न्यू मीडिया: न पत्रकारिता तक सीमित, न कंप्यूटर तक
- बालेन्दु शर्मा दाधीच
प्रस्तुति- हुमरा असद
यूं तो दो−ढाई दशक की जीवनयात्रा के बाद शायद 'न्यू
मीडिया' का नाम 'न्यू मीडिया' नहीं रह जाना चाहिए क्योंकि वह सुपरिचित,
सुप्रचलित और परिपक्व सेक्टर का रूप ले चुका है। लेकिन शायद वह हमेशा 'न्यू
मीडिया' ही बना रहे क्योंकि पुरानापन उसकी प्रवृत्ति ही नहीं है। वह जेट
युग की रफ्तार के अनुरूप अचंभित कर देने वाली तेजी के साथ निरंतर विकसित भी
हो रहा है और नए पहलुओं, नए स्वरूपों, नए माध्यमों, नए प्रयोगों और नई
अभिव्यक्तियों से संपन्न भी होता जा रहा है। नवीनता और सृजनात्मकता नए
जमाने के इस नए मीडिया की स्वाभाविक प्रवृत्तियां हैं। यह कल्पनाओं की गति
से बढ़ने वाला मीडिया है जो संभवतः निरंतर बदलाव और नएपन से गुजरता रहेगा,
और नया बना रहेगा। फिर भी न्यू मीडिया को लेकर भ्रम की स्थिति आज भी
कायम है। अधिकांश लोग न्यू मीडिया का अर्थ इंटरनेट के जरिए होने वाली
पत्रकारिता से लगाते हैं। लेकिन न्यू मीडिया समाचारों, लेखों, सृजनात्मक
लेखन या पत्रकारिता तक सीमित नहीं है। वास्तव में न्यू मीडिया की परिभाषा
पारंपरिक मीडिया की तर्ज पर दी ही नहीं जा सकती। न सिर्फ समाचार पत्रों की
वेबसाइटें और पोर्टल न्यू मीडिया के दायरे में आते हैं बल्कि नौकरी ढूंढने
वाली वेबसाइट, रिश्ते तलाशने वाले पोर्टल, ब्लॉग, स्ट्रीमिंग ऑडियो−वीडियो,
ईमेल, चैटिंग, इंटरनेट−फोन, इंटरनेट पर होेने वाली खरीददारी, नीलामी,
फिल्मों की सीडी−डीवीडी, डिजिटल कैमरे से लिए फोटोग्राफ, इंटरनेट
सर्वेक्षण, इंटरनेट आधारित चर्चा के मंच, दोस्त बनाने वाली वेबसाइटें और
सॉफ्टवेयर तक न्यू मीडिया का हिस्सा हैं। न्यू मीडिया को पत्रकारिता का एक
स्वरूप भर समझने वालों को अचंभित करने के लिए शायद इतना काफी है, लेकिन
न्यू मीडिया इन तक भी सीमित नहीं है। ये तो उसके अनुप्रयोगों की एक छोटी सी
सूची भर है और ये अनुप्रयोग निरंतर बढ़ रहे हैं। जब आप यह लेख पढ़ रहे
होंगे, तब कहीं न कहीं, कोई न कोई व्यक्ति न्यू मीडिया का कोई और रचनात्मक
अनुप्रयोग शुरू कर रहा होगा।
न्यू मीडिया अपने स्वरूप, आकार
और संयोजन में मीडिया के पारंपरिक रूपों से भिन्न और उनकी तुलना में काफी
व्यापक है। पारंपरिक रूप से मीडिया या मास मीडिया शब्दों का इस्तेमाल किसी
एक माध्यम पर आश्रित मीडिया के लिए किया जाता है, जैसे कि कागज पर मुद्रित
विषयवस्तु का प्रतिनिधित्व करने वाला प्रिंट मीडिया, टेलीविजन या रेडियो
जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से दर्शक या श्रोता तक पहुंचने वाला
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। न्यू मीडिया इस सीमा से काफी हद तक मुक्त तो है ही,
पारंपरिक मीडिया की तुलना में अधिक व्यापक भी है।
पत्रकारिता
