसी मुखड़े में मुख्यतः छह सवाल का जवाब देने की कोशिश की जाती है दृ क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहां हुआ, कब हुआ, क्यों और कैसे हुआ है। आमतौर पर माना जाता है कि एक आदर्श मुखड़े में सभी छह ककार का जवाब देने के बजाये किसी एक मुखड़े को प्राथमिकता देनी चाहिये। उस एक ककार के साथ एक दृ दो ककार दिये जा सकते हैं। बॉडी: समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड लेखन शैली में मुखड़े में उल्लिखित तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण समाचार की बॉडी में होती है। किसी समाचार लेखन का आदर्श नियम यह है कि किसी समाचार को ऐसे लिखा जाना चाहिये, जिससे अगर वह किसी भी बिन्दु पर समाप्त हो जाये तो उसके बाद के पैराग्राफ में ऐसा कोई तथ्य नहीं रहना चाहिये, जो उस समाचार के बचे हुऐ हिस्से की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो।
    अपने किसी भी समापन बिन्दु पर समाचार को पूर्ण, पठनीय और प्रभावशाली होना चाहिये। समाचार की बॉडी में छह ककारों में से दो क्यों और कैसे का जवाब देने की कोशिश की जाती है। कोई घटना कैसे और क्यों हुई, यह जानने के लिये उसकी पृष्ठभूमि, परिपेक्ष्य और उसके व्यापक संदर्भों को खंगालने की कोशिश की जाती है। इसके जरिये ही किसी समाचार के वास्तविक अर्थ और असर को स्पष्ट किया जा सकता है।
    निष्कर्ष या समापन : समाचार का समापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि न सिर्फ उस समाचार के प्रमुख तथ्य आ गये हैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक तारतम्यता भी होनी चाहिये। समाचार में तथ्यों और उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से पेश करना चाहिये कि उससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिले।
    समाचार संपादन
    समाचार संपादन का कार्य संपादक का होता है। संपादक प्रतिदिन उपसंपादकों और संवाददाताओं के साथ बैठक कर प्रसारण और कवरेज के निर्देश देते हैं। समाचार संपादक अपने विभाग के समस्त कार्यों में एक रूपता और समन्वय स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
    संपादन की प्रक्रिया-
    रेडियो में संपादन का कार्य प्रमुख रूप से दो भागों में विभक्त होता है।
    1. विभिन्न श्रोतों से आने वाली खबरों का चयन
    2. चयनित खबरों का संपादन : रेडियो के किसी भी स्टेशन में खबरों के आने के कई स्रोत होते हैं। जिनमें संवाददाता, फोन, जनसंपर्क, न्यूज एजेंसी, समाचार पत्र और आकाशवाणी मुख्यालय प्रमुख हैं। इन स्रोतों से आने वाले समाचारों को राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर खबरों का चयन किया जाता है। यह कार्य विभाग में बैठे उपसंपादक का होता है। उदाहरण के लिए यदि हम आकाशवाणी के भोपाल केन्द्र के लिए समाचार बुलेटिन तैयार कर रहे हैं तो हमें लोकल याप्रदेश स्तर की खबर को प्राथमिकता देनी चाहिए। तत् पश्चात् चयनित खबरों का भी संपादन किया जाना आवश्यक होता है। संपादन की इस प्रक्रिया में बुलेटिन की अवधि को ध्यान में रखना जरूरी होता है। किसी रेडियो बुलेटिन की अवधि 5, 10 या अधिकतम 15मिनिट होती है।
    संपादन के महत्वपूर्ण चरण
    1. समाचार आकर्षक होना चाहिए।
    2. भाषा सहज और सरल हो।
    3. समाचार का आकार बहुत बड़ा और उबाऊ नहीं होना चाहिए।