ही क्या, न्यू मीडिया तो इंटरनेट की सीमाओं में बंधकर रहने को भी तैयार
नहीं है। और तो और, यह कंप्यूटर आधारित मीडिया भर भी नहीं रह गया है। न्यू
मीडिया का दायरा इन सब सीमाओं से कहीं आगे तक है। हां, 1995 के बाद इंटरनेट
के लोकप्रिय होने पर न्यू मीडिया को अपने विकास और प्रसार के लिए
अभूतपूर्व क्षमताओं से युक्त एक स्वाभाविक माध्यम जरूर मिल गया।
न्यू
मीडिया किसी भी आंकिक (डिजिटल) माध्यम से प्राप्त की, प्रसंस्कृत की या
प्रदान की जाने वाली सेवाओं का समग्र रूप है। इस मीडिया की विषयवस्तु की
रचना या प्रयोग के लिए किसी न किसी तरह के कंप्यूटिंग माध्यम की जरूरत
पड़ती है। जरूरी नहीं कि वह माध्यम कंप्यूटर ही हो। वह किसी भी किस्म की
इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल युक्ति हो सकती है जिसमें आंकिक गणनाओं या
प्रोसेसिंग की क्षमता मौजूद हो, जैसे कि मोबाइल फोन, पर्सनल डिजिटल
असिस्टेंट (पीडीए), आई−पोड, ज़ून, सोनी पीएसपी, ई−बुक रीडर जैसी युक्तियां
और यहां तक कि बैंक एटीएम मशीन तक। न्यू मीडिया के अधिकांश माध्यमों में
उनके उपभोक्ताओं के साथ संदेशों या संकेतों के आदान−प्रदान की क्षमता होती
है जिसे हम 'इंटरएक्टिवटिी' के रूप में जानते हैं।
मिलन मीडिया और कम्प्यूटिंग का
न्यू
मीडिया के दायरे में ऐसे सभी पाठ (टेक्स्ट), चित्र, चलचित्र, ध्वनियां और
सेवाएं आती हैं जिन्हें डिजिटल माध्यमों से प्रोसेस या संगणित किया जा सकता
है। इसे दो अलग−अलग क्षेत्रों − मीडिया और कम्प्यूटिंग के सम्मिलन
(कनवरजेंस) के रूप में भी देखा जा सकता है। अनोखा संयोग है कि इन दोनों ही
क्षेत्रों के विकास की यात्रा मोटे तौर पर 1830 के दशक में शुरू हुई थी।
हालांकि उन्हें एक साथ आने में करीब डेढ़ सौ साल का समय लग गया। 1980 के
दशक में जब कंप्यूटर ने काली स्क्रीन से आगे, चित्रात्मक स्क्रीन की ओर कदम
बढ़ाया (जिसे ग्राफिकल यूजर इंटरफेस कहते हैं), तब न्यू मीडिया का उभार
शुरू हुआ। इसके अगले दशक में शिक्षा और मनोरंजन के लिए कॉम्पैक्ट डिस्क
(सीडी−रोम) की लोकप्रियता का दौर आया तो न्यू मीडिया को मजबूती से पांव
जमाने का मौका मिला। फिर 1995 के बाद इंटरनेट के प्रसार के साथ−साथ न्यू
मीडिया का स्वर्णयुग शुरू हुआ जो आज भी जारी है।
न्यू मीडिया
सीमाओं के विरुद्ध कार्य करने वाली शक्ति के रूप में उभरा है। उसे न समय
की सीमा प्रभावित करती है और न भौगोलिक सीमा। खबर के वेबसाइट पर डाले जाने
की देर है कि वह पाठक तक भी पहुंच जाती है, भले ही वह विश्व के किसी भी
कोने में क्यों न रहता हो। न प्रिंट मीडिया की तरह सुबह तक का इंतजार और न
टेलीविजन की तरह अपने उपग्रह के फुटप्रिंट (कवरेज क्षेत्र) तक सिमटे रहने
की सीमा। उसकी विषयवस्तु चूंकि आंकिक (डिजिटल) है इसलिए स्थायी भी है।
वर्षों सहेजकर रखिए वह न खराब होगी, न उसकी गुणवत्ता में कोई फर्क आएगा।
टेलीविजन चैनलों में बीटा और यूमैटिक टेपों का प्रयोग कर चुके पत्रकारों को
याद होगा कि किस तरह वीडियो को एक टेप से दूसरी टेप में ट्रांसफर करने पर
जेनरेशन लॉस आ जाता था! अगर किसी वीडियो को चार−पांच बार एक से दूसरी टेप
में ट्रांसफर किया जा चुका है तो फिर लिप−सिंक की समस्या (वीडियो में बोले
जा रहे शब्दों का उनके उच्चारण के कुछ क्षण बाद सुनाई देना)। जैसे ही
टेलीविजन चैनलों ने डिजिटल माध्यमों को अपनाया, पुरानी पीढ़ी की समस्याएं
स्वतरू दूर हो गईं।
लेकिन ये अकेली सीमाएं नहीं हैं जिन्हें
न्यू मीडिया ने ध्वस्त किया है। उसने अलग−अलग किस्म की सूचनाओं के संप्रेषण
के लिए अलग−अलग माध्यम के इस्तेमाल की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है।
अखबारी खबरें पढ़ने के लिए मुद्रित पन्नों, आकाशवाणी की खबरें सुनने के लिए
रेडियो और टीवी चैनलों की खबरें देखने के लिए टेलीविजन सैट जैसे माध्यम अब
अपरिहार्य नहीं रहे। कंप्यूटर, स्मार्टफोन और न्यू मीडिया के अन्य डिजिटल
माध्यमों ने सूचनाओं के भिन्न−भिन्न स्वरूपों (मुद्रित पाठ, ध्वनि, वीडियो,
चित्र आदि) को एक साथ आने के लिए मंच उपलब्ध कराया है। सूचनाओं के ये सभी
स्वरूप एक ही वेबपेज पर सौहार्द के साथ रह सकते हैं और एक दूसरे की
विषयवस्तु को समृद्ध करते हैं। डिजिटल माध्यम होने के कारण, पाठक चाहे तो
उन्हें अपने कंप्यूटर या अन्य डिजिटल युक्ति में सहेजकर भी रख सकता है। वह
चाहे तो अपने कंप्यूटर में उसे संपादित भी कर सकता है।
न्यू
मीडिया का प्रयोक्ता अन्य समाचार माध्यमों की भांति एकपक्षीय सूचना−संचार
का प्राप्तकर्ता बने रहने के लिए अभिशप्त नहीं है। वह खुद भी विषयवस्तु
र्निमित करने में हाथ बंटा सकता है रू चाहे तो अपने ब्लॉग के माध्यम से,
वेबसाइटों−पोर्टलों पर अपनी टिप्पणियां प्रकाशित करके, यू−ट्यूब या फ्लिकर
जैसी वेबसाइटों पर अपने वीडियो, चित्र आदि अपलोड करके, सिटीजन जर्निलज्म
आधारित वेब परियोजनाओं में अपनी रचनाएं देकर या फिर विभिन्न सामाजिक
वेबसाइटों में अन्य लोगों से विचारों का आदान−प्रदान करके। न्यू मीडिया ने
पाठक को पारंपरिक मीडिया की एकरसता, उसकी तथाकथित ज्ञानदायी प्रवृत्ति से
मुक्त होने का अवसर दिया है। पारंपरिक मीडिया एक से अनेक (एक समाचार
प्रसारक, अनेक प्राप्तकर्ता) के मॉडल पर आधारित था। न्यू मीडिया अनेक से
अनेक के मॉडल पर आधारित है जो उसकी मूलभूत लोकतांत्रिक प्रवृत्ति का द्योतक
है। वह अभिव्यक्ति की आजादी को सिर्फ समाचार−माध्यमों के प्रबंधकों और
पत्रकारों तक सीमित नहीं रखता बल्कि अपने पाठक तक उसका विस्तार करता है।
इंटरएक्टिवटिी इस नए माध्यम की बुनियाद में निहित है जिसका लाभ सूचना
प्रदाता ही नहीं, सूचना प्राप्तकर्ता को भी हुआ है।
एक वैज्ञानिक और गणितीय परिघटना!