    4. समाचार लिखते समय आम बोल-चाल की भाषा के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
    5. शीर्षक विषय के अनुरूप होना चाहिए।
    6. समाचार में प्रारंभ से अंत तक तारतम्यता और रोचकता होनी चाहिए।
    7. कम शब्दों में समाचार का ज्यादा से ज्यादा विवरण होना चाहिए।
    8. रेडियो बुलेटिन के प्रत्येक समाचार में श्रोताओं के लिए सम्पूर्ण जानकारी होना
    चाहिये ।
    9. संभव होने पर समाचार स्रोत का उल्लेख होना चाहिए।
    10. समाचार छोटे वाक्यों में लिखा जाना चाहिए।
    11. रेडियो के सभी श्रोता पढ़े लिखे नहीं होते, इस बात को ध्यान में रखकर भाषा और शब्दों का चयन किया जाना चाहिए।
    12. रेडियो श्रव्य माध्यम है अतः समाचार की प्रकृति ऐसी होनी चाहिए कि एक ही बार सुनने पर समझ आ जाए।
    13. समाचार में तात्कालिकता होना अत्यावश्यक है। पुराना समाचार होने पर भी इसे अपडेट कर प्रसारित करना चाहिए।
    14. समाचार लिखते समय व्याकरण और चिह्नो पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, ताकि समाचार वाचक आसानी से पढ़ सके।
    समाचार संपादन के तत्व
    संपादन की दृष्टि से किसी समाचार के तीन प्रमुख भाग होते हैं-
    1. शीर्षक- किसी भी समाचार का शीर्षक उस समाचार की आत्मा होती है। शीर्षक के माध्यम से न केवल श्रोता किसी समाचार को पढ़ने के लिए प्रेरित होता है, अपितु शीर्षकों के द्वारा वह समाचार की विषय-वस्तु को भी समझ लेता है। शीर्षक का विस्तार समाचार के महत्व को दर्शाता है। एक अच्छे शीर्षक में निम्नांकित गुण पाए जाते हैं-
    1. शीर्षक बोलता हुआ हो। उसके पढ़ने से समाचार की विषय-वस्तु का आभास हो जाए।
    2. शीर्षक तीक्ष्ण एवं सुस्पष्ट हो। उसमें श्रोताओं को आकर्षित करने की क्षमता हो।
    3. शीर्षक वर्तमान काल में लिखा गया हो। वर्तमान काल मे लिखे गए शीर्षक घटना की ताजगी के द्योतक होते हैं।
    4. शीर्षक में यदि आवश्यकता हो तो सिंगल-इनवर्टेड कॉमा का प्रयोग करना चाहिए। डबल इनवर्टेड कॉमा अधिक स्थान घेरते हैं।
    5. अंग्रेजी अखबारों में लिखे जाने वाले शीर्षकों के पहले ‘ए’ ‘एन’, ‘दी’ आदि भाग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यही नियम हिन्दी में लिखे शीर्षकों पर भी लागू होता है।
    6. शीर्षक को अधिक स्पष्टता और आकर्षण प्रदान करने के लिए सम्पादक या उप-सम्पादक का सामान्य ज्ञान ही अन्तिम टूल या निर्णायक है।
    7. शीर्षक में यदि किसी व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया जाना आवश्यक हो तो उसे एक ही पंक्ति में लिखा जाए। नाम को तोड़कर दो पंक्तियों में लिखने से शीर्षक का सौन्दर्य समाप्त हो जाता है।
    8. शीर्षक कभी भी कर्मवाच्य में नहीं लिखा जाना चाहिए।
    2. आमुख- आमुख लिखते समय ‘पाँच डब्ल्यू’ तथा एक-एच के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। अर्थात् आमुख में समाचार से संबंधित छह प्रश्न-Who, When, Where, What और How का अंतर पाठक को मिल जाना चाहिए। किन्तु वर्तमान में इस सिद्धान्त का अक्षरशः पालन नहीं हो रहा है। आज छोटे-से-छोटे आमुख लिखने की प्रवृत्ति तेजी पकड़ रही है। फलस्वरूप इतने प्रश्नों का उत्तर एक छोटे आमुख में दे सकना सम्भव नहीं है। एक आदर्श आमुख में 20 से 25 शब्द होना चाहिए।
    3. समाचार का ढाँचा- समाचार के ढाँचे में महत्वपूर्ण तथ्यों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना चाहिए। सामान्यतः कम से कम 150 शब्दों तथा अधिकतम 400 शब्दों में लिखा जाना चाहिए। श्रोताओं को अधिक लम्बे समाचार आकर्षित नहीं करते हैं।
    समाचार सम्पादन में समाचारों की निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है-
    1. समाचार किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं करता है।
    2. समाचार नीति के अनुरूप हो।
    3. समाचार तथ्याधारित हो।
    4. समाचार को स्थान तथा उसके महत्व के अनुरूप विस्तार देना।
    5. समाचार की भाषा पुष्ट एवं प्रभावी है या नहीं। यदि भाषा नहीं है तो उसे पुष्ट बनाएँ।
    6. समाचार में आवश्यक सुधार करें अथवा उसको पुर्नलेखन के लिए वापस कर दें।
    7. समाचार का स्वरूप सनसनीखेज न हो।
    8. अनावश्यक अथवा अस्पस्ट शब्दों को समाचार से हटा दें।
    9. ऐसे समाचारों को ड्राप कर दिया जाए, जिनमें न्यूज वैल्यू कम हो और उनका उद्देश्य किसी का प्रचार मात्र हो।
    10. समाचार की भाषा सरल और सुबोध हो।
    11. समाचार की भाषा व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध न हो।
    12. वाक्यों में आवश्यकतानुसार विराम, अद्र्धविराम आदि संकेतों का समुचित प्रयोग हो।
    13. समाचार की भाषा मेंे एकरूपता होना चाहिए।
    14. समाचार के महत्व के अनुसार बुलेटिन में उसको स्थान प्रदान करना।
    समाचार-सम्पादक की आवश्यकताएँ
    एक अच्छे सम्पादक अथवा उप-सम्पादक के लिए आवश्यक होता है कि वह समाचार जगत्में अपने ज्ञान-वृद्धि के लिए निम्नांकित पुस्तकों को अपने संग्रहालय में अवश्य रखें-
    1. सामान्य ज्ञान की पुस्तकें।
    2. एटलस।
    3. शब्दकोश।
    4. भारतीय संविधान।
    5. प्रेस विधियाँ।
    6. इनसाइक्लोपीडिया।
    7. मन्त्रियों की सूची।
    8. सांसदों एवं विधायकों की सूची।
    9. प्रशासन व पुलिस अधिकारियों की सूची।
    10. ज्वलन्त समस्याओं सम्बन्धी अभिलेख।
    11. भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) पुस्तक।
    12. दिवंगत नेताओं तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों से सम्बन्धित अभिलेख।
    13. महत्वपूर्ण व्यक्तियों व अधिकारियों के नाम, पते व फोन नम्बर।
    14. पत्रकारिता सम्बन्धी नई तकनीकी पुस्तकें।
    15. उच्चारित शब्द
    समाचार के स्रोत
    कभी भी कोई समाचार निश्चित समय या स्थान पर नहीं मिलते। समाचार संकलन के लिए संवाददाताओं को फील्ड में घूमना होता है। क्योंकि कहीं भी कोई ऐसी घटना घट सकती है, जो एक महत्वपूर्ण समाचार बन सकती है। समाचार प्राप्ति के कुछ महत्वपूर्ण स्रोत निम्न हैं-
    1. संवाददाता- टेलीविजन और समाचार-पत्रों में संवाददाताओं की नियुक्ति ही इसलिए होती हैकि वह दिन भर की महत्वपूर्ण घटनाओं का संकलन करें और उन्हें समाचार का स्वरूप दें।
    2. समाचार समितियाँ- देश-विदेश में अनेक ऐसी समितियाँ हैं जो विस्तृत क्षेत्रों के समाचारों को संकलित करके अपने सदस्य अखबारों और टीवी को प्रकाशन और प्रसारण के लिए प्रस्तुत करती हैं। मुख्य समितियों में पी.टी.आई. (भारत), यू.एन.आई. (भारत), ए.पी. (अमेरिका), ए.एफ.पी. (फ्रान्स), रॉयटर (ब्रिटेन)।