हालांकि
न्यू मीडिया निरंतर विकासमान और वृद्धिमान माध्यम है लेकिन उसे कुछ
बुनियादी सिद्धांतों की रोशनी में देखा जा सकता है। कैलीफोर्निया
विश्वविद्यालय, सान डियेगो में विजुअल आट्र्स के प्रोफेसर लेव मेनोविच ने
अपनी चर्चित पुस्तक 'द लैंग्वेज ऑफ न्यू मीडिया' में न्यू मीडिया की
कार्यशैली के पांच आधार बताए हैं। ये हैं−
− आंकिक स्वरूप (न्यूमेरिकल रिप्रजेंटेशन)
− छोटी−छोटी, स्वतंत्र इकाइयां (मोड्यूलेरिटी)
− स्वचालन (ऑटोमेशन)
− परिवर्तनीयता (वेरिएबिलिटी)
− अंतर−परिवर्तनीयता (ट्रांसकोडिंग)
हालांकि
इंटरएक्टिवटिी या संवादात्मकता न्यू मीडिया का एक महत्वपूर्ण पहलू है
लेकिन लेनोविच ने उसे आंकिकता (डिजिटलाइजेशन) और सम्मिलन (कनवरजेंस) की तरह
उसका अंतरनिहित चरित्र नहीं माना है।
न्यू मीडिया के सभी
संप्रेषण, संचार व सेवा माध्यम आंकिक आधार पर परिभाषित किए जा सकते हैं। हम
जानते हैं कि कंप्यूटिंग के क्षेत्र में सूचनाओं को अंकों के जरिए ही
अभिव्यक्त, प्रसंस्कृत (प्रोसेस) और भंडारित (स्टोर) किया जाता है इसलिए
स्वाभाविक ही है कि न्यू मीडिया का स्वरूप आंकिक या डिजिटल है। तकनीकी
परिप्रेक्ष्य में इसका अर्थ यह हुआ कि न्यू मीडिया के माध्यमों की गणितीय
आधार पर व्याख्या संभव है और दूसरे, डिजिटल होन के नाते उनकी विषयवस्तु
एल्गोरिदि्मक (कंप्यूटरीय गणनाओं के आधार पर) प्रसंस्करण, परिमार्जन,
परिवर्तन के लिए उपलब्ध है। यानी यह मीडिया एक प्रोग्रामेबल मीडिया
(कंप्यूटरीय आधार पर प्रोग्राम किया जा सकने वाला) है।
मेनोविच
के सिद्धांतों के अनुसार, न्यू मीडिया मोड्यूलर है, यानी अपने आपमें
स्वतंत्र लघु इकाइयों के स्वतंत्र अस्तित्व की अनुमति देता है और फिर भी
उन्हें एक स्थान पर संयोजित करने में सक्षम है। यानी विभिन्नता में एकता।
कोई डिजिटल चित्र हो, माइक्रोसॉफ्ट वर्ड में बनाया गया दस्तावेज हो,
क्वार्क एक्सप्रेस में बनाया गया अखबार का पेज हो, डिजिटल कैमरा से खींचा
गया कोई वीडियो हो या फिर किसी गाने की ऑडियो फाइल, इन सबका अपना−अपना
स्वतंत्र अस्तित्व है और इन्हें अलग−अलग ढंग से, स्वतंत्र रूप से, बिना
किसी बाधा के पढ़ा, सुना, देखा जा सकता है। अगर इन सबको किसी वेबपेज पर एक
साथ रख दिया जाए तो भी वे अपना−अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखते हैं।
उदाहरण के लिए फिल्म जोधा−अकबर की वेबसाइट को देखिए− वहां वीडियो ट्रेलर,
गाने, फिल्म की समीक्षा, पोस्टर, शूटिंग टीम के मजेदार अनुभव आदि न जाने
क्या−क्या मिल जाएगा। सब कुछ एक ही जगह पर और भिन्न भिन्न स्वरूप होते हुए