    3. प्रेस विज्ञप्तियाँ- सरकारी विभाग, सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत प्रतिष्ठान तथा अन्य व्यक्ति या संगठन अपने से सम्बन्धित समाचार को सरल और स्पष्ट भाषा में लिखकर ब्यूरो आफिस में प्रसारण के लिए भिजवाते हैं। सरकारी विज्ञप्तियाँ चार प्रकार की होती हैं।
    (अ) प्रेस कम्युनिक्स- शासन के महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस कम्युनिक्स के माध्यम से समाचार-पत्रों को पहुँचाए जाते हैं। इनके सम्पादन की आवश्यकता नहीं होती है। इस रिलीज के बाएँ ओर सबसे नीचे कोने पर सम्बन्धित विभाग का नाम, स्थान और निर्गत करने की तिथि अंकित होती है। जबकि टीवी के लिए रिर्पोटर स्वयं जाता है
    (ब) प्रेस रिलीज-शासन के अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस रिलीज के द्वारा समाचार-पत्र और टी.वी. चैनल के कार्यालयों को प्रकाशनार्थ भेजे जाते हैं।
    (स) हैण्ड आउट- दिन-प्रतिदिन के विविध विषयों, मन्त्रालय के क्रिया-कलापों की सूचना हैण्ड-आउट के माध्यम से दी जाती है। यह प्रेस इन्फारमेशन ब्यूरो द्वारा प्रसारित किए जाते हैं।
    (द) गैर-विभागीय हैण्ड आउट- मौखिक रूप से दी गई सूचनाओं को गैर-विभागीय हैण्ड आउट के माध्यम से प्रसारित किया जाता है।
    4. पुलिस विभाग- सूचना का सबसे बड़ा केन्द्र पुलिस विभाग का होता है। पूरे जिले में होनेवाली सभी घटनाओं की जानकारी पुलिस विभाग की होती है, जिसे पुलिसकर्मी-प्रेस के प्रभारी संवाददाताओं को बताते हैं।
    5. सरकारी विभाग- पुलिस विभाग के अतिरिक्त अन्य सरकारी विभाग समाचारों के केन्द्र होते हैं। संवाददाता स्वयं जाकर खबरों का संकलन करते हैं अथवा यह विभाग अपनीउपलब्धियों को समय-समय पर प्रकाशन हेतु समाचार-पत्र और टीवी कार्यालयों को भेजते रहते हैं।
    6. चिकित्सालय- शहर के स्वास्थ्य संबंधी समाचारों के लिए सरकारी चिकित्सालयों अथवा बड़े प्राइवेट अस्पतालों से महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।
    7. कॉरपोरेट आफिस- निजी क्षेत्र की कम्पनियों के आफिस अपनी कम्पनी से सम्बन्धित समाचारों को देने में दिलचस्पी रखते हैं। टेलीविजन में कई चैनल व्यापार पर आधारित हैं।
    8. न्यायालय- जिला अदालतों के फैसले व उनके द्वारा व्यक्ति या संस्थाओं को दिए गए निर्देश समाचार के प्रमुख स्रोत हैं।
    9. साक्षात्कार- विभागाध्यक्षों अथवा अन्य विशिष्ट व्यक्तियों के साक्षात्कार समाचार के महत्वपूर्ण अंग होते हैं।
    10. समाचारों का फॉलो-अप या अनुवर्तन- महत्वपूर्ण घटनाओं की विस्तृत रिपोर्ट रुचिकर समाचार बनते हैं। दर्शक चाहते हैं कि बड़ी घटनाओं के सम्बन्ध में उन्हें सविस्तार जानकारी मिलती रहे। इसके लिए संवाददाताओं को घटनाओं की तह तक जाना पड़ता है।
    11. पत्रकार वार्ता- सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थान अक्सर अपनी उपलब्धियों को प्रकाशित करने के लिए पत्रकारवार्ता का आयोजन करते हैं। उनके द्वारा दिए गए वक्तव्य समृद्ध समाचारों को जन्म देते हैं।
    उपर्युक्त स्रोतों के अतिरिक्त सभा, सम्मेलन, साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम,विधानसभा, संसद, मिल, कारखाने और वे सभी स्थल जहाँ सामाजिक जीवन की घटना मिलती है, समाचार के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं।
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