भी इन माध्यमों के बीच कहीं कोई टकराव, विरोधाभास नहीं। यह मोड्यूलेरिटी है
जिसका बुनियादी आधार है विषयवस्तु के इन सभी स्वरूपों का डिजिटल स्वरूप
(सूत्र एक)। भले ही अंतिम स्तर पर हम उन्हें किसी भी रूप में देखें, सुने
या पढ़ें, वेबसाइट पर वे सब डिजिटल रूप में रखे गए हैं और सबके सब स्वतंत्र
हैं। सबके अलग−अलग फॉरमैट हैं, सबका निजी अस्तित्व है।
न्यू
मीडिया के कुछ कार्यों को स्वचालित ढंग से संपन्न किया जा सकता है। बहुत
से सॉफ्टवेयर यही काम करते हैं। मिसाल के तौर पर वीडियो फॉरमैट बदलने वाले
या कंप्यूटर को एक निश्चित समय पर स्वतरू बंद करने वाले सॉफ्टवेयर। गूगल
सर्च को देखिए। जब हम वहां किसी की−वर्ड पर आधारित सामग्री खोजते हैं तो
गूगल के दफ्तर में बैठा कोई व्यक्ति हमारी मदद नहीं कर रहा होता है।
प्रोग्रामिंग लॉजिक के आधार पर खोज के परिणाम स्वतरू प्रस्तुत हो जाते हैं।
यही स्वचालन है। किसी ईमेल प्रदाता की वेबसाइट पर सदस्य बनते समय न सिर्फ
सारी गतिविधियां स्वतरू होती चली जाती हैं बल्कि बीच−बीच में हमें
दिशानिर्देश भी मिलते रहते हैं कि ऐसे नहीं, ऐसे कीजिए। यह स्वचालन है।
इसके और भी विस्तृत और प्रभावशाली रूप हो सकते हैं। मेनोविच का चौथा
सिद्धांत परिवर्तनशीलता यह स्पष्ट करता है कि न्यू मीडिया की विषयवस्तु
मुद्रित शब्दों की भांति सदा के लिए अपरिवर्तनीय नहीं है। उसे संशोधित,
संपादित किया जा सकता है और जरूरत पड़ने पर उसका स्वरूप भी बदल सकता है।
क्या एक बार अखबार छपने के बाद उस पर मुद्रित सामग्री बदली या संपादित की
जा सकती है?
मेनोविच का अंतिम सिद्धांत न्यू मीडिया की
विषयवस्तु की एक महत्वपूर्ण विशेषता की ओर इशारा करता है और वह है उसे
विभिन्न माध्यमों में बदले जा सकने की क्षमता जिसे ट्रांसकोडिंग (रूपांतरण)
कहा गया है। इन दिनों कंप्यूटर की दुनिया में यूनिकोड नामक एनकोडिंग काफी
लोकप्रिय हो रही है। आप जानते हैं कि आपके कंप्यूटर में पड़ी गैर−यूनिकोडित
पुरानी फाइलों को कनवर्टर की मदद से यूनिकोड में बदला जा सकता है। यही
रूपांतरण है। गूगल की वेबसाइट पर दिखाए जाने वाले अनेक खोज नतीजों को वहीं
पर विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कर पढ़ा जा सकता है। यह स्वचालन का भी उदाहरण
है और ट्रांसकोडिंग का भी। यानी न्यू मीडिया के लिए तैयार की गई विषय
वस्तु को विभिन्न रूपों में अलग−अलग माध्यमों में इस्तेमाल किया जा सकता
है। इसे आप चाहें तो कनवरजेंस भी कह सकते हैं।
चूंकि न्यू
मीडिया प्रोग्रामेबल है इसलिये उसे कंप्यूटरीय नियमों तथा निर्देशों के
दायरे में भी लाया जा सकता है। उसकी विषय वस्तु को किसी भी अन्य डिजिटल
माध्यम में भंडारित या स्थानांतरित किया जा सकता है, उसके भीतर किसी विशेष
जानकारी या बिंदु को कंप्यूटरीय एल्गोरिद्म के जरिए खोजा जा सकता है, उसकी
सामग्री को वर्णक्रमानुसार संयोजित (शॉर्ट) किया जा सकता है और उसका
अभिलेखन (आर्काइव बनाना) किया जा सकता है। इतना ही नहीं, हाइपरलिंकिंग जैसे
माध्यमों के जरिए इस विषय वस्तु को एक−दूसरे से विभिन्न तरीकों से जोड़कर
(लिंक करके) लाखों पृष्ठों की सामग्री को सुसंगठित ढंग से प्रस्तुत किया जा
सकता है।
ये सब विशेषताएं इसलिए संभव हुई हैं कि न्यू मीडिया
सिर्फ अभिव्यक्ति का माध्यम भर नहीं है, एक वैज्ञानिक फेनोमेनन भी है। वह
एक डिजिटल फेनोमेनन है, गणितीय परिघटना भी है।
न्यू मीडिया का मायाजाल
न्यू मीडिया के यूं तो अनगिनत स्वरूप हो सकते हैं, लेकिन उसके कुछ अधिक प्रचलित और लोकप्रिय रूप इस प्रकार हैं−
− सभी प्रकार की वेबसाइटें (सिर्फ समाचार आधारित नहीं), ब्लॉग और पोर्टल।
− ई−समाचार पत्र, ई−पत्रिकाएं आदि।
− ओरकुट, बिग अड्डा, राइज, माईस्पेस जैसी सोशियल नेटवर्किंग सेवाएं।
− ईमेल, चैट और इन्स्टैंट मैसेजिंग
− वाइस ओवर इंटरनेट के जरिए होने वाले टेलीफोन कॉल
− मोबाइल फोन में रिसीव होने वाली सामग्री (एसएमएस, एमएमएस, फोटो, ऑडियो, वीडियो, अलर्ट आदि)
− मोबाइल टेलीविजन, मोबाइल गेम
− ऑनलाइन समुदाय और न्यूजग्रुप, फोरम आदि
− सीडी−रोम, डीवीडी और ब्लू रे डिस्कों पर अंकित सामग्री (मल्टीमीडिया, वीडियो, ऑडियो, एनीमेशन आदि)
− डिजिटल कैमरों से लिए जाने वाले चित्र
− एमपी− 3 प्लेयरों में सुना जाने वाला संगीत
− वेब आधारित विज्ञापन
− वर्चुअल रियलिटी (काल्पनिक दुनिया) आधारित अनुप्रयोग, जैसे− सैकंड लाइफ, कंप्यूटर गेम आदि।
−
यूजर जेनरेटेड कॉन्टेंट (उपयोक्ताओं द्वारा दी गई सामग्री) पर आधारित
अनुप्रयोग, जैसे यू−ट्यूब, फ्लिकर, विकीपीडिया, सिटीजन जर्निलज्म आदि।
− ई−बैंकिंग, ई−कॉमर्स, एटीएम, ई−शॉपिंग आदि।
− ई−प्रशासन आधारित सुविधाएं और सेवाएं।
− कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, डाउनलोड सेवाएं आदि।
− सेवाओं और सामग्री का वितरण करने वाले इलेक्ट्रॉनिक कियोस्क
− इंटरएक्टिव टेलीविजन (डीटीएच आधारित)
− कंप्यूटर ग्राफिक्स और ग्राफिकल यूजर इंटरफेस।
− ऑनलाइन शिक्षा आदि।
(माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका 'मीडिया मीमांसा' में प्रकाशित आलेख)